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युवा कर्मठ एवं अनुशासित हो तो देश का भविष्य निश्चित ही उज्जवल होगा. युवा -जीवन किसी भी मानव का आधार होता है .यह वह अवस्था है जब जीवन को उचित दिशा निर्देश की आवश्यकता होती है , जो युवा आदर्श पूर्वक, जिज्ञासा से , कर्मठता से ,सच्चरित्रता से जीवन यापन करता है ,उसका जीवन उतना ही सहज ,सरल एवं अमृतमय हो जाता है ,यह समय निश्चित रूप से सर्वोत्तम जीवन है ,भविष्य का नींव निर्धारित होता है नए व्यक्तित्व का विकास होना प्रारम्भ होता है ,नए उत्साह उमंग से सराबोर युवक अदम्य उत्साह से पहला कदम अर्थात जीवन की ओर उन्मुख होता hai यदि देश के अनुशासित और अपने कार्य सुचारू रूप से तथा लगता के साथ करने वाले एवं राष्ट्र निर्माण में योगदान देने वाले हैं तो वह देश प्रगति करता है . दूसरी और यदि वे अनुशासनहीन , अपने कार्यों को न करने वाले तथा अपने ही हित में लगे रहने वाले रहें तो राष्ट्र अवनति की ओर बढ़ता है .
विगत वर्षों से भारत में युवा असंतोष अत्यंत व्यापक रूप में दिखाई पड़ रहा है . भारत ही नहीं विश्व के कोने -कोने से युवा असंतोष और आंदोलन के समाचार आते रहते हैं . चाहे वह जे एन यू में दीखता युवा असंतोष हो या हैदराबाद के युवाओं का आक्रोश . कहीं न कहीं यह मानव स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध लगाने वाली व्यवस्था के प्रति विद्रोह ही तो है . कोई नारा लगाता है और कहना चाहता है की उसे आज़ादी चाहिए -गरीबी से , विभेद से , जात – पात से तो इसका तात्पर्य स्पष्ट है कि वह कहीं न कहीं असंतोष से पीड़ित है . और जब यह उग्र रूप लेता है तो अधिकतर आतंकवाद में परिवर्तित होने लगता है . फिर अगर ये युवा देश द्रोही के संगत में पर जाये तो आतंकवादी बन जाते हैं .
विश्व के सभी देशों से ज्यादा युवा भारत में है और भारत का यह शक्ति है. पर अति उदार जनतंत्रीय परम्परा वाले इस देश में प्रायः यदा-कदा कभी आवश्यक तो कभी अनावश्यक कारणों से आन्दोलन रत युवा देखने को मिल जाता है. यह समझ पाना कठिन हो जाता है की इनका असल मुद्दा क्या है. मुद्दा है भी की नहीं? अगर है तो औचित्य है? सार्थकता है?
युवा जितना ही देश के उन्नति के लिए बलवान कड़ी होता है उतना ही कठिन अगर यह दिशाहीन हो तो. हम सभी यह जानते हैं कि राजीनीति के नाम पर गंदे खेल में सम्मिलित बहुत से तथाकथित नेता ऐसे हैं जो इन युवा वर्ग में कुछेक ऐसे युवा को दिशाहीन कर अपना उल्लू सीधा करने हेतु इनका उपयोग करते हैं. फलतः शिक्षण संस्थाओं का दुरूपयोग आरम्भ हो जाता है यथा हड़ताल,बंदी आदि से शिक्षण बाधित होता रहता है. कभी-कभी तो यह पुलिस और छात्र संघर्ष के रूप में ख़ूनी रूप भी धारण कर लेता है. कर्फयू लगता है और सारा जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. शांति में बाधा पहुँचता है और छात्र का भविष्य अंधकार की ओर अग्रसर हो जाता है , वहीँ गंदे राजनेता लोग अपना स्वार्थ सिद्ध कर पाने में सफल हो जाते हैं. युवाओं के इन आंदोलनों को कुचलने हेतु सरकार को भी अकूत धन एवं शक्ति व्यय करना पड़ता है.
