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कुछ दिन पहले कहीं पढ़ा था कि पक्षियों की प्रजाति विलुप्त हो रही है. पिछली सरकार ने विशेष ध्यान नहीं दिया था . लेकिन वर्तमान सरकार प्रयत्नरत है कि इसकी रक्षा हो, वास्तव में चिड़ियों की चहचहाहट , प्रातःकाल मधुर ध्वनि अब कहाँ सुनने को मिलता है. गर्मियों के महीने में कोयल की मीठी आवाज़ विशेषकर आम के मौसम में कोयल की कूक से वातावरण मनोरम प्रतीत होता था. लेकिन यह सब अब कहाँ दृष्टिगत होता है? उस मीठी ध्वनि को सुनने केलिए हम तरस जाते हैं . जिस तरह फलों का राजा आम की प्रतिवर्ष प्रतीक्षा करते हैं उसी तरह कोयल की संगीतमय ध्वनि को सुनने के लिए लालायित रहते हैं. आज न चहचहाहट सुनने को मिलती है न मोनरम करने वाला वातावरण को वह संगीतमयी ध्वनि .
तो ये पक्षियां कहाँ गयीं? इनका ह्रास क्यों हो रहा है? सब कुछ स्वार्थी मानव का किया धरा है. मानव ने अपनी सुविधा के नाम पर विभिन्न अविष्कार किये ओर उनका दुरूपयोग भी किया , फलस्वरूप इन पक्षियों की ही नहीं , परन्तु सारे इकोसिस्टम को ही वर्बाद कर डाला. अब भुगतना पड़ रहा है मानव को.
मानव ने तो अपने पैर पर कुल्हाड़ी चलाने की ठान ली है. वास्तव में पक्षियों का ही नहीं मानवीयता का भी ह्रास हो रहा है. अनवरत जनसँख्या में वृद्धि तो हो रही है लेकिन गुणवत्ता का अभाव होता जा रहा है. हम किस और जा रहे हैं? कहाँ गयी सच्ची मानवता ? क्या आज परपीड़ा समझनेवाला कोई भी मानव बचा है? किसी के दर्द से दर्द का अहसास होता है? आज तो दूसरे को हानि पहुँचाना, प्रताड़ित करना, उपेक्षा करना ही मानव का लक्ष्य है. मानव का मुख्य उद्देश्य है अपनी स्वार्थ की पूर्ति करना . किसी भी तरह अर्थोपार्जन करना निरर्थक जीवन व्यतीत करना . हर मानव एक दूसरे पर आरोप मढ़ते रहते हैं, निंदा करते हैं.
कहाँ गए वे राम जो मानव उद्धार के लिए इस धरा पर अवतरित हुए थे . अपने पिता के वचन पालन केलिए १४ वर्ष वन जाने में भी नहीं हिचके. कहाँ गयी वे सीता जो पति के सान्निध्य के लिए प्रसन्नता के साथ वन चलीगयी? आज कि प्रेयसी या पत्नी तो स्वसुख में ही अपना सुख समझती है. कुछ तो भौतिक सुख के लिए पति को भी त्याग देती है. यह ह्रास नहीं तो क्या हुआ? कहाँ गए वे कृष्ण जो संसार की रक्षा के लिए कालिया नाग का मर्दन कर दिए थे? कहाँ गयी द्रौपदी जिनके प्रार्थना पर भगवान कृष्ण स्वयं आ गए थे रक्षा करने के लिए. आज की बेटियां तड़पती रहती है,लांछित और अपमानित होती रहती है लेकिन कृष्ण के पास उनकी आवाज़ नहीं पहुंचती यह मानवता का ह्रास ही तो है. आज की महिला में दुर्गा वाली शक्ति कहाँ खो गयी? कहाँ गए गांधीजी जो देश की आजादी के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन होम कर दिए? असंख्य वीर सपूत हँसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन समर्पित दिए .
आज तो मात्र अपना भला हो .स्वहित के लिए ही जीवित रहते हैं आज के मनुष्य.कोई भी क्षेत्र हो राजनितिक हो या फिल्म जगत हो या अन्य क्षेत्र. यहाँ तक कि कुछ साधुवर्ग तक भी मात्र अपने स्वार्थ के लिए ही कार्य करते हैं. आतंकबाद रूपी दानव सर्वत्र छुपा हुआ है, कब किस ओर किस गली से आ कर निर्दोष मानव की हत्या कर देता है, किसी को ज्ञात नहीं होता है. एक देश दूसरे देश पर दोषारोपण कर के मौन हो जाता है. jiski मौत हुई है उस परिवार के लोगों को मात्र जीवन पर्यत्न मार्मिक कष्ट से जूझना पड़ता है. समाज कुछ देर तो बातें करते हैं फिर अपने कार्य में संग्लग्न हो जाते है. भुगतना तो पीड़ित परिवार को होता है जिसके घर से लाल गया हो. मात्र कुछ रुपयों के लिए मानव कलंकित होता रहता है. बेटियां दहेज़ की बलिबेदी पर, दुष्कर्मी के हवस का शिकार होती हैं, यह मानव का पतन नहीं है तो क्या है? आतंकवादी किसी के सगे नहीं होते. वे न किसी के भाई , किसीका पिता , न किसीका बेटा ,न बेटी,बहन अर्थात कोई रिश्ता नहीं . बस आतंक फैलाना ही मात्र उद्देश्य है. मानव का विनाश ओर मानवता का विनाश ही उनका कर्तव्य होता है.
प्रचीन कल की तड़का हो, मारीच या सुबाहु या कंस या अन्य सबका लक्ष्य मानव वध ही तो था. आज भी यही उद्देश्य है इन आतंकवादी राक्षसों का. राक्षस अपना वर्चस्व चाहते थे ओर ये आतंकवादी भी यही चाहते हैं. कई देश ऐसे हैं जहाँ सरकार से ज्यादा प्रभाव वहां के आतंकियों का है. सरकार अगर शांति चाहती भी है तो ये आतंकी आतंक फैलाते हुए अपना वर्चस्व कायम रखे रहते है. संभवतः यह भी एक तिजरथ हो गया है.
काश ! पुनः कोई गांधी होते, राम-कृष्ण आते ओर संसार की कुरीतियों को दूर कर मानव को देवता नहीं तो मानवता का पाठ पढ़ाते, जिससे संसार में पुनः मानवता का उत्थान होता ह्रास नहीं.
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