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बेकारी की समस्या

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भोपाल से प्रकाशित एक समाचार पत्र में श्री गिरीश उपाध्याजी ने लिखा था कि ‘चपरासी बनने के लिए १४ सौ इंजीनियर ने दी परीक्षा’ उन्होंने लिखा था ५८ सरकारी विभागों में १३३३ चपरासी व चौकीदारी के लिए जो परीक्षा हुई उसमें ३,६२,६८५ अभ्यर्थी शामिल हुए. इन अभ्यर्थियों में १४,००० पोस्ट ग्रेजुएट्स और १४०० इंजीनियर भी थे.
निजी संस्थानों के अत्यधिक कार्य , निरंकुशता , अवकास की कमी , सदा जॉब खोने का भय या अस्थिरता के कारण मानव का सरकारी नौकरी की तरफ झुकाव बढ़ गया है.
पोस्ट ग्रेजुएट एवं इंजीनियर जब चपरासी की पद हेतु परीक्षा देते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस पद क़े लिए वे तैयार हुए हैं वे पद देश में उपलब्ध नहीं है और मज़बूरन वे कोई भी कार्य करने की लिए तत्पर है.
ये भी हो सकता है की वे केवल इंजीनियर या पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री धारी ही हों. उनमे अपने डिग्री के अनुसार कौशल न हो. लेकिन विषय यह है कि अगर उनके पास डिग्री है तो वे कुशल क्यों नहीं हैं, और कुशल हैं तो देश में उनके लिए नौकरी क्यों नहीं है?
देश में विकास दर बढ़ रहा है, नए उद्योग धंधे लग रहे हैं , मेक इन इंडिया और ‘एम इन सी’ की वजह से उद्योग फल-फूल रहा है, लेकिन फिर भी बेरोजगारी एक समस्या बनी हुयी है. उद्योग जगत कहते हैं की स्किल्ड (कुशल) मैनपावर (जनशक्ति) की कमी है ! उनके नजर में कुशल कौन है यह तो वे ही बता सकते हैं. लेकिन आम धारणा तो यही है कि जिनके पास डिग्री है वे कुशल हैं. हो भी क्यों न ? आखिर डिग्री मिली कैसे ?, तभी न जब डिग्री धारक ने परीक्षा पास की अर्थात कुशलता साबित किया . अगर फिर भी वे कुशल नहीं हैं तो उनके डिग्री पर प्रश्नचिन्ह क्यों नहीं. जिन्होंने उनको यह डिग्री दिया वे दोषी क्यों नहीं? वे संस्थान , विद्यालय, विश्वविद्यालय वे परीक्षक दोषी क्यों नहीं ? बना दिया इंजीनियर या एम.बी.ए. बस डिग्री केलिए. समय बर्बाद हुआ पैसे बर्बाद हुए और वह अब भी कुशल नहीं है ! मात्र आई आई टी या एन आई टी क़े प्रोडक्ट अगर कुशल होते हैं और उनको नौकरी मिल जाती है तो फिर निजी व्यापार पर चलने वाली प्राइवेट कालेजों को बंद क्यों नहीं कर दिया जाता. वे अगर मात्र डिग्री बांटने केलिए हैं तो यह तो उन छात्रों क़े साथ लूट ही तो है. इन्हें लूट की लाइसेंस सरकार क्यों देती है ? क्या सरकार इसे भी शराब,सिगरेट ,गुटखा आदि स्वास्थ्य क़े लिए हानिकारक चीजों से जैसे कमाई करती है वैसे ही इन प्राइवेट कॉलेज जिनसे अकुशल प्राविधिक बनते हैं सरकार कमाई करती है ! यह सरकार है या व्यापारी !?
