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आतंक और खेल

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खेल में देश की भावना आवश्यक है . देश की गरिमा सर्वोपरि है .
खेल दो देशों की आपसी प्रेम केलिए खेला जाता है, परस्पर सौहाद्र के लिए खेला जाता है न की शत्रुता निभाने केलिए.
जब भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट होता है तो लगता है की युद्ध आ गया है,उन्माद सा छ जाता है. सुनने वालों के और देखनेवालों पर.
भारत पाकिस्तान के बीच क्रिकेट की महत्ता है ,खेलना चाहिए. यदि किसी कारण वस एक दूसरे के देश में खेलना संभव नहीं हो रहा है , किसी पार्टी के विरोध या अन्य कारण से हिचक हो तो देश की गरिमा सबसे ऊपर है. भय की छाँव में या हिचक की छाँव में कोई भी कार्य नहीं करनी चाहिए.
हिंदुस्तान पाकिस्तान में जब इतनी वैमनस्यता है की एक दूसरे के देश में खेल नहीं सकते . क्रीड़ा -भूमि श्रीलंका का चयन किया गया है , कुरुक्षेत्र का मैदान हो जैसे श्रीलंका! सीमापार , एल.ओ.सी. पर हर दिन गोली बारूद चलती है . पाकिस्तान आतंकियों को भारत भेज आतंक फैलता है और हम उन्हीं के साथ क्रिकेट खेलें? खेल सौहाद्रपूर्ण वातावरण में हो तो खेल, खेल होता है. सभी ने देखा है जब भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट खेला जाता है तब दोनों देश के लोग टी.वि. से चिपके रहते हैं और लोग खेल का आनंद नहीं उठा रहे होते हैं वरन उनके दिल और दिमाग में मात्र जंग चल रहा होता है. लगता रहता है जैसे ‘वर्चुअल वॉर’ चल रहा हो. शत्रु संग खेल! आर्थिक आमदनी बढ़ाना ही उद्देश्य है? पाकिस्तान माला-मॉल हो जाये ,उसके साथ हम भी हो जाये, जिनसे हम एक पल के लिए भी मित्र नहीं बन सकते उनसे खेलने का क्या औचित्य? उस खेल को दूर से नमस्कार.
जब दोनों देश अपने अपने देश के खेल के मैदान में खेलने में असुरक्षित महसूस करते है और खेल नहीं करवा सकते तो क्या औचित्य है खेलने का ? इसलिए की पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो, हम अन्य देश में रणभूमि तैयार करें? या अपनी कुछ आमदनी के लिए शत्रु के साथ खेलें? हमारे देश में इतना अभाव भी नहीं है.
शुरू से आज तक के भारत के सारे प्रधान मंत्रियों ने पाकिस्तान संग दोस्ती की हाथ बढ़ाई पर हुआ क्या , पाकिस्तान ने सदा पीठ में छुरा भोका .
जबसे मोदीजी प्रधानमंत्री हुए हैं ,निरंतर प्रयत्नरत है की संबंधों में सुधार हो लेकिन पाकिस्तानियों को यह समझ नहीं आती. कभी हमारे वीर सैनिकों का सर काट कर तो कभी मौत का तांडव करके . कल ही तो २६/११ बिता है. हम कैसे उन दिनों को भूल सकते हैं? हेमंत करकरे , अशोक कामटे जैसे अनेकों वीर सपूतों को खोये हैं, फिर भी हमारे प्रधानमंत्री जी लकीर पीटने में विश्वास नहीं करते, उचित भी है लेकिन पाकिस्तान की यह नीति – हम नहीं सुधरेंगे तो फिर खेल केलिए ही क्योँ औपचारिकता? कहीं पढ़े थे रिपु कभी मित्र नहीं होते,पाकिस्तान के सम्बन्ध में अक्षरसः सत्य प्रमाणित होता है. भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है यह तो ज्ञात नहीं लेकिन भूत या वर्तमान में जो पाकिस्तान का व्यव्हार रहा है उससे नहीं प्रतीत होता है की कभी वे भारत के मित्र बनेंगे.
राजीव शुक्ल जी का कहना है – खेल में राजनीति नहीं आनी चाहिए. राजनीति तो हर क्षेत्र में होती है ,चाहे वह परिवार हो ,फिल्म लाइन हो ,या समाज का अन्य वर्ग हो .हर स्थिति में राजनीति तो होती ही है .मृत्यु के उपरान्त भी लोग राजनीति करते हैं की अमुक नेता ने यह किया तो अमुक ने यह किया . वे हमारे है तो अमुक नेता हमारे हैं इत्यादि इत्यादि .
शत्रु के साथ एक ही खेल हो सकता है वह है युद्ध का खेल .षठ के साथ जब तक षठ की तरह आचरण नहीं किया जाता उसे समझ नहीं आता .जब तक आर पर की लड़ाई नहीं होगी पाकिस्तानी आतंकवाद समाप्त नहीं होगा .आतंकवादी पाकिस्तान से आये हैं ,जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को पनाह देना बंद नहीं करेगा ,तब तक कोई भी खेल साथ नहीं खेलना चाहिए ये मेरा अभिमत है .आतंक को पनाह नहीं देने से भारत ही नहीं पाकिस्तान के निर्दोष जनता को भी राहत मिलेगी .भारत पाक क्या सम्पूर्ण संसार की जनता अमन से जीवन यापन कर सकता है .अतः जब तक पाकिस्तान आतंकवादी को प्रश्रय देना बंद नहीं करेगा ,भारत के साथ भाई की तरह आचरण नहीं करेगा तब तक साथ नहीं खेलना चाहिए .

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