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राखी अटूट बन्धन

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राखी भाई -बहन की विश्वास का अटूट बन्धन है .अनमोल रिश्ता का नाम ही तो है राखी .मधुर अहसास को जगाने का नाम है रक्षा -बन्धन .हर परिवार को हर घर को एक सूत्र में बाँधते हुए एकता का पाठ पढाती है यह त्यौहार .हर बहन अपने भाइयों की लम्बी आयु की दुआ मांगती हुई मजबूत रक्षा सूत्र में बांधने की कड़ी है ,बाल्याअवस्था से आज तक की सुखद अनुभूति की स्मृति दिलाती है भाई -बहनों को .
एक परम्परा और भी है .इसी मधुर दिवस की ,आज पण्डितजी हर घर में जाकर प्रत्येक सदस्य को रक्षा-सूत्र बांधकर हर गृहस्थ की सुखद जीवन की कामना तथा आशीर्वाद देते हैं . यह बहुत प्राचीन प्रथा है .
प्रत्येक भाई बहनों की को आज की दिन बहुत sakoon का अनुभव होता है साल भर की प्रतीक्षा की बाद जिस तरह तपती गर्मी की पश्चात बारिस की बूँद से मानव तृप्त हो जाता है उसी तरह प्रतीक्षा की बाद भाई -बहन इस दिन अजीब जज्बात का अनुभव है
राखी हर भाई बहन का महान पर्व है. पूरे साल रहती है बहनों को इस पावन दिवस की प्रतीक्षा. दो महीने पहले से बहन अपने भाइयों के लिए राखी खरीदना आरम्भ कर देती है. भाई बहन इस दिन को याद करके तरोताजा अनुभव करते हैं.
राखी के दो-तीन दिन पूर्व एक भाई की चुप्पी देख कर हर बहन इस बात से आहत है – वह कैसा भाई है जो शीना के मरने की सूचना होने पर भी मौन धारण किये हुए है. क्या कारण था कि वह चुप बैठा है. क्या बहन के कातिल को देख कर उसका लहू नहीं पुकारता है? अपनी बहन के लिए तड़प कैसे नहीं होती थी? इतना पवित्र रिश्ता होता है बहन भाइयों का , उस पावन रिश्ते का भी एहसास नहीं. दो साल से वह क्योँ नहीं उबल रहा था. इस पवित्र बंधन की भी लाज नहीं रखी. यही bhratritw स्नेह है ! कातिल माँ ही क्यों न हो, हत्यारिन के साथ जीवन-यापन ! क्या मज़बूरी थी? आज का भाई कहीं संवेदनहीन तो नहीं हो गया है? अस्तु!
अब हम मुख्य पर्व राखी पर आते हैं. राखी के दिन बहन अपने भाई की लम्बी आयु के लिए प्रार्थना करती है. रंग बिरंगे पकवान भाइयों के लिए बनाती है. आरती की थाल सजाकर भाइयों की पूजा करती है. उसकी कलाई पर राखी बांधती है. राखी हर पर्व से विशिष्ट पर्व है. यह त्यौहार ही नहीं, भाई बहन के विश्वास का पर्व है.
इसी सन्दर्भ में एक पुरानी कहानी याद आ रही है. एक संभ्रांत परिवार में एक नौकर लाया गया . नौकर तो नाम मात्र का था . उस परिवार के सभी सदस्य उसे बहुत स्नेह देते थे. वह नौकर छोटा था. उनके बच्चों के साथ खेलता था. उसे मन्नू कहकर घर के सभी बुलाते थे. मन्नू के आने के कुछ दिन बाद ही राखी का पर्व आया . मन्नू मुखिया के पत्नी को माँ कहा करता था. उसने राखी के पर्व से एक दिन पहले बोला- माँ मुझे दो रुपये दे दीजिये क्यों कि दीदी जब मुझे राखी बांधेगी तो मैं उसे दूंगा दीदी से तात्पर्य मुखिया की बेटी से है. छोटे और भोले मन्नू की बात से परिवार के सभी सदस्य का मन द्रवित हो गया. और वह और भी लाडला बन गया. मन्नू को उन लोगों ने पढ़ाया . बचपन में उनकी बेटी मन्नू से कहा करती थी – भाई तुमको हम अपने साथ रखेंगे, तुम्हें नौकरी दिलवायेंगे. कभी कभी बचपन की बातें सत्य भी हो जाया करती है. यह अक्षरशः सत्य प्रमाणित होती है . कालांतर में उसकी शादी हुई और उसके पति मन्नू को लेकर अपने साथ ले गए और उसे नौकरी दिलवाया. आज तक दीदी की उस मन्नू के साथ भाई बहन का सम्बन्ध कायम है. दोनों के बच्चे बड़े हो गए लेकिन भाई बहन का स्नेह पूर्ववत है. यदि किसी को एक बार राखी की धागा कलाई पर बंधा तो जन्म जन्मांतर तक का रिश्ता बन जाता है. यह ऐसा पर्व है जिसमें जाति बंधन या ऊंच नीच जैसे भेद भाव नहीं है. जिसे एक बार भाई बनाया वह भाई, जीवन भर अपनी बहन की रक्षा करता है. और बहन भी अपने भाई की तन मन से प्रार्थना कर ती है कि उसका भाई दीर्घजीवी हो.
यहाँ मैं अपने भाइयों के सम्बन्ध में कुछ कहना चाह रही हूँ. मैं अपने भाई राजेश को पाकर अपना जीवन धन्य मानती हूँ. ऐसा भाई हरेक बहन को मिले. मैं गौरव का अनुभव करती हूँ. सूर्य की तरह सदा वह प्रखर रहे. यही आशीर्वाद मैं उसे देती हूँ. दूसरा भाई रत्नेश , नाम के अनुरूप ही रत्नों का सागर है. बहन किस तरह प्रसन्न रहे यह उसके चिंतन में ही नहीं यथार्थ में भी उसके उद्देश्य के रूप में परिलक्षित होता है. ऐसे दोनों भाइयों को पाकर मैं निहाल हूँ.
मेरा मौसेरा भाई है मुकुल . यह भी मेरा बहुत ध्यान रखता है. मेरे और भी भाई हैं जैसे राजीव, आशीष , अविनाश , अमित ये सब भी अनुपम हैं. इन सब के विषय में भी कुछ भी लिखूं कम है. सभी हमसे स्नेह करते हैं. एक भाई और भी है जिसका नाम राजन है. इसका भी स्नेह मेरे प्रति अगाध है. कुछ ही दिनों में रक्त सम्बन्ध की तरह मुझे प्रतीत होता है. मेरे सभी भाई अपने जीवन पथ पर सफलता की सोपान पर बढ़ते ही जाएँ यही आशीर्वाद एवं कामना है मेरी.
सेना जिनके छत्रछाया में देश सुरक्षित रहता है , देशवासी चैन की साँस लेती है उन वीर भाइयों को अप्रत्यक्ष रूप में बचपन से ही रक्षा सूत्र बांधती रही हूँ ,उन वीर भाइयों की लम्बी आयु की लिए सतत ईश्वर से प्रार्थना करती रहती हूँ ऐसे देश की सपूतों तथा लाल को दिल से नमन.

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