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जीवन पथ पर झूलता मानव

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पालना में नौनिहाल क्यों?
अहसास उसे दिलाने को
पालना आगे सुख का द्योतक
पीछे दु: ख का द्योतक।
सुख दु:ख के झूले में
झूलता रहता मानव
जीवन पथ पर अश्रुपूर्ण नयन से
खोखले दम्भ और
खोखली मुस्कान से
क्षण, पल, दिन फिर युग में
अपनापन पाकर जग में
अपनों को खोकर शून्य मेंं
छल प्रपंच, पाप के भंवरजाल में
पथिक सा चलता निर्जन डगर में
आशा निराशा में डूबा कभी शान्त तो कभी क्लान्त
कभी अन्तर्मुख तो कभी बहिर्मुख
कभी मस्त कभी उन्मुक्त
वेदना का भार उठाए
जानकर ,समझकर , सब देखकर
किंकर्तव्यविमूढ़! विस्मृत होकर
मान अपमान के भंवर में गूंथकर
नितान्त अकेला वह
मासूम और निरीह
जीवन -पथ पर झूलता
स्पन्दन हीन मानव
बाल्यावस्था ,युवावस्था
सताती वृद्धावस्था की जर्जरता
जड़ हो जीवनपथ पर
राही थक चलता
सुख दु:ख के झूले में
कभी आगे कभी पीछे झूलता मानव

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