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निष्ठा,त्याग,पवित्रता एवं शक्ति की मूर्ति

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Indira Gandhi

श्रीमती इन्दिरा गांधी नायिका सदृश भारतीय नारियों के लिए आदर्श रही हैं. वे आत्म त्यागी , परोपकारी स्त्री के रूप में विख्यात थीं. जो विषम परिस्थितियों में अनेक कठिनता के वाबजूद सदैव देश के प्रति निष्ठावान एवं दृढ सकल्प रही थीं.
१९ नवंबर १९१७ को भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री का जन्म दिवस है. भारतीय नारियों के लिए आदर्श नारी के रूप में पूजनीय रही हैं. वे आत्म संयमी ,त्यागमयी परोपकारी निष्ठावान एवं दृढ संकल्प रही हैं.
श्रीमती गांधी भारतीय राजनीति का अत्यंत विलक्षण व्यक्तित्व थीं. बाल्यकाल से ही उनका व्यक्तित्व विलक्षण था. यह कहावत अक्षरशः सत्य प्रमाणित होती है की “पूत के पांव पालने में ही दिख जाता है”. उन्होने अल्प वयस में ही १९३० में ‘सविनय कायदा भंग’ आंदोलन के समय कांग्रेस के स्वयं सेवकों की सहायता के लिए छोटे बच्चों की ‘वानर सेना’ स्थापित की. इससे विलक्षणता या संगठन शक्ति परिलक्षित होती है. मात्र 13 वर्ष की आयु में इस तरह का कार्य उनके प्रतिभा को दर्शाती है. १९४२ में ‘चले जाओ ‘ आंदोलन में सम्मिलित होने के कारण उन्हें जेल की सजा हुई और उनकी यह जेल यात्रा उनके विशिष्ट व्यक्तित्व का परिचायक हुआ .वे अपनी कार्यक्षमता एवं कुशलता से सबको चकित करती रही है.अजीव उत्साह एवं कर्मठता तथा कार्य कुशला थीं.

