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ग्रास, वास और कपास ये तीन मानव के लिए मूलभूत आवश्यकताएँ हैं जिनकी पूर्ति मात्र वृक्ष से ही होती है. सृष्टि के आरम्भ से ही मानव प्रकृति -प्रेमी रहा है. प्रकृति मनुष्य को जीवन शक्ति प्रदान करती है. प्रकृति का एक aham अंग है वन जो वृक्षों, पौधों के समूह से बनती है.हरीतिमा के दीदार से मानव जीवन का हर विषाद विस्मृत हो जाता है. निराशा,खिन्नता एवं असहाय ह्रदय में भी वन की मोहकता से आशा का अनुपम संचार जागृत हो जाता है. पंक्षियों का कलरव, नदियों का कल-कल , झरनों का झर-झर, पवन का सर-सर,फूलों से सुसज्जित अलौकिक छटा बिखेरता गगनचुम्बी ही नहीं धरती को चूमता हुआ वृक्ष एवं पौधे,फलों से लदा वन सम्पदा और जीवजन्तुओं का निवास स्थान हर मानव को आकर्षित करता है. वन का अप्रतिम सौंदर्य निर्जीव हृदय को भी सजीव बन देती है. वन की अपूर्व छटा किस सहृदय के हृदय को आवर्जित नहीं करती. इनकी उपयोगिता और मह्त्व से संसार का हर प्राणी अवगत है. पर्यावरण को उत्तम बनाना तथा मानव को औषधियां , आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी इत्यादि प्रदान करना वन का अहम कार्यों में आता है. वन राष्ट्रीय धरोहर है.
मानव जीवन का आश्रयस्थल प्रकृति ही है. स्व-उन्नति और विश्व -उन्नति में प्रकृति का योगदान निहित है. प्रकृति मानव की आत्मा है, मनुष्य की कामनाओं को पूर्ण करता है,अभिन्न मित्र भी है. मानव कल्याणार्थ अहर्निश तत्पर रहता है. वनों से सदा मानव को लाभ ही मिला है. देश के अर्थ व्यवस्था में वनों का महनीय योगदान है. वन रोज़गार सृजक है. वनों के विविध कार्य अर्थात लकड़ी काटना , टिम्बर अदि बनाना , जड़ी-बूटी संग्रह करना आदि कार्य से मानव को रोजगार मिलता है. वन से जलवायु संतुलित रहती है.अतिवृष्टि से नदियों में बाढ़ का वेग वन में पहुँचकर काम हो जाता है. वन जल संरक्षण करता है और मानव को बाढ़ के प्रकोप से भी बचाता है. सीसम,चीड़,टिक,खैर,सखुवा,साल चन्दन,निम अदि अनेकों प्रजातियों से पूर्ण वन उत्पाद से प्राप्त लकड़ी फर्नीचर बनाने से लेकर, रेल का स्लीपर , रेल का डब्बा तथा गृह निर्माण तक के कार्य एवं ग्रामीण तथा वन क्षेत्र में जलावन एवं पशु चारा तक प्रदान करता है. वन प्राकृतिक सुंदरता में रूचि रखने वाले पर्यटकों के लिए मनोरंजन का केंद्र भी है. वास्तव में वन राष्ट्रीय सम्पदा का मूल श्रोत है. वन विविध प्रकार के उद्योगों में सहायक ही नहीं वरन हमारे जीवन के लिए विभिन्न रूपों में सहयोगी होता है.
स्वर्गीया श्रीमती इंदिरा गांधी जी आज से ३०-३२ वर्ष पहले ही जब अपना २० सूत्री कार्यक्रम घोषित किया था उस समय यह धारणा थी कि वनों की सुरक्षा हो , इसकी संख्या में वृद्धि हो इसलिए अधिक से अधिक मात्रा में वृक्षा- रोपण हो . स्वर्गीय श्री संजय गांधी को इसका श्रेय जाता है क्योंकि उन्होंने वृक्षारोपण कार्यक्रम में वृहद् रूप में योगदान किया. सड़क के दोनों ओर वृक्ष लगाया गया जिसके पीछे उद्देश्य था सड़क पर चलने वाले मानव को राहत के साथ-साथ सड़क किनारे के जमीन का समुचित उपयोग भी हो. आज वही वृक्ष हर मौसम में कवच की तरह सुरक्षा प्रदान करता है. यह कार्य वास्तव में अभिनन्दनीय है.
दुनियां में विकास के साथ-साथ इन विकास के कारण होने वाले प्रकृति की क्षतियों से वचाव केवल वन ही कर सकती है. कार्बन उत्सर्जन औद्योगिक विकास का दुष्परिणाम है और इसको संतुलित केवल वन ही कर सकता है. जितना अधिक विकास होगा उतना अधिक दूषित गैस वातावरण में फैलेगा और पर्यावण प्रदूषित होगा तो इस से बचाव मात्र और मात्र वन ही कर सकता है. जितना अधिक वन होगा उतना अधिक कार्बन ये नीलकंठ की तरह पान कर लेगा और पर्यावरण में आक्सीजन की मात्रा को बढ़ाये रखेगा.
अतः वनसंरक्षण इस देश केलिए ही नहीं वरन समस्त धरती के लिए अत्यन्त आवश्यक है. और इस कार्य के लिए मानव को जागरूक होना है. राष्ट्र को ही नहीं समस्त विश्व को वन-मस्तिष्कीय बनाना आवश्यक है.
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