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बसंत विहार के सामूहिक दुष्कर्म की पीड़िता निर्भया (ज्योति सिंह) की माँ का कहना कि जब भी वसन्तविहार की ओर जाना होता है तो राह चलते अपने बिटिया को ढूंढती रहती हूँ . पता है कि इस दुनिया में नहीं है, मेरी बेटी यहीं कहीं खो गयी है और ज़रूर मिलेगी . यह पढ़कर तथा उसके पीड़ा को अनुभव कर द्रवित हो गयी हूँ. साथ ही पिछले घटना का स्मरण हो आया कि कितना दर्द सहा उस बालिका ने .
निरंतर अपराध में बढ़ोत्तर ही हो रही है . किशोर को सुधारगृह छोड़ने की बात पर निर्भया की माँ का यह कहना अक्षरशः सत्य है, जिस शख्स ने उनकी बेटी के साथ सर्वाधिक बर्बर सलूक किया उसे उम्र का लाभ दिया गया . यदि खतरनाक प्रवृति के नाबालिगों को ऐसे ही उम्र का लाभ मिलता रहा तो वे अपराध से विमुख होने की वजाय अपराध करने को प्रेरित होगा.
यह कथन भी सत्य है कि सम्पूर्ण तंत्र उत्तरदायी है. उनका जीवित होना अन्य अपराधी प्रवृति की लोगों को संरक्षण सदृश प्रतीत होता है, वे सोचते है जब उन्हें फांसी नहीं मिला तो मुझे क्या होगा.
प्रतिदिन दिल दहलाने वाली अनेकों घटना से हम सब अवगत होते रहते हैं . हृदयविदारक घटना से मन विह्वल होता रहता है. लेकिन मूक दर्शक बने रहते हैं. पिछले तीन वर्षों में मात्र राजधानी में ५००० से अधिक दुष्कर्म के मामले विभिन्न थानों में दर्ज़ किये जा चुके हैं. जिसमें ४६% पीड़ित नाबालिग है. ये आंकड़ा मात्र राजधानी की है. सम्पूर्ण भारत में कितनी पीड़िता होंगी, कितनी मासूमों की मृत्यु होगयी होगी,कितनी मानसिक पीड़ा से जूझ रही होगी , कितनी जीवित होते हुए भी मृतप्राय हो रही होंगी . उनसबका परिवार कितनी पीड़ा से जीवन व्यतीत कर रहे होंगे .माँ की कितनी दयनीय दशा होगी , पिता कितने व्यथित होंगे ,परिवार के लोग कितने आहत होंगे ,इस विषय पर हमने कभी सोचा भी है .पेपर में पढ़कर या टी .वी. देखकर थोड़ी देर आहत होते हैं ,विवेचना करते हैं ,फिर अपने कार्य में लीन हो जाते हैं .अभी कुछ दिन पहले ग्रेटर नोयडा में दरन्दों ने कितनी असहाय कर दी थी देश की बेटी के साथ कल भी नाकाम होने पर ड्रग्स की मात्रा अधिक देकर मार डाला .प्रतिदिन इस गम्भीर समस्या से जूझ रही हैं, आहत हो रहो हो बेटियां. तिल -तिल कर मर रही हैं बेटियाँ लेकिन सरकार सो रही है और देश वासी मूक है.
सरकार के पास एक दूसरे पर आरोप मढ़ना ही मात्र कार्य है. पक्ष- विपक्ष पर और विपक्ष पक्ष पर , एक दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं ये. हल्ला -गुल्ला करना,एक दूसरे पर कीचड़ उछालना इनका मुख्य कार्य रह गया है.
महिलाएं अपमानित हो रही हैं लेकिन सरकार जिसे हम चयन कर ,भरोसा कर पदभार देते हैं वे विमुख ही नहीं कतिपय तो सम्मिलित भी हैं. आखिर कब तक अपमानित होती रहेंगी महिलाये? जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त महिलायें असुरक्षित हैं. न बस में, न ट्रेन में , न मॉल में , न सिनेमा हॉल में, न मंदिर में न मस्जिद में , न शिक्षा के मंदिर में , यहाँ तक कि अपनों के बीच,अपने परिवार व घर में भी ये सुरक्षित नहीं हैं. जाये तो जाएँ कहाँ? अपनी अस्मिता की रक्षा किस तरह करें, कोई तो बताये.
ज्योति सिंह को शहीद हुए ३ वर्ष हो गए. कुकर्म की घटना बंद होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है.
क्यों नहीं कठोर कानून है , क्यों सजा त्वरित नहीं होता, कुकर्म कोई नाबालिग बालिग की तरह करे तो उसे बालिग की तरह सजा क्यों न मिले? महिला विरोधी अपराध के लिए कठोर से कठोर सजा का प्रावधान क्यों न हो? हर स्थान पर सुरक्षा कर्मी क्यों नहों तैनात रहती है? राजनेता इसे मुद्दा क्यों नहीं समझते? आये दिन वे अपनी रोटी सेंकने के लोए सदन की कार्यवाही तो रोकते हैं लेकिन वे अपनी माँ बहन की अस्मिता की रक्षा के लिए क्यों आवाज नहीं उठाते ? ज्योति सिंह की माँ का यह कथन कटु तो था की “मंत्रियों के बेटियों के साथ ऐसा नहीं होता , इसलिए वे दर्द नहीं समझते.” कटु इस लिए की बेटी तो बेटी होती है- राजा की हो या प्रजा की. लेकिन माँ का आक्रोश स्वाभाविक है.
आरोपी के लिए ऐसी सजा का प्रावधान क्यों नहीं जिससे इस तरह के अपराध करने से पहले ही उसकी रूह काँप जाय?
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