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प्रकृति में मानव की जीवनदायिनी शक्ति है, तो अगर उस शक्ति का सदुपयोग न कर जब मानव प्रकृति के साथ दुर्व्यवहार करने लगा है जिसके फलस्वरूप कभी-कभी वही प्रकृति अपने भीषण प्रकोप से मानव को भयाक्रांत कर जाता है . कभी बाढ़,कभी सूखा तो कभी भूकंप ,कभी तूफ़ान , कभी ओले तो कभी सुनामी का आफत .
आजकल बाढ़ के भीषण प्रकोप से दुनिया को रूबरू होना पर रहा है. पूरब से पश्चिम तक हिंदुस्तान में घनघोर तबाही मची हुयी है. देश में सैलाब आया हुआ है. हर और पानी ही पानी. चीन से अमेरिका तक तबाही मची हुयी है. हिंदुस्तान से हॉलैंड तक चीन , नेपाल,अमेरिका सर्वत्र त्राहिमाम -त्राहिमाम लोग कर रहे हैं. चीन चीख उठा है. थाईलैंड हो या , भारत, सर्वत्र पानी ही पानी . देश इस विकराल समस्या से जूझ रहा है. बिहार , उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड , मध्य प्रदेश ,आसाम आदि विविध राज्यों में नदियां , तालाब आदि उफन गयी है. छोटी-छोटी नदियां सागर का रूप धारण कर लिया है. बाढ़ के प्रचंड तांडव से जनता चीत्कार कर उठी. कृषक फसल की बर्बादी से अश्रुपूरित हो उठे हैं. अधिक वृष्टि से नदियाँ भर कर उफन जाती है ,इस कारण भयानक समस्या का सामना करना पड़ता है ,वर्षों से सञ्चित धनराशि एक क्षण में विलीन हो जाता है .संपत्ति की क्या विसात जीवन रक्षा कठिन हो जाता है .अनेकों जीव पशु यहाँ तक मानव भी काल कवलित हो जाते हैं ..यह एक प्राकृतिक अभिशाप है . दूरदर्शन पर बाढ़ का दृश्य देखकर और भी दिल दहल जाता है ,छोटे छोटे बच्चे दूध के लिए तड़प जाते हैं .खाने के लिए अनाज नहीं है .अन्न का एक दान नहीं, पीने को जल नहीं ,मवेशियों को चारा नहीं ,असुविधाएं ही असुविधाएँ .मानव विचलित हो जाता है ऐसे दिनों में .बुजुर्ग की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है . दवाई भी समय पर नहीं मिल पाता. बुजुर्ग बच्चे सब इन दिनों अत्यन्त कठिनता से जीवन यापन करते हैं , इतनी महंगाई में किसी की संपत्ति नष्ट हो जाय इससे त्रासदी और क्या होगी ,ऊपरी सतह पर मकान होने पर भी कितनी बार बाढ के कारण गिर जाते हैं .जिन गरीबों के घर कच्चे होते हैं उनके घर तो विनष्ट होते ही हैं वर्षों से सञ्चित धन क्षण में विलीन हो जाना कितना कष्टदायक हो जाता है ,ताश के पत्तों की तरह ढह जाता है ,लोगों में इस भयानक आपदा से . सर्वत्र त्राहि त्राहि मची हुई है. मानव कारुणिक भाव से देखता ही रह जाता है . न भोजन की व्यवस्था ,न पीने को शुद्ध जल न अन्य आवश्यक सामग्री मिलती है जल ही जल चारों ओर होने से घर से निकलने का कोई मार्ग भी नहीं मिलता ,छोटी बड़ी नावों के सहारे पशुओं की रक्षा कर लाने के पश्चात् भी उनके रहने का ठिकाना नहीं मिलता फलतः किसी टीले पर आश्रय लेना पड़ता है .तीव्र बहाव में अनेकों मानव ,मवेशी बाह जाते हैं ,कितने वृक्ष जड़ सहित गिर जाते हैं ,इसके गिरने से भी दब कर भी हृदयविदारक मौतें भी मानव को विचलित कर देता है ,कभी कभी पर्वतीय तथा जंगली प्रदेशों में भयंकर सर्प जहरीले जीव जन्तु बहकर आ जाते हैं ,ये जहरीले जीव जन्तु मानव की जान तक ले लेते हैं ,कभी कभी ये विषधर भी मारे जाते हैं .बाढ़ की विभीषिका में मानव को भय लगा रहता है कब कोई सांप बिच्छू या अन्य जहरीले जन्तु काट न ले . वास्तव में अत्यन्त दारुण स्थिति हो जाती है लोगों की .