श्रीमती गांधी १९५५ में राष्ट्रिय कांग्रेस कार्यकारी सदस्या और १९५९ में राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनी गयीं . यह उनके कठिन परिश्रम का ही फल था.
देश के इतने बड़े घराने के होने के बाद भी लेश मात्र भी घमंड नहीं था. वह मात्र नेहरू परिवार की ही नहीं देश की बेटी थी. इस माटी की अनमोल रत्न थी और यह उन्होंने प्रमाणित भी कर दिया. देश हित केलिए होम हो गयीं.
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जो उनके पिता भी थे , उनका देहांत १९६४ में हो गया. लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और उन्ही के कार्यकाल में ये सूचना और नभोवाणी खाते की मंत्री पद को संभाला. इस पद को भी उन्होंने अत्यंत परिश्रम तथा लगन के साथ निभाया.
अकस्मात १९६६ में शास्त्रीजी के निधन के पश्चात प्रधानमंत्री के लिए उनका चयन हुआ. देश के हर महिला के लिए गौरव की बात हुई. जिस समय वे प्रधानमंत्री के पद पर आरूढ़ हुई उस समय देश के मूर्धन्य राजनीतिज्ञों का यह विश्वास था की वे ऊँगली के इशारों पर नाचती रहेंगी. परन्तु ऐसा नहीं हुआ . अपनी कार्यक्षमता से उनका व्यक्तित्व निखरता चला गया. ‘एकला चलो….’की राह पर ‘बातें काम, काम अधिक’ का पालन करते हुए वह देश की उन्नति केलिए कार्य करती रहीं.
प्रधानमंत्री होने साथ इंदिराजी अपनी राजनितिक सूझ-बुझ और बेमिसाल केंद्रीकरण के लिए ख्यात थीं. वो स्वतंत्रता के लिए इस तरह तैयार रहती थी कि बांग्लादेश निर्माण कर वहां के लोगों को स्वतंत्रता दिलाई. पाकिस्तान के साथ बांग्लादेश की लड़ाई के समय उन्हें लोग दुर्गा माता का अवतार मानते थे.
जिस समय श्रीमती गांधी सत्तारूढ़ हुई थीं उस समय देश की राष्ट्रिय एवं सामाजिक स्थिति अत्यंत डावांडोल थी. ऐसी भीषण परिस्थिति में उन्होंने जनमानस से पूर्ण समर्थन प्राप्त कर शक्तिशाली नेता के रूप में प्रस्तुत हुई. उनके विरोधियों की संख्या बहुत थी . महंगाई सुरसा की मुख की तरह मुख फाडे खड़ी थी . देश में विघटनकारी प्रवृतियां सर उठाने लगी थी . परन्तु श्रीमती गांधी ने इन सबका प्रवीणता से डट कर सामना किया. उन्होंने देश की राजनितिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. भारत की राजनीति के डूबते हुए जहाज की वह एक मात्र नाविक रहीं, जो जहाज को बढ़ाने में समर्थ थीं. पंजाब समस्या के समाधान के लिए उन्होंने जो दृढ कदम उठाया ,प्रशंसनीय था . आलोचना हुई परन्तु कालांतर में यह कदम आवश्यक प्रमाणित हुई.
उनका यह विचार था की प्रान्तीयता और राष्ट्र की एकता की भावना राष्ट्र की एकता की द्योतक है. उनकी यह मान्यता की समस्त भारत में विविधता में एकता के दर्शन होते हैं, उत्कृष्ट मानसिकता का परिचायक है.
कृषक और मज़दूरों के प्रति उनका उत्कट लगाव था. उनका यह कथन की ‘जो किसान सारे देश को खिलाता , वह स्वयं भूखा रहे , इससे बड़ी लज़्ज़ा की बात और क्या हो सकती है” यह प्रशंसनीय वक्तव्य था.वह कृषि और उद्योगों दोनों को ही सामान रूप से प्रश्रय देने की पक्षधर थीं.
देश गुलाम रहने के कारण देश में साक्षरों की संख्या कम थी जो कि देश की प्रगति में बाधक था . वह जानती थी की देश की प्रगति में शिक्षा ही वह माध्यम है जिसके द्वारा देश का सर्वांगीण विकास हो सकता है. वे समाज के पिछड़े वर्गों को ऊँचा उठाने के लिए निरंतर प्रयास करती रहीं.
राष्ट्रोत्थान में श्रीमती गांधी की महनीय भूमिका रही है. उनकी इस भूमिका को विस्मृत नहीं किया जा सकता है. यह सत्य है कि स्थायी विवादों के घेरे में घिरी रहीं और विवाद के फलस्वरूप उन्नति ही हुई. राष्ट्र को एक समाजवादी समाज की स्थापना और सामाजिक न्याय के लिए श्रीमती गांधी के उठाये गए कदम सदैव याद किये जायेंगे.
१९७२ में इंदिराजी ने पाकिस्तान से द्विपक्षीय ‘शिमला समझौता’ करके अपने सशक्त होने का परिचय दिया .
उनके जीवन में दुःख भी असहनीय था ,बाल्यकाल में माता कमला नेहरू अस्वस्थ रहने से एकाकीपन तथा असमय मृत्यु से ,पिता की व्यस्तता ,अंग्रेजों के विरोध के कारण जेल जाना आदि कारणों से उनसे दूर रहना ,असमय पति की मृत्यु के कारण अकेलापन से जूझने के बाद भी धैर्य धारण की हुई रहती थीं लेकिन छोटे बेटे संजय गांधी की असमय निधन से टूट गयी थीं अंदर से खोखला जर्जर सी हो गयी थीं .फिर भी ऊपर से अविचल अडिग होकर लौह -स्त्री के रूप में देश हितार्थ कार्य सर्वदा तत्पर रहीं ,इससे अधिक कर्त्तव्य और क्या होगा ? मेरी दृष्टि में अन्य स्त्री नहीं हो सकती .सम्भवतः उनके लिए यह उक्ति सर्वथा सत्य प्रमाणित होती है – नारी तेरे रूप अनेक ….. भारत की प्रथम महिला थीं जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया .
१९७५ में इलाहबाद उच्च न्यायालय ने इंदिराजी के रायबरेली मतदार संघ में लोकसभा पर चुने जाने को अवैध्य ठहराया गया .उन्होंने १९७५ में आपातकालीन लागू कीं,भारत की जनता नाराज़ हो गयी जिसके कारण उन्हें पराजय का मुख देखना पड़ा. १९७७ के चुनाव में हार गयीं .विपक्ष के घटकों में ताल मेल नहीं होने के कारण १९८० में चुनाव हुआ और उनके नेतृत्व में कांग्रेस की प्रबल जीत हुई और पुनः वे देदीप्यमान नक्षत्र सदृश उभरीं और अपनी चमक से जीवन पर्यन्त दीपक की तरह अपने आलोक से देश को प्रकाशित करती रहीं .
सैनिक कार्यवाही कर अतिरेक को ख़त्म करने हेतु स्वर्ण मंदिर में सैनिक का प्रवेश करने के फैसला बहुत कठिन था , परन्तु बहुत सावधानियाँ रखते हुए उन्होंने यह कदम उठाया. पर ३१ अक्टूबर १९८४ में उनके अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी. यह देश के लिए बहुत ही दुखद था. हम ने लौह महिला खो दिया.

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