युवा किसी भी राष्ट्र के रीढ़ होते हैं. राष्ट्र निर्माण में उनका विशेष योगदान रहता है. युवाओं में असन्तोष के अनेक कारण राजनितिक,सामाजिक,वैयक्तिक,शैक्षिक एवं अन्य भी हो सकते है. आर्थिक कारण के साथ-साथ विभेदकारी सामाजिक कारण मुख्य है. औद्योगिक एवं तकनीकि क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति के पश्चात् भी जनसँख्या की वृद्धि ने आर्थिक क्षेत्र में अनेक समस्याएं उत्पन्न कर दी है. वस्तुओं के मूल्य दिन-प्रतिदिन बढ़ते जाने से और बेरोजगारी भी बढ़ने से असंतोष व्याप्त हो रहा है.
वर्तमान शिक्षा का प्रमुख दोष यह है की यह केवल साहित्यिक और सैद्धान्तिक अधिक है और जो कुछ व्यवसायिक है उनके गुणवत्ता पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है तभी तो अभियन्ता लोग चपरासी एवं सफाई कर्मचारी के पदों हेतु आवेदन देते हैं. निर्धनता और दरिद्रता मनुष्य के आदर्शों को समाप्त करने में परम योग देती है. आजका युग इसका उदहारण है. भौतिकवादी प्रवृत ने आदर्शवाद और सदाचार का गाला घोंटने में कोई कसर नहीं बांकी रखा है.
युवा की अनदेखी एक प्रकार का अपराध है ,देश में युवा की अहम् भूमिका होती है देश में . जिस तरह चमकीले मोती का कोई मूल्य नहीं . उसी प्रकार देश में सच्चरित्र युवक के बिना कोई मूल्य नहीं आज के युवा ही देश के आज ओर कल के कर्णधार होते हैं ,ये उस नन्हे पौधे के सदृश होते हैं जिन्हें सींच कर विशाल वृक्ष की तरह निर्मित करना पड़ता है ,लेकिन क्या हमारा देश इस दायित्त्व का निर्वाह करता है.
आज हमारे किशोर भ्रमित हो रहे हैं ,भटक रहे हैं ,एक से एक मादक द्रव्य का उत्पादन होता है ,फलतः कुछ युवावर्ग उत्सुकता में तो कुछ बेरोज़गारी के कारण तो कुछ परिवार के विपरीत परिस्थिति के कारण तो कुछ असंतोष के कारण इसका सेवन आरम्भ कर देते हैं ,परिणामस्वरूप भयावह स्थिति का सामना करना पड़ता है . जब वही विष स्वरुप मादक द्रव्य नहीं मिलता तो असंतोष का सामना करना पड़ता है . ,देश में एक से एक भ्रमित करने वाले साधन उपलब्ध है ,युवा आकर्षित तो होंगे ही .यह भी असंतोष का कारण है .इन घातक पदार्थों के सेवन से युवा कुरीतियों, आडंबरों ,पाखंडों अनैकिताओं आदि का ज्ञान प्राप्त कर भ्रमित हो रहे हैं .सरकार मात्रा दावा करती है लेकिन दिन प्रतिदिन इसमें वृद्धि ही हो रही है . कुसंगति के कारण भी युवा भटक रहे हैं असंतोष तो होगा ही .आर्थिक स्थिति भी प्रमुख कारण है ,हमारे देश में आर्थिक अंतर भी असंतोष का मुख्य कारण है .किसी के पास अरबों की संपत्ति है तो किसी के पास खाने के भी लाले होते हैं, युवा तो ठहरे युवा ,परिपक्व तो होते नहीं फलतः हीन भावना पनपने लगती है ,ओर असंतोष से ग्रसित होना स्वाभाविक है
युवा का जीवन एक साधक का जीवन होता है .युवा तो तो कच्चे घड़े की तरह होते हैं ,जिन्हें नैतिक शिक्षा देकर हीरे की तरह तराशना हर माता पिता का कर्त्तव्य होता है .परिवार समाज के साथ सब को इस ओर ध्यान देना होगा जिससे देश के तरुण भटके नहीं वरन देश का सच्चा सपूत बनकर अपना नाम रौशन करे .
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