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प्रवासी का दर्द

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दूरदर्शन पर प्रधानमंत्री मोदीजी का विदेश भ्रमण का समाचार आ रहा था और मैं आँखे गड़ाए इस दृश्य को देख रही थी. प्रवासी भारतीयों के चेहरे पर मोदीजी को देख कर जो तेज झलक रहा था वह वर्णन नहीं किया जा सकता है , मात्र अनुभव किया जा सकता है. यह अनुभव उन्हें ही हो सकता है जिसने इस दृश्य को देखा.
मोदीजी प्रिय तो हैं हैं, लोकप्रिय भी है, विश्वस्तर में आज वे अति लोकप्रिय हो चुके हैं. भारत का लोकप्रिय न्यूज़ चैनल “आजतक” पर राहुल कँवलजी हम तक समाचार पहुंचा रहे थे . उन्होंने वहाँ उपस्थित प्रवासियों से जब पूछा कि कितने लोग भारत लौटना चाहते हैं तो जवाब में उपस्थित सारे जन एक स्वर में ऊँची आवाज में कहा कि सब जाना चाहते है. हर कोई अपने स्वदेश लौटना चाहता है. देख कर एक बात मन में आई कि कितना दर्द था उनके चेहरे पर, कितना दर्द था उनकी आँखों में,कितना कठिन है. अपने देश से दूर रहकर या विदेश में रहकर अपने पेट के कारण देश से दूर रहकर कोई संतुष्ट नहीं रह सकता है.
लोग विदेश तो चले जाते हैं कुछ दिन तो उन्हें वहाँ अच्छा लगता है , साल-दो साल बाद याद आने लगता है अपना देश, अपना समाज . व्याकुलता बढ़ जाती है. कुछ तो समर्थ हैं अच्छी स्थिति में है , अच्छी नौकरी है ,वे तो रह जाते हैं. लेकिन जिन्हें आर्थिक संकट है वे घर लौटने केलिए औरों से अधिक व्याकुल रहते हैं. लेकिन ऐसी भी स्थिति होती है कि स्वदेश लौटने हेतु यात्रा व्यय की रकम नहीं जुटा पाते हैं और फलतः वे बंधुआ मज़दूर की भांति मज़बूर हो जाते हैं. अकेलेपन से घबड़ा जाते हैं , आकुल हो जाते हैं.हर क्षण ,हर पर्व त्यौहार में या परिवार में कुछ अनहोनी होने पर विदेश में तड़प कर रह जाते हैं.करे तो क्या करे . अधिक प्राप्त करने की चाह में मानव विदेश की ओर उन्मुख हो जाते हैं ,कुछ अपनों की लालसा को पूर्ण करने के लिए पलायन करते हैं लेकिन असफल होने पर पछताते हैं .लोग क्या कहेंगे इस झूठी शान के कारण लौट नहीं पाते और अत्यन्त विवशता में रहते हैं .ऐसे दीनहीन मानव व्यर्थ में अपने को कोसता रहता है कि किस घडी में मैं ने विदेश की रुख की. क्यों आये अपना वतन छोड़कर ? अपने वतन में कम से कम सबका साथ तो होता. तिल-तिल कर जीवन व्यतीत तो नहीं करना पड़ता .क्या से क्या हो गए. न अपना अस्तित्व हैं न अपनों का . कुछ न कर पाने की दुःख से जीते जी मृत्यु सदृश अर्थात मृतप्राय हो जाते हैं. कुछ मानसिक रोग से ग्रस्त हो जाता है मेरे एक परिचित अरब गए . काफी संपन्न थे लेकिन और पाने की भूख में चले गए हुआ यह कि नेपाल की नौकरी भी हाथ से गयी. भाई भतीजा संपत्ति भी हथिया लिया , पत्नी बच्चे अलग से त्रासदी के शिकार हो गए. और वो मानव बस देखने के सिवा कुछ भी नहीं कर पाये. नाकामी के कारण नशा सेवन करने लगे. किसी अन्य परिचित ने अरब से उनकी स्थिति का सन्देश भेजा तो घरवालों ने किसी तरह पैसे भेजे . उस सज्जन के सहयोग से वे घर लौट पाये. अस्थि कंकाल या अस्थि का ढांचा बनकर आये. ये कहावत हैं न कि ‘लौट के बुद्धू घर को आये.’ उनके तो परिचित मिल भी गए. कुछ तो ऐसे ही असमय काल कवलित हो जाते हैं.
कोई विदेश जाता हैं तो हम सोचते हैं उसकी तो मौज़ हैं, तरक्की कर ली उसने . जबकि यथार्थ में ऐसा कुछ नही होता हैं. कुछेक को छोड़ कर अन्य की स्थिति अत्यन्त दयनीय हो जाती हैं. हरेक को दूसरे की थाली में घी दृष्टिगत होता हैं. जबकि यथार्थ में ऐसा नहीं होता हैं. प्रवासी को और भी अपने देश से मोह होता हैं. किसी भारतीय को देखकर वे विदेश में प्रसन्न हो जाते हैं जैसे कोई अपना सगा मिल गया हो.
मोदीजी को देख कर प्रवासी अत्यन्त प्रसन्न हो जाते हैं कि मोदीजी के अथक प्रयास से हम अपने वतन लौट आएंगे. मोदीजी लोकप्रिय तो हैं ही . उनका हर देश में भारतियों से मिलना , उनका हाल चाल लेना वास्तव में उनके ऊँचे कद का परिचायक हैं. लोकप्रिय तो हैं ही सबको विश्वास भी हैं कि भारत इतना विकास करेगा कि प्रवासी अवश्य अपने घर लौट पाएंगे. जो वह विदेश में कर रहे हैं वह वह अपने वतन की उन्नति के लिए कर पाएंगे. ये और भी विश्वविख्यात जनप्रिय हो जायेंगे .कितना अच्छा होगा हम सभी भारतीय एक साथ हर त्यौहार ,हर सुख दुःख में साथ रहेंगे .किसी पर्व में ,हर पल, हर घड़ी अपने की कमी का अनुभव नहीं होगा .देश में इतने उद्योग ,कल-कारखाने या व्यापार होगा जिससे किसी भारतीय को अपने को खोना नहीं पड़ेगा .किसी को पराये देश में व्याकुल आकुल व्यथित होकर जीवन यापन नहीं करना पड़ेगा .हमारे भावी पीढ़ी को मृगमरीचिका के पीछे भागना नहीं पड़ेगा ,प्रवासी बनकर अपनों से दूर भटकना नहीं पड़ेगा वरन सब साथ रहकर आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करेंगे.
जो ये प्रवासी भारतीय दूसरे देश के लिए पेट की खातिर कर रहें हैं वे अपने देश की खातिर करने में अधिक राष्ट्रभक्ति अनुभव कर पायेंगे. हर व्यक्ति जब पैदा होता हैं तो उसके माता-पिता यही कहते हैं के मेरा बेटा देश में नाम कमायेगा. चाहत यह होती है कि देश केलिए ऐसा कुछ करेगा जिससे इसका नाम ऊँचा होगा. नाम रौशन करेगा ,अपनी कार्य क्षमता से देश में विजय पताका लहराएगा , उत्तम नागरिक बनकर देश की सेवा करेगा ,अपनों के मध्य रहकर अपनों की हर प्रसन्नता तथा विपरीत परिस्थिति में सदा साथ रहेगा. परिवार के हर सदस्य की यही कामना रहती हैं साथ कोई नहीं चाहता कि उसके कलेजे का टुकड़ा उससे दूर रहे.

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