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नारी एक रूप अनेक

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“यत्र नार्यस्तु पूजयंते
रमन्ते तत्र देवताः”
मनु ने ठीक ही कहा था जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां देवता रमण करते है. नारियों के बिना धार्मिक या सामाजिक कोई भी कार्य सफल नहीं होती. नारी सम्माननीय है . भारतीय समाज में नारी का विशिष्ट व गौरव पूर्ण स्थान है. भारतीय संस्कृति में अतीव गौरव की अधिकारिणी सदा से रही है. सभी शास्त्र वेद , पुराण , स्मृत,संस्कृति भी स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी स्वीकारते हैं. नारी को लक्ष्मीस्वरूपा माना जाता है. स्त्री बिना घर,जंगल सदृश होता है. “बिन घरनी घर भूतक डेरा.” अर्थात नारी के बिना घर भूतों का स्थान हो जाता है.
नारी आवला नहीं सबला है. अपने चरित्र बल से, साधना से ,त्याग से,नारी अपने कुल की समाज की उद्धारक बन जाती है. कहीं पढ़ा था नारी निंदा मत करो , नारी नर की खान . नारी से नर होत है ध्रुव ,प्रह्लाद सामान.
कल से दुर्गा पूजा आरम्भ होने वाली है. माँ दुर्गा की पूजा होती है. जगत जननी हैं, पालनहार हैं, शक्तिस्वरूपा हैं. अपने दस रूपों में कभी शक्तिरूप में दानवों का संघार करती है,तो कभी ब्रह्मचारिणी बनकर तपोवल से धरा को पवित्र करती हैं, तो कभी अपने वत्सल्यता की छावों से इस धरातल को अपने में समेटे रहती हैं. सतत रक्षा में संग्लग्न रहती हैं. वास्तव में हर जीव की जीवनदायिनी हैं. हर नारी को अपने अनुरूप बनाने को कटिबद्ध हैं. हम नारी को ही तो हर साल जगाने आती हैं. नारी को हर रूप में जीना सीखाने आती हैं.
वास्तव में नारी सृष्टि की अनुपम कृति हैं. देश की रीढ़ है नारी . नारी त्याग और तपस्या की जाज्वल्यमान विभूति है. इसका मूल मन्त्र है – त्याग.
नारी का पूर्व जीवन तपस्या काल है और उत्तर जीवन त्याग का काल मानना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा. कवि व लेखकों की लेखनी की विशिष्टता रही है नारी .
नारी एक ही है पर उसके रूप अनेक हैं.
माँ के रूप में नारी – जननी है, वह अपने संतान के लिए सदैव अडिग रहती है . तपती गर्मी- बारिश की बौछार या कड़ाके की ठण्ड हो, वे अपने संतान की रक्षा किसी भी परिस्थिति में करती है. संसार की रक्षा माँ अम्बे दुर्गा कर रही हैं. धरा को ही लें, वह मानव का कूड़ा कर्कट से ले कर हर भार का वहन अविचल भाव से करती रही हैं. नारी माँ के रूप में अपनी संतान के लिए किसीकी भी परवाह नहीं करती , निर्बाध गति से अपनी संतान के हितार्थ कार्य में संगलग्न रहती है. अपनी संतान को नौ महीने गर्भ में धारण करने तथा विविध कष्ट सहकर उसका पोषण करने के कारण माता की पदवी सबसे प्रमुख है . जगत में माता ही ऐसी है जिस का स्नेह संतान पर जन्म से लेकर शैशव ,बाल्य ,यौवन और प्रौढ़ा अवस्था तक बना रहता है .
नारी बहन के रूप में – अपने भाई के लिए मात्र राखी ही नहीं , हर क्षण उसकी रक्षा के लिए तत्पर रहती है.
एक पुत्री के रूप में – हर नारी अपने माता -पिता के लिए ,उनके सम्मान के लिए सर्वदा तत्पर रहती हैं .
पत्नी के रूप में नारी – प्रत्येक नारी अपने पति के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देती है ,सदैव सहभागिनी रही है .पति को हर परिस्थिति में साथ निभाती है .किसी भी संकट में अडिग रहती है . माता जानकी ही पति के साथ १४ साल वनवास प्रसन्नता के साथ रहीं. पति के जीवन के लिए सावित्री यमराज से लड़कर पति की जान बचायी .
हर रिश्ते को चाहे सास श्वसुर हों ,देवर ननद हो अर्थात सभी सम्बन्धों को निभाती हैं .
परिवार व देश की सम्मान के लिए वीरांगना झाँसी की रानी बन जाती है .रानी लक्ष्मी बाई के के आदर्शों को मानकर वीरांगना बन जाती हैं .श्रीमती इन्दिरा गांधी देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनकर देश के साथ महिलाओं का सम्मान बढ़ाया था ,सदा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से महान महिलायें देश का नाम रौशन करती रहीं हैं .
धनदात्री ,विद्यादात्री माँ लक्ष्मी माँ सरस्वती सदैव नारियों का गौरव बढ़ाया है .कालिदास ,तुलसीदास आदि महान लेखको ने अपनी लेखनी में नारी का गौरव बढ़ाया है .
आशय यह है कि कोई भी क्षेत्र हो नारी सदैव अपने सहयोग से कठिन परिश्रम से त्याग से तपस्या से ख्याति अर्जित की है . सहजभाव से एक रहते हुए भी अनेक रूपों का परिचय दिया है .वास्तव में नारी कि बिना अस्तित्व ही नहीं है संसार की .
एक महान लेखक ने कहा था माँ तेरे कितने रूप आँखों में है पानी आँचल में है दूध .वास्तव में नारी अपने रक्त कि कण कण से इस धरा को सञ्चित करती रहीं हैं.नारी एक हैं रूप अनेक .
नारी माता ,बहन ,नानी , दादी अर्थात हर रिश्ता सहजता से निभाती हैं . इसी तरह संसार के हर क्षेत्र में चाहे वह अभिनेत्री हो या नेतृ हो या उच्च पदस्थ हो या निम्न पदस्थ हर रूप में अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करती आई हैं ,इसलिए कहा गया है नारी तेरे कितने रूप .

