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नेपाल में मधेश और मधेशियों का हक़

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संविधान न बनने की स्थिति अभी भी कायम ही है . राजा की हत्या फिर राजतन्त्र का खात्मा और लगा की नेपाल में मधेसी , पहाड़ी , कांग्रेसी ,माओबादी सभी मिलकर प्रजातंत्र ले आये . लेकिन यह तो केवल मृगमरीचिका निकला . जनता संविधान की इंतज़ार करती रही – करती रही (यह यहाँ का पुराना इतिहास रहा है) और जब चौतरफी दबाब पड़ा तो जो निकल कर सामने आया, वह सर्वजन हिताय नहीं लगा . विरोध की लहर चल पड़ी और मधेशियों लगायत बहुत सारे समुदाय एवं राजनैतिक संगठनों को विद्रोह का स्वर तेज करना पड़ा .
एक बार फिर नेपल में जंग छिड़ गयी है. मधेशी अपने अधिकार केलिए लड़ रहे हैं. शासक वर्ग प्रताड़ित कर रहे हैं. सोशल मिडिया पर दिल दहलाने वाली घटना प्रतिदिन देखने को मिल रही है. देख कर मन दहल जाता है, कभी किसी वृद्ध महिला के साथ दुर्व्यवहार तो कभी किसी युवक-युवती के साथ गलत आचरण अर्थं बुजुर्ग बच्चे युवक कोई भी सुरक्षित नहीं है. अपना अधिकार ही तो मांग रहे हैं. शासक वर्ग तो दमनकारी अंग्रेजो कि तरह व्यव्हार कर रहे हैं, बर्बरतापूर्ण और अशोभनीय . अपने ही देश के लोगों के साथ ऐसी कठोरता ! फुट डालो और शासन करो यह तो अंग्रेजो कि नीति अपना रहा है. अंग्रज तो पराया था लेकिन ये सब तो एक ही देश के है, एक साथ पीला बढे. फिर यह नृशंसता क्यों ? मात्र निज स्वार्थ के लिए.
देश में पुनः वही स्थिति आ गयी जो कभी प्रजातंत्र की लड़ाई के समय था . पुलिस और विरोध प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प , तोड़ – फोड़ , बंद इत्यादि से जन-जीवन पूरी तरह अस्त -व्यस्त हो गया है . ऐसा क्यों हो रहा है ?
ख़स या ख़ास वर्ग शासन के स्वाद को जानता है और वह इससे दूर नहीं रह सकता . संघियता संपन्न प्रजातान्त्रिक संबिधान सर्वप्रिय , सर्वमान्य तथा सर्वहिताय हो यह संविधान सभा ने नहीं सोचा . उनका उद्देश्य संभवतः यह रहा की ख़ास वर्ग को शासन करने हेतु सुलभ हो इस तरह का संबिधान बनायें .
नेपाल में मधेशियों को सदैव दूसरे दर्जे का नागरिक समझा जाता रहा है . इन्हें भारतीय मूल का माना जाता है . यह इस लिए की इनका सम्बन्ध भारत के लोगों के साथ रहा है . मधेशीयों का शादी – व्याह भारतीयों के साथ होता रहा है जो की स्वाभाविक भी है क्योंकि मधेश प्रान्त पूरी तरह से भारतीय सरहद से मिली हुई है . अतः पहला आघात संबिधान सभा ने “नागरिकता सम्बन्धी कानून ” से किया . नए संबिधान के प्रारूप में प्रबंध है की अगर नेपाली पुरुष भारतीय लड़कियों से शादी करता है तो उनसे उत्पन्न बच्चे को तुरंत नेपाली नागरिकता नहीं मिलेगा , और १४ वर्ष बाद जब मिलेगा भी तो वह अंगीकृत नागरिकता होगा. अर्थात वह कभी भी एक नंबर के नागरिकों को मिलने वाली सारे अधिकारों को नहीं पा सकता है. ऐसे बच्चे कभी भी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति नहीं बन सकता. यह साबित करता है की संबिधान सभा के लोग मधेशीयों को दो नंबर का नागरिक समझते है और उन्हें दो नंबर पर ही रखना चाहते है.
अब आगे बढे तो दिखाई दिया की संघियता का सीमांकन इस तरह से करना चाहते हैं जिससे उनका ( पहाड़ियों) वर्चस्व बना रहे . उत्तर -दक्षिण में सीमांकन करने के पीछे बहुत ही कुटिलता है. अगर नहीं तो पूर्व – पश्चिम सीमांकन में क्या बुराई है? १६ बूँदे समझौता पर हस्ताक्षर करने वाले आज क्यों विरोध में हैं ? प्रजातंत्र के नाम पर ख़स या ख़ास लोग अपने मन मुताविक अपनी सहूलियत के लिए संबिधान बनाये , यह सर्वमान्य कैसे हो सकता है?

