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आरक्षण का अक्षय पात्र

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बिन मांगे मोती मिले ,मांगे मिले न भीख यह कहावत प्रचलित है ,मेरी दादी की प्रथम सीख थी .लेकिन आज के परिपेक्ष्य में यह कहावत असत्य ही प्रतीत होता है क्योंकि आरक्षण के लिए कुछ वर्ग जो आवाज़ उठाते हैं ,हो हल्ला करके देश की शान्ति भंग करते हैं ,देश के अमूल्य धरोहर का सर्वनाश करते हैं ,प्राकृतिक सम्पदा को नष्ट करते हैं ,आंदोलन करते हैं ,भौतिक सम्पदा ही नहीं निरपराध मानव का रक्त बहाने में भी संकोच नहीं करते हैं ,महिलाओं के साथ अशोभनीय आचरण करने से भी परहेज नहीं करते , गाली देना ,या कुछ भी असमाजिक व्यवहार करने में अपना हक़ समझने वाले इन महान मानव को सरकार पारितोषिक ही नहीं देती आरक्षण रुपी अक्षय पात्र थमा कर वर्तमान ही नहीं भविष्य भी सुरक्षित कर अपना सबसे महान कर्तव्य मानती है .
यह अन्याय आरम्भ से ही चल रहा है ,संसद में कोई भी सरकार हो सबकी एक ही नीति है वोट की राजनीति करना .किसी भी तरह से चुनाव में वोट लेकर कुर्सी चाहिए ,सिंहासन चाहिए . मात्र पद के लिए कुछ भी अन्याय करने को तत्पर रहते हैं .गुजरात और हरियाणा इसके ज्वलन्त उदहारण हैं .इनदोनों राज्यों में चक्का जाम ,प्रदर्शन ,धरना ,तोड़ फोड़ आदि से जनसाधारण को कितनी तकलीफें निर्दोष जनता को उठानी पड़ी ,कितने को भीषण यातनाएँ भुगतनी पड़ी यह सर्व विदित है ,और इस तरह की अराजकता फैलाने वालों के समक्ष सरकार ने घुटना टेक दी .सरकार सम्भवतः चुनाव में असफलता के भय से आरक्षण रुपी अक्षयपात्र थमा दिया .
सरकार एक ओर जाति बंधन से ऊपर उठने की बात करती है और दूसरी ओर सरकार इसी जातिगत आधार पर आरक्षण की व्यवस्था करती है आखिर यह दोहरी नीति क्यों ?
जो मानव शान्ति से अपना कार्य करते हैं ,देश की सम्पत्ति की रक्षा करते हैं ,इस आशा एवं विश्वास से चयन करते हैं कि अबकी बार हमारी ओर तो ध्यान जाएगी सरकार की ,हमारे बच्चों की तो भलाई होगी , ”बिन मांगे मोती ……” की आशा में अपना कर्त्तव्य निष्ठा के साथ कर रहे मानव के साथ अन्याय करने में सरकार को थोड़ा भी अपराध बोध नहीं होता .उन सब के भविष्य को अंधकारमय बनने में तनिक भी संकोच नहीं होता इन नेताओं को , मुहं का निवाला छीन कर दूसरे को दे देते हैं . उन ईमानदार मनुष्य के बच्चे नौकरी के लिए दर-दर भटकेंगे क्यों की उनका हिस्सा आरक्षण के रूप में किसी दूसरे को देदिया जाता है. फलतः इन वर्ग के लोगों को विदेश की ओर पलायन करना पड़ता है या उनके बच्चे को करना पड़ेगा. अपनी बसुधा को छोड़ कर अपने परिवार से विलग हो कर परदेस में परजीवी होना पड़ेगा. इन आरक्षण मांगने वाले का मुख्य तो सुरसा की तरह अनन्त है.
सरकार की भेद भरी नीति जिससे की उनकी वोट की राजनीति चलती रहती है पर जनकल्याण का कोई काम नहीं हो पाता. सरकार व्यस्त रहती है तुष्टिकरण में फिर चाहे वह तथाकथित पिछड़ों की हो या किसी और की. किसी को आरक्षण से तुष्ट करेंगे तो किसीके धार्मिक उन्माद को अनदेखा कर तुष्ट करेंगे. किसी के धर्म के आड़ में महिलाओं पर अन्याय करने की बात को अनदेखा कर तुष्ट करेंगे. यह किसी एक पार्टी के सरकार की बात नहीं है , यह सभी करते हैं भले वह सत्ता में आने से पहले कुछ और ही क्यों न कहे सत्ता में आने के बाद बामपंथी,दक्षिणपंथी , समाजवादी, साम्यवादी या कोई भी सब केवल सत्ता सुख चाहते हैं और उसकेलिए हर तरह की तुष्टि की राजनीति को बढ़ावा देते हैं.
अब इन सब बातों से जनसाधारण ऊब चुकी है और उन्हें सही मार्ग नहीं दिखाई दे रहा है. अतः वे अपनी क्लेश का अंत करने का मार्ग ढूंढने हेतु विभिन्न उपायों के खोज में लग जाता है , कुछ सद्मार्ग में कायम रह पाते है तो कुछ कुमार्ग को अपना लेते है और कुछ पलायन का मार्ग पकड़ लेते हैं जिसका अंत आत्महत्या के रूप में निकल आता है.
इस आरक्षणरूपी दानव का जब तक अंत नहीं होगा देश में आपसी एकता नहीं पनप सकेगा. सरकार, समाजशास्त्री या नीति निर्धारक विचारक सभी इसके दोषी हैं. समाज से अगर अपराध हटाना है तो सरकार को अपने जनताओं के संग विभेद का अंत करना होगा और इसका पहला सोपान होगा आरक्षण की विभीषिका का अंत.

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