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अदालत और भाषा

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हिंदी हमारे देश की भाषा है. इसी भाषा के माध्यम से हम एक दूसरे से विचारों का आदान प्रदान करते हैं. हिंदी हैं हम , हिंदुस्तान है वतन हमारा !
लेकिन हिंदी को सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक भाषा बनने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ेगी. पिछले सोमवार को शीर्ष न्यायलय ने हिंदी प्रेमियों को स्तब्ध करने वाला फैसला सुनाया . उसने स्पष्ट कह दिया की सुप्रीम कोर्ट की भाषा अंग्रेजी है. लिहाजा हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में फैसले की प्रति उपलब्ध सम्भव नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने इस सम्बन्ध में दायर याचिका को खारिज कर दिया . मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर, जस्टिस ए के सीकरी और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने यह आदेश दिया.
तो मेरे मन में एक प्रश्न उठता है कि शिक्षा की पद्धति में आमूल-चल परिवर्तन होना चाहिए और शिशु वर्ग से ही देश के हर कोने में हर छात्र को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ायी जानी चाहिए. जिस देश में शीर्ष न्यायपालिका की भाषा अंग्रेजी हो उस देश में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका की भाषा भी अंग्रेजी ही होनी चाहिए. और क्यों न देश की राष्ट्र भाषा ही अंग्रेजी घोषित कर दी जाय. वैसे भी अंग्रेजी के जानकारों की पूछ हिंदी जानकारों से अधिक ही होती है.
माय गॉड , सौरी, थैंक यू , इतना अंग्रेजी तो सभी जानते हैं. तथाकथित उच्चवर्गीय लोग बच्चों से अंग्रेजी में वार्तालाप करना अपनी प्रतिष्ठा समझते है. स्लीपिंग करलो बेटा, रीडिंग करो बेटा, प्लेयिंग के लिए जाओगे, कम कम, गो-गो इत्यादि. पालतू कुत्तों से भी वे अंग्रेजी में ही बात करते हैं, तथाकथित उच्चवर्ग के लोग. शौच कहने में शर्माने वाले को पॉटी कहने में कोई लज्जा नहीं आती और तो और आजकल लोगों को बाथरूम आता है, बच्चे बिछावन पर बाथरूम कर देते हैं, और थोड़ा उच्चवर्गीय हो गए तो वाशरूम आने लगता है और बच्चे भी बेड पर वाशरूम करते हैं. लंगोट की जगह हग्गीज़ ने ले ली है.
पता नहीं क्यों हमारे शीर्ष नेतागण ‘यू एन ओ’ में हिन्दी में भाषण देते हैं और अपने देश की न्यायपालिका की भाषा अंग्रेजी रखते हैं.
मेडिकल की पढ़ाई अंग्रेजी में, लॉ की पढ़ाई अंग्रेजी में , इंजीनियरिंग की पढ़ाई अंग्रेजी में इतना ही नहीं भारत के अधिकांश प्रांतों में हिंदी की पढ़ाई भी अंग्रेजी में ही होती है भईया.
अच्छे दुकानो के नाम अंग्रेजी में, अच्छे होटलों के नाम अंग्रेजी में, अच्छे -अच्छे सडकों के नाम अंग्रेजी में, बच्चों के नाम तक अंग्रेजी में, तो फिर हिंदी का औचित्य ही क्या है?! तभी लोग कहते हैं अंग्रेज चले गए अंग्रेजी छोड़ गए.
आम भारतीयों की तरह सरकार को सलाह देना चाहती हूँ सब कुछ अंग्रेजी में हो और ‘मेक इन इंडिया’ भी अंग्रेजी में हों.

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