Menu
blogid : 6094 postid : 1312292

चुनावी बिगुल और मुफ्त का झुनझुना

My View
My View
  • 227 Posts
  • 398 Comments

Chunav आजकल सर्वत्र चुनावी माहौल है. चुनावी बिगुल बज चूका है. शंख नाद हो चुका है. सभी पार्टियाँ अपने-अपने तरीके से जनता को लुभाने में लगे हुए हैं. सभी दलों के कार्यकर्ता व्यस्त ही नहीं तत्परता भी दिखा रहे हैं. अदम्य उत्साह और विजय विश्वास से परिपूर्ण अथक परिश्रम में मशगूल सारे कार्यकर्ता अपने नेताओं अपनी पार्टियों के लिए जी-जान लगाने में किसी भी तरह की बेईमानी करते हुए नहीं दीखते हैं.
कोई हाथ लेकर घूम रहा है तो कोई साइकिल पर सवार है, अब तो हाथ से साइकिल खींचते हुए भी दिख रहे हैं, कोई हाथी पर अपने नेता को सवार कराना चाह रहे हैं तो कोई कमल खिलाकर परिवर्तन की राग गा रहे हैं. हर कोई अपने को सर्वोत्तम घोषित करते है और दूसरे को निकृष्ट ही नहीं बल्कि अधिकांश स्वयंघोषित एवं अपराधिक छवि वाले लोग बेलगाम हो कर अपने जबान को दूषित करते हुए दूसरे की चारित्रिक हत्या करने में अपने को अव्वल सावित करते हैं.
सरगर्मी है चुनाव की अतः समाचार भी इसी से सम्बंधित प्रमुखता पायेगा, पर क्या इस चुनावी समाचारों के अलावा दैनिक रूप से घटित होने वाली वो घटनाये जो भारतीयों को शर्मसार करता है वे समाचार की दुनियां में क्यों गौण हो जाता है?!! समाचार आता है -सत्तर गाड़ियाँ कोहरे के कारण टकराया, नाबालिग से बलात्कार हुआ, सामूहिक बलात्कार हुआ, बेटे ने पिता को मौत के घाट उतार दिया आदि घटनाएं विशेष नहीं माना जाता है क्योंकि यह तो दैनंदिनी है. अगर कुछ खास या स्पेशल है तो चुनाव. और चुनाव में भी वे मसालेदार बातें जो दूसरों को नीचा दिखाने हेतु किसी नेता द्वारा प्रयोग किया गया हो.
शायद ही भारत का कोई व्यक्ति “दामिनी” के साथ हुए अत्याचार को भूल पाया होगा. उस समय बहुतों ने अपने-अपने तरीके से इसकी भर्त्सना भी की थी और हमारे देश के चिंतक(?!) लोगों ने इस सम्बन्ध में हर गली ,नुक्कड़ , टीवी चैनल एवं विभिन्न संचार माध्यमों का उपयोग कर इस पर चर्च-परिचर्चा किया था. कुछ दिनों का मेला था वह? समय बिताने का माध्यम या अपनी-अपनी पांडित्य बघारने का मौका(प्लेटफॉर्म)? क्या कोई सुधारात्मक(करेक्टिव) कदम(एक्शन) इम्पलीमेंट हुआ? नहीं न ? अगर हुआ होता तो ताबड़ -तोड़ वह सिलसिला हरदिन इस देश में घटित नहीं होती रहती. और इस देश के मृतप्राय तथाकथित विद्वत लोग अपने को केवल यह आश्वासन देने में व्यस्त भी न रहते कि उनके पूर्वज बड़े चरित्रवान थे , उनके उदहारण श्लोकों से उद्धरित कर चुप न रहते , गांधीजी के विचारों को उद्धरित करने का प्रतिक मात्र न रहने देते, ड्राइंगरूम के डिसकसन का विषय मात्र न समझ कर कुछ तो ऐसा करते जिससे यह साबित होता की पूर्वज अगर चरित्रवान थे तो आज भी वे भारत को चरित्रवान बनाने में सक्षम है. बलात्कार दैनंदिनी नहीं होती.हमारी बेटियाँ ऐसे अपमानित नहीं होतीं .चुनाव में इतने व्यस्त हैं कि विभत्स घटना देश में घटित होने पर अनदेखा कर मौन हैं .
हर राजनीतिक दल कुछ न कुछ मुफ्त बाँटने की “घूस ” जनता को देकर वोट हासिल करने का दुःप्रयाश करने मेंअपना बड़प्पन समझ रहा है. कोई घी बांटेगे, कोई चीनी, कोई लैपटॉप,कोई स्मार्टफोन!! और इन सबको बांटने के लिए जो खर्च आएगा उस वित्त की व्यवस्था क्या जनता से हासिल की गयी पैसे से ही नहीं होगा? फिर ये पार्टियाँ जनता के पैसे से जनता को ही खरीद कर ये मुफ्त का ठप्पा लगा कर पुनः जनता को कोई चीज दे देगा तो जनता को लाभ क्या होगा? क्या इस तरह से ये नेता जनता को कमजोर बनाने की कोशिश नहीं कर रहे हैं? जनताको हर चीज मुफ्त में मिले ये चाहत क्या जनता के मन में नहीं बैठेगा? मुझे तो ऐसा प्रतीत होता कि ये जनता को लालची बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं , और फिर जनता निकम्मा हो कर भिक्षाटन पर निर्भर होने के रह पर नहीं धकेला जायेगा ?
नेताजी आपकी पार्टी जहाँ सत्ता में है वहाँ तो आप ये सभी फ्री वाला चीज नहीं बाँट रहे है तो आप जहाँ चुनाव जीतना चाहते है वहाँ ही बांटने की प्रतिज्ञा क्यों कर रहे हैं? कुछ पार्टियां तो सत्ता में रहते हुए कभी मुफ्त कुछ भी नहीं बांटा अब जब चुनाव के मैदान में आये हैं तो मुफ्त वाली घूस दे कर पुनः सत्ता में आना चाहते है,! धिक्कार है ! नेताजी आपलोगों को.

Read Comments

    Post a comment