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रोटी की भूख

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रोटी के लिए हम सभी घर से बाहर निकल कर जाते हैं. इस रोटी के लिए परिवार , वृद्ध माता-पिता, यहाँ तक कि गॉंव – समाज सब कुछ छोड़ कर जाना पड़ता है .
आज मञ्जरी की तेरहवीं थी . रमेश अपने दोस्त रवि की गले लग कर बहुत देर तक रोते रहे .
थोड़ा शांत होने के बाद बोले-
रवि , मञ्जरी सत्य कहा करती थी ” लक्ष्मी बिनु आदर कौन करे , गागर बिनु सागर कौन भरे…..” बेचारी जीवन पर्यन्त सफाई ही देती रह गयी, दोष क्या था उस असहाय का ? आय कम मेरी थी पर कटघरे में उसे खड़ा होना पड़ता था. नौकरी के लिए हैदराबाद गया, वहां नौकरी मिल भी गयी. कठिन परिश्रम करता था . कहने को उच्च पद पर आसीन था अपेक्षाकृत पैसे नहीं मिलते थे. किसी तरह जीवन व्यतीत हो रहा था. नौकरी अच्छी होने के कारण पिताजी की पेंशन भी अच्छी थी, जमीन -जायदाद भी काफी था . अतः हम निश्चिन्त थे कि उन्हें कोई कष्ट नहीं है
आमदनी कम होने के कारण हम गांव कम जा पाते थे . परिवार के एक -दो समारोह में जा भी नहीं पाए . सम्पूर्ण गांव में परिवार के कुछ लोगों ने अफवाह फैला दी थी कि – बदल गया है, परिवार को नहीं देखता आदि-आदि बातें. विशेषकर मञ्जरी की तो और भी. हमारे पास ट्रैन के किराये नहीं होते थे . मञ्जरी के पिता टिकट भेज दिया करते थे , इसलिए वहां उसके भाई-बहन के विवाह में सम्मिलित हो जाते थे, इस पर भी उस निर्दोष को लांछित किया जाता था की – मायके को ही करती है. जब कि था उलटा , वह तो ससुराल वाले को ही करती थी.
हम दोनों चाहते थे माता -पिता हमारे साथ रहें, लेकिन वे हमारे साथ रहना नहीं चाहते थे. कारण छोटे बेटे-बहू तथा जन्म भूमि से अति मोह था . ऐसा तो हो नहीं सकता की हम से मोह कम होगा . मञ्जरी का सुझाव था कि’देव ‘ भाई का बेटा* को पढ़ाएंगे , क्योंकि साथ रहेगा तो किसी तरह जुगाड़ हो ही जायेगा. देव आया भी . उसको एक बार मलेरिया बुखार हो गया, देव की माँ छल से उसे बुलबा ली . साथ में मञ्जरी के ऊपर आरोप भी लगा गयी.
पता है रवि- छह महीने तक सदमें में रही थी वह . घर का कोई भी सदस्य साथ नहीं दिया उस निरीह का . मैं सब कुछ समझ कर भी उसके पक्ष में नहीं बोला, तब भी साथ नहीं दिया जब मेरे एकलौते बेटे के उपनयन संस्कार में मञ्जरी के मायके बालों के समक्ष उसे अपमानित किया गया. दोष यह था कि अस्वस्थ होने के कारण काम नहीं कर पा रही थी. सबसे बड़ा अपराध था आर्थिक अभाव. हम लाचार थे कि कहीं हमें जोडू के गुलाम की उपाधि न मिले.
कुछ दिन पहले मेरी भतीजी आयी थी . उससे से बहुत स्नेह था उसे . पता नहीं क्या हुआ, मात्र यही कह पायी की – बच्चे भी दोष देते हैं. पता नहीं हम से क्या भूल हो गयी. फिर उसने बिलखते हुए कहा- औरत मायके या बाहर के लोगों से कितनी भी तारीफ बटोर ले मगर ससुराल वालों की तारीफ की भूख ही सबसे प्रवल होती है . ठीक उसी जिस तरह तरह भूख से व्याकुल व्यक्ति को रोटी की होती है.
रमेश ऊपर देख कर स्वगत ही बोले ‘ क्षमा कर देना जान, किसी का दोष नहीं , पापी पेट का दोष है ‘ भूख को शांत करने के चक्कर में रोटी की जुगाड़ में मानव सम्पूर्ण जीवन भागने में व्यतीत कर देता है . आज के अर्थ युग में मनुष्य सम्बन्धियों को भी धन की तराजू पर तौलते हैं. वास्तव में सब की जड़ रोटी ही है.

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