जिस तरह मानव को जीवित रखने के लिए रुधिर संचार का माध्यम नाड़ी होता है उसी तरह मानव समाज की वृद्धि विकास हेतु नारी की आवश्यकता होती है ,तभी तो कहते है नारी इस धरा की धरोहर है ,सबसे अनोखा कृति है .ईश्वर की सबसे अनमोल रचना है ,विधाता की अनुपम कृपा है जिसने नारी के रूप में सृष्टि को अनुपम उपहार दिया है .धरा की हर जीव इसके लिए भगवान की ऋणी रहेंगे .
नारी आद्यशक्ति ,जगन्मया सहजता की भंडार है .
फिर भी दुःख इस बात का है की हम आज इस तरह के समाज में जी रहें हैं जहाँ यह लिखने का मन कर रहा है की ‘यत्र पीडयते नारी तत्र रमन्ते राक्षसः’ न की यत्र पूजयंते नारी , तत्र रमन्ते देवताः !
विजयदशमी हो या दीपावली पूजे जायेंगे नारी के रूप लेकिन जीवित नारियों को स्वच्छंद जीने नहीं देंगे. नारी को माँ कहेंगे बहन कहेंगे , प्रियतमा कहेंगे लेकिन शोषण उन्ही का करेंगे. तार्किक लोग कहेंगे ठीक कपड़ा नहीं पहना अतः बलात्कार हुआ तो उन्हें अपनी माँ में या बहन में ये खोट नज़र क्यों आता है? नज़र ठीक क्यों नहीं करते? दुर्गा में , लक्ष्मी में उनहें कपडे दीखते हैं क्या? नहीं न वहां तो माँ ही दिखती है, फिर और नारियों में उन्हें पहिरन का दोष क्यों दीखता है. बलात्कारियों के दोष को छोटी भूल मानने वालों ने कभी यह सोचा की अगर उनके परिवार को ऐसी भूल का सामना करना पड़े तो भी वे इसे छोटी भूल मानेंगे ? शायद नहीं. तो फिर इस तरह की मानसिकता से ऊपर उठाना ज़रूरी है, और समाज को ऐसा बनाना है जहाँ पुनः यह हो जाये की ‘यत्र पूजयन्ते नारी , रमन्ते तत्र देवताः, कमसे कम मनुष्य या नर तो इस श्लोक में समाहित हो जाये जैसे की ‘यत्र पूजन्ते नारी, तत्र रमन्ते मनुष्यः ! बहुत बड़ी उपलब्धि हो जाएगी. और भारत विश्व पर राज कर सकेगा.

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