Menu
blogid : 6094 postid : 1309656

प्रेरणादायक पर्व २६ जनवरी

My View
My View
  • 227 Posts
  • 398 Comments

कल २६ जनवरी है . सम्पूर्ण देशवासी इस पर्व को अत्यंत उत्साह से मानते हैं. मानव आज के दिन आजादी का अनुभव करता है.मानव जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त स्वतंत्र रहना चाहता है . अपनेको स्वतंत्र रखने के लिए कोई भी बलिदान करने को तत्पर रहता है. मानव हो या पशु-पक्षी कोई भी अपनी आजादी को खोना नहीं चाहता . हर मानव के मन मस्तिष्क पर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक कि यह उक्ति “स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है” विराजित रहता है. पराधीनता सबसे बड़ा अभिशाप है. पक्षी को भी स्वर्ण रचित पिंजरा नहीं भाता तो मानव की बात ही क्या?
पराधीन मानव तो जीवित रहते हुए भी मृतप्राय है . हमारे पूर्वज गुलामी की जंजीर से जकड़े हुए थे.जिस देश में जन्मे थे ,जिस धरा का अन्न जल ग्रहण किया था ,खेल-कूद कर जिसकी रज में बड़े हुए , अध्ययन -अध्यापन किया, ज्ञान-ग्रहण किया उससे मोह तो स्वाभाविक ही था. पेड़ -पौधे, जीव-जंतु और समस्त मानव अर्थात देश के कण-कण से लगाव था. जिस प्रकार जन्मदात्री माँ के प्रति कर्तव्य या स्नेह होता है उसी प्रकार देश के लिए भी दायित्व होता है. हमारे पूर्वज इसी भावना से परिपूर्ण थे. देश-प्रेम की भावना बड़ी उच्च भावना होती है , उसी भावना से प्रेरित हो कर देशभक्त हमारे पूर्वज अपना सर्वस्व देश हितार्थ न्यौछावर कर दिए. इसी भावना से प्रेरित होकर महाराणा प्रताप ,लक्ष्मीबाई , लाला लाजपत राय, चंद्रशेखर आजाद,सुभाष चंद्र बोस पराधीन देश को स्वाधीन करने के लिए, कितने और देशभक्तों नें जेल की कठोर यातनाएं भोगी, हँसते-हँसते लाठियां खायीं, दिन का चैन गंवाईं देश में अमन लाने के लिए कोई काल-कोठरी तो कोई फाँसी के तख्तों को स्वीकार कर लिया. गांधीजी देश को स्वतंत्र करने के लिए समस्त जीवन होम कर दिए. देश को पराधीनता से मुक्त करने के लिए अंग्रेजों द्वारा अपमानित होना उसके द्वारा अत्याचार सहन कर देश को स्वतंत्रता दिलायी.
गणतंत्र दिवस देश के भक्ति का उत्सव है. यह दिवस भारत का सर्वाधिक महत्वपूर्ण राष्ट्रपर्व है. इसी पूण्य तिथि को हमारा देश सही अर्थों में आजाद हुआ था. सम्पूर्ण भारतवर्ष में यह उत्सव अत्यंत उत्साह एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.प्रदेशों की सरकारें सरकारी स्तर पर अपनी-अपनी राजधानियों में तथा जिलास्तरों पर राष्ट्रिय ध्वज फहराने तथा अन्य अनेक कार्यक्रमों का आयोजन करती है.
देश की राजधानी दिल्ली में भव्य समारोह का आयोजन होता है. सम्पूर्ण दिल्ली दुल्हन की तरह सुसज्जित होती है. देश के विभिन्न भागों से असंख्य मानव इस मनोरम समारोह में सम्मिलित होने तथा इसके मनमोहक रूप को देखने के लिए सम्मिलित होते हैं. राष्ट्रपति राष्ट्रीय धुन के साथ ध्वजारोहण करते हैं. 31 तोपों की सलामी दी जाती है. हवाई जहाजों द्वारा पुष्प वर्षा की जाती है. जल,नभ तथा थल तीनों सेनाओं की टुकड़ियों का अभिवादन स्वीकृत करते हैं . इस अनुपम दृश्य को देखकर राष्ट्र के प्रति असीम भक्ति तथा असीम उत्साह और उमंग का संचार का अनुभव हर देशवासी करता है. विभिन्न प्रान्त के नृत्य , बैंड-बाजे, झाँकियाँ, विविध प्रदेशों की वेश-भूषा ,रीति-रिवाजों, औद्योगिक तथा सामाजिक क्षेत्र में आये परिवर्तनों का चित्र प्रस्तुत करना देश के विभिन्न प्रान्तों से आई संगीत कला आदि संगीत कला आदि की मण्डलियाँ समस्त वातावरण को उल्लास से भर देती है.