मेरी दृष्टि में चपरासी बनने क़े लिए जिसने अध्ययन किया है उसकी कितनी कठिन परिस्थिति रही होगी ? इस सोच क़े साथ की होगी मुझे तो नौकरी मिलेगी ही .ऐसी परिस्थिति में उस पद क़े लिए उनसे अधिक पढ़ा लिखा या उपाधिधारक उस पद क़े लिए आवेदन भरेगा तो निश्चितरूपेण उसे ही वह पद मिलेगा .तो उन गरीबों का क्या होगा ?उसकी जीविका का क्या होगा ?क्योंकि उसकी डिग्री तो चपरासी पद क़े लिए है .अत्यंत कठिनता से तो वे अध्ययन कर पाया होगा ? कोई जमीन बेचकर तो कोई आभूषण बेचकर तो कोई अत्यधिक कठिनता से,ऐसी परिस्थिति में उनलोगों का क्या होगा ?उनके परिवार को रोटी कैसे मिलेगी ?यह कैसी विडंबना है देश की ?नए नए उद्योग धन्धे खुल रहे हैं लेकिन बेरोज़गारी यथावत है .लाखों का खर्च करने क़े बाद युवकों को या तो नौकरी मिलती नहीं मिलती भी है तो १० १२ हज़ार वेतन इतनी . महगाई में क्या होगा ? एक प्राचीन कहावत याद आ रही है क्या खाऊँ क्या पीऊँ क्या लेकर प्रदेश जाऊँ ?आज क़े नवयुवको क़े साथ यही बात प्रमाणित हो रही है .अपना जीवन व्यतीत करना कठिन है ,ऐसी स्थिति में अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन कैसे करेंगे ?माता -पिता ,पत्नी बच्चों का निर्वाह कैसे करेंगे ? यह विचारनीय प्रश्न है .
भारत में बेकारी की समस्या सुरसा के मुख की तरह बढ़ती ही जा रही है , भीषण अभिशाप है यह .काम नहीं मिलने के कारण योग्य मानव भी हीन भावना से ग्रसित होने लगता है .मैं बेकार हूँ ,किसी लायक नहीं ,यह भावना पनपने लगती है .अपने को हीन समझने के कारण समाज से दूर होने लगता है ,कटने लगता है ,हीनता बोध के कारण एकान्त सेवी होने लगता है ,फलतः मनोरोगी होने की समस्या उत्पन्न हो जाती है .ऐसे असंख्यों मानव से भरा है हमारा समाज .जब बेरोजगारों की समस्या देखती हूँ या सुनती हूँ तो मैं व्याकुल हो जाती हूँ और यह सोचने पर विवश हो जाती हूँ कि वास्तव में देश में कुछ प्रगति भी हुई है?प्राचीन कहावत है खाली मन भूतों का डेरा ,सत्य भी है बेरोज़गार मनुष्य की सोच कुण्ठित होने लगती है .परिणामस्वरुप गलत आचरण की ओर प्रवृत्त होने लगता है .विकृत मानसिकता उत्पन्न होने के कारण चोरी डकैती ठगी , लूट -पाट , हत्या , अपहरण आदि धनाभाव के कारण करने लगता है .