नेपाल का आज का मानचित्र १८१४-१६ ई. के समय ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ नेपाल की युद्ध और तत्पश्चात सुगौली संधि के बाद का भी नहीं है. सुगौली संधि के बाद तराई का बहुत सारा भाग जो आज मानचित्र में दिखता है वह ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन में था. अवध के महाराजाओं से नेपाल के महाराजाओं ने जो कुछ भी लड़ाई में जीता था उसका अधिकांश भाग अंग्रेज ने अपने पास रख लिया था.
१८५७ में हिंदुस्तान में जब विद्रोह हुआ तो उसे कुचलने में तत्कालीन नेपाल सरकार ने अपनी फ़ौज़ मुहैया करायी जिससे खुश होकर अंग्रेजों ने तराई या मधेश के बहुत भू-भाग नेपाल को इनाम स्वरुप लौटा दिया. इस तरह नेपाल के शासक को एक ऐसा प्रदेश मिल गया जिसपर वह मनमाना शासन एवं भेद भाव की क्रियाकलाप को अंजाम दे सके. मधेश से उन्हें भरपूर अनाज एवं लकड़ी मिलता था. वे यहाँ के जनताओं से गुलाम जैसा व्यव्हार करने लगे. १८६१ ई. से राणा(तत्कालीन क्रूर शासक) पहाड़ियों और मधेशीयों केलिए अलग-अलग कानून बनाना शुरू कर दिया . एक उदहारण मिलता है की हत्या के अपराध होने पर जमानत के लिए अगर पहाड़ी हैं तो १० से २५ रुपये जमा करने होते थे लेकिन वहीँ पर मधेशीयों को १०० रुपये जमा करने होते थे. काठमांडू में प्रवेश के लिए मधेशीयों को भिसा जैसे अनुमति पत्र लेने पड़ते थे ( अर्थात मधेशीयों को कभी भी नेपाली नहीं समझा गया था, उन्हें हमेशा बाहरी समझा जाता था.) जबकि सच्चाई तो यह है की खुद गोरखा राजा हिंदुस्तान के भगोड़े थे. मुगलों के डर से चित्तोर से भागे थे. खैर!
हम तो यह कहना चाहते हैं कि ये पहाड़िया लोग अब भी मधेशीयों को अपने तलवे के निचे रखना चाहते है जो की इनके खून में बसे है. ये अपने पूर्वज की तरह आज के २१ वि शताब्दी में भी मधेशीयों को दूसरे दर्जे की नागरिक बनाकर रखना चाहते है. अतः आज का जो संबिधान का प्रारूप है उसे जबरदस्ती लागु करना चाहते है . पर यह उनका दिवास्वप्न ही नहीं है बरन अगर समय रहते नहीं संभले तो अभी चल रही विप्लव शायद इस अवस्था तक पहुँच जाएगी जहाँ से पहाड़िया लोग और आज के सत्ताधारी लोग कुछ भी नहीं कर पाएंगे और केवल पछतावा ही हस्तगत होगा.
आज मधेशियों में एकता है वे पढ़े लिखे है और अपनी अधिकार समझते हैं. उन्हें अपना चाहिए तो बस चाहिए और यह जायज है, उचित भी है . जय मधेश !

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