जब प्राकृतिक आपदाएँ आती हैं उस समय कुछ लोग तमाशबीन होकर मदिरापान करना ,ताश खेलना अपना कार्य समझते हैं ,क्योंकि उनलोगों को कम नुकसान होने के कारण समय का सदुपयोग, इससे उपयुक्त समय क्या होगा ? कुछ पाषाण ह्रदय के मानव सामान बेचना आरम्भ कर देते हैं ,कीमत से १० गुणा अधिक कीमत पर बेचते हैं ,कितनी लज्जानक बात हैं पीड़ितों से दुःख की घडी में भी अपना लाभ उठाते हैं ,संवेदनहीनता की पराकाष्ठा हुई ऐसी ओछी मानसिकता वाले लोग . कुछ ऐसे भी महँ नागरिक होते हैं जो स्वयं की परवाह न करते हुए भी जरूरतमंदों को दवा .वस्त्र,औषधि ,कम्बल बिस्तर एवम भोजन की व्यवस्था में जुटे रहते हैं .
सरकार पीड़ितों के लिए आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था तो करती है लेकिन सभी को लाभ नहीं मिल पाता. हमारे वीर सैनिक जान की बाज़ी लगा देते हैं ,देश के ये वीर सपूत मात्रा सीमा पर ही नहीं देश के नागरिक को जब भी आवश्यकता होती है ये सब अहर्निश मानव हितार्थ तत्पर रहते हैं चाहे पीड़ित चेन्नई हो या कश्मीर .ऐसे ही देश प्रेमी पर यह धरा अवस्थित हैं .
सबसे बड़ी समस्या तो होती है बाढ़ के पानी के समाप्ति पर . क्योंकि दूषित जल ,दूषित खानपान के कारण विविध प्रकार के बीमारियों का सामना करना पड़ता है .सरकार को आरम्भ से ही हैज़ा. मलेरिया , डेंगू आदि बीमारियाँ न पनपे इसके रोकथाम के लिए प्रयत्न करना पड़ेगा . सरकार सहायता तो करती है लेकिन यदि इस तरह की विपत्तियों के लिए पूर्व में ही उचित तैयारी कर ली जाये और बाढ़ नियंत्रण तथा प्रबंधन के लिए ठोस कदम उठाएगी तो जन और धन दोनों की सुरक्षा हो पायेगी.
विकास के नाम पर जंगलों का विध्वंस, नदियों से छेड़-छाड़, वातावरण में कार्बन का उत्सर्जन,कंक्रीट जंगल का विस्तार, खनिज एवं वनकीय संपत्ति का अंधाधुंध दोहन,भूगर्भिक जल का अत्यधिक बर्बादी अर्थात प्रकृति से अनुचित छेड़-छाड़ पर कड़ाई के साथ रोक लगाने हेतु केवल कानून ही न बने वरन पूर्व में हुए या अब तक जो हो चूका है उस की क्षतिपूर्ति कि भी समुचित व्यवस्था करना हर पृथ्वी वासियों का कर्तव्य हो. कागजों में होने वाले वृक्षारोपण,जल-संरक्षण एवं गैर जिम्मेराना उत्खनन आदि पर अंकुश लगाना पड़ेगा और इन सभी में संलग्न माफियाओं का अंत करना होगा.
अगर सरकार इस बार की भीषण प्रकोप से शिक्षा ले कर आगत भविष्य में देश की जनता को ऐसी विषम परिस्थिति का सामना न करना पड़े इस हेतु सभी संगठित हो कर मंत्रणा करें और समाधान करने की सोचें, इसकी रोकथाम किस तरह हो इस पर विशेषज्ञों की ray ले एक निष्कर्ष पर पहुँच कर उसे कार्यान्वयन करें . सरकार के साथ देश के हर नागरिक इसकेलिए उद्द्यत हो जायेंगे तो प्रकृति की अमूल्य देन जल और सबसे बड़ा रसायन देश के लिए अभिशाप नहीं वरदान प्रतीत होगा.
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