मेरी दृष्टि में बलात्कार भी कहीं न कहीं कारण है क्योंकि खाली दिमाग में शैतान का निवास होता है , सोचने समझने की शक्ति तो नगण्य के सामान रहती है ,आर्थिक अभाव या बेरोज़गारी के कारण अनेकों नवयुवक की शादी तक नहीं हो पाती ,अकेलापन के कारण ऐसा घृणित कार्य भी कर डालता है .ओर समाज के लिए कलंकित हो जाता है .इसका दोषी कौन ?सरकार या समाज या बेरोज़गार होना .मूल में तो गरीबी ही है .यह समस्या अनेकों समस्याओं का जन्मदाता है ,बेकार मानव जिद्दी मनमौजी और उद्दण्ड हो जाता है .इच्छाओं का दमन करते करते अनैतिक मार्ग अपनाने लगता है इस भटकाव से विविध कुरीतियों का प्रादुर्भाव होता है . देश में जनसंख्या की वृद्धि और उसके अनुपात में रोज़गार की कमी भी कारण है .बेरोज़गारी के कारण बढ़ता है कटुता ,ईर्ष्या ,द्वेष ,साधनसम्पन्न मानवों के प्रति द्वेष ,भाई भाई में ईर्ष्या ,मित्रों से वैर आदि .यह भयंकर गम्भीर समस्या कैंसर की बीमारी से भी घातक है .इसका समाधान नहीं किया गया तो महामारी का रूप ले लेगा . मूल कारण है यत्र तत्र विश्वविद्यालय एवं शिक्षण संस्थानों का खुलना. उपाधि तो मिल जाती है लेकिन गुणवत्ता के अभाव में कुशल नहीं हो पाते.ट्रस्टी या संस्थापक तो माला-मॉल हो जाता है लेकिन विद्यार्थी का जीवन अंधकारमय ही रह जाता है. अतः जो संस्था मात्रा से अत्पादन करे वे न रहे परन्तु वही संस्था रहे जो गुणवत्ता से उत्पादन दे. जनसँख्या के वृद्धि के अनुपात में ही रोजगार की वृद्धि होगी तभी सामंजस्य कायम रह सकता है.
गांव से शहर के दिशा में पलायन को नियंत्रण करने के लिए गाँव में ही रोज़गार की सृजन हो स्थानीय तौर पर बेरोज़गारों को रोज़गार मिले इस लिए वहीँ छोटे-छोटे कारखाना खुले न कि विदेशी कम्पनियों द्वारा बड़ी बड़ी कारखाना शहरों में . विदेशी कंपनियां तो जो भारतीय उद्योग है उन्हें पहले खरीदती है और धीरे-धीरे यह बताकर कि हमारे (उनके) देश में ऐसी कारखाना इतने काम आदमियों से चलाये जाते हैं अतः यहाँ भी छटनी करनी है. और फिर कुछ पैसे (मामूली पैसे) देकर या योँ ही किसी भी तरह के बहाने लगाकर लोगों को बेरोजगार कर देते हैं. अतः मेक इन इंडिया पर भी सही तरीके से सोचने की आवश्यकता है.
सम्पूर्ण भारत में विभिन्न विभागों में ,कालेजों में ,संस्थानों में,प्रतिष्ठानों में रिक्तियां तो है लेकिन उस रिक्त स्थानों को भरने का उपक्रम नहीं होता है ! फिर शिक्षकों के आभाव, कर्मियों के अभाव का रोना रोया जाता है. यह भी कारण है बेरोजगारों की संख्या में बढ़ोत्तरी की.
समस्या का समाधान करना सरकार का कर्तव्य है. वैसे संस्थान जहाँ से कुशलता न सिखाकर मात्र डिग्री दी जाती है उनको अविलम्ब बंद करें. अगले वर्ष के आवश्यकता के अनुसार किन किन क्षेत्रों में कितनी मात्रा में किन किन तरह के कर्मियों की आवश्यकता है उतना ही उत्पादन हो. उत्पादन गुणवत्ता से भरपूर हो . किन छात्रों को किस दिशा में जाना है इसके लिए ऑप्टीटीयूड टेस्ट हो और उन्हें उचित दिशा में भेजा जाय . जितनी भी रिक्तता है उन रिक्त पदों हेतु आवश्यक ट्रेनिंग दे कर यथाशीघ्र उन पदों पर नियुक्ति हो .
अगर यह न हुआ तो अपराध बढ़ती ही रहेगी, इंजीनियर चोरी में पकड़े जायेंगे. निराशा में पोस्ट ग्रेजुएट भी अपराधी बनेंगे. खाली दिमाग शैतान का. एक दिन ऐसी स्थिति होगी की पढ़े लिखे बहुत मिलेंगे साथ ही साथ बेरोजगार भी बहुत मिलेंगे और अपराधी भी बहुत मिलेंगे. युवा दिशाहीन हो जायेगा . और ये सब होने पर आगे क्या होगा? ?????…….

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