इस पवित्र उत्सव के दिन सम्पूर्ण भारत के मानव अपने भीतर नव संचार का अनुभव करते हैं. वास्तव में इस पर्व के दिन भारत तीर्थ सदृश दृष्टिगत होता है. यह पर्व प्रेरणादायी पर्व है लेकिन मात्र एक दिन के लिए. क्या यह सौहाद्र , यह अनेकता में एकता का भाव प्रतिदिन क्यों नहीं होता? क्यों हम विविध भागों में विभक्त हो गए हैं. क्यों हम विविध दलों में बंट गए हैं. हम सब मिलकर क्यों नहीं एक हो सके? क्यों राजनितिक खेमों में बंट गए? क्यों असहिष्णु होते जा रहे ? ठीक है राजनितिक दल अलग-अलग है आज ले परिपेक्ष्य में आवश्यक है लेकिन हम मानव सैद्धांतिक रूप से वैचारिक रूप से अलग क्यों नहीं होता? मानसिक रूप से एक ही रहते. कांग्रेस,भाजपा ,सपा,आरजेडी या अन्य राजनीतिक दल मात्र नाम के लिए अलग रहते . लेकिन आज यदि एक दल दूसरे दल के विषय में मुहँ खोलता है तो दूसरा दल लड़ने को तत्पर रहता है. खून के पिपासु बन गए हैं सभी. हम तो प्रजातंत्र में हैं फिर राजतन्त्र सदृश क्यों अनुभव हो रहा? एक भाई दूसरे भाई के खून के प्यासे क्यों हो रहे? अश्लील भाषा का प्रयोग क्यों? कोई भी दल हैं तो भाई-भाई ही.
क्या इसी दिन के लिए सुभाष चंद्र ने विदेश में जाकर आजाद हिन्द फ़ौज का गठन किया, नेहरू ने ऐश्वर्य और वैभव के जीवन को ठुकरा दिया, लाला लाजपत राय ने लाठियाँ खायी अंग्रजों की, तिलक ने संघर्ष किया , गाँधीजी ने अपना सर्वस्व त्यागकर देश को स्वतंत्र किया तथा अन्य समस्त वीर सपूतों ने अपना जीवन होम कर दिया . क्या ऐसे ही स्वार्थी मानवों के लिए, जिनका मात्र कर्तव्य है अपने स्वार्थ की पूर्ति करना, इसके लिए जनता को बलि ही क्यों न देनी पड़े.
राष्ट्रीय एकता के लिए देश प्रेम अत्यावश्यक है. आज देश , जाति, भाषा ,वर्ण, वर्ग ,प्रान्त , दल आदि के नाम पर विभक्त है. राजनेता ने तो अति ही कर दी. अब तो नारी की सुंदरता को जोड़ने का कुचक्र कर रहे हैं. कितनी हास्यास्पद उक्ति है कि अमुक दल की नेता सुन्दर है तो हमारे दल की भी नेता सुन्दर है. ऐसी मानसिकता पर मुझे घोर निराशा हो रही है. समस्त देश टूटता दृष्टिगत हो रहा है.
क्यों नहीं हर दिन २६ जनवरी और १५ अगस्त की तरह हम मनाते? यदि हम ह्रदय से हर दिन को ऐसा ही पावन दिवस मानेंगे , जैसे समस्त भारतवासी इन पुण्यदिवस के दिन देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत तथा एकता के सूत्र में बंधे होते हैं, वैसे ही यदि हर दिवस को प्रण ले कर उठें कि हम सब एक हैं , सबकी जननी एक ही धरा है. हम सब एक ही माँ के संतान हैं. समस्त भारत हमारा कुटुम्ब है. यदि हम सब ऐसा प्रण ले लें आज के दिन तो वास्तव में हमारा धरा स्वर्ग हो जायेगा . हमारे पूर्वज वीर सपूतों की त्याग-तपस्या और बलिदान व्यर्थ नहीं जायेगा . विश्वास है ऐसा ही होगा एक दिन. भारत फिर से सोने की चिड़िया वाला देश बन जायेगा क्योंकि उसकी समस्त संतान सोने जैसे ह्रदय वाला होगा. निश्चयेन स्वर्णिम नवयुग पुनः स्थापित होगी.

Read Comments

    Post a comment