My View
- 227 Posts
- 398 Comments
पथ-पथ भटक रही हूँ,
न राह का ठौर है , न मंजिल का ठिकाना,
टिमटिमाते दीपक सी जल रही हूँ,
आपके जाने के बाद.
काँटों भरी जीवन
जी रही हूँ ,
नीर विहीन जलचर की भांति ,
तड़प रही हूँ,
पावन सानिध्य को
तरस रही हूँ,
आपके जाने के बाद.
आहिस्ता -आहिस्ता कट रही है
चहुँ ओर अंधकार हो रही है
बीच भंवर में फंस रही हूँ
नाविक !
आपके जाने के बाद.
पथिक बन मैं घूम रही हूँ
यत्र-तत्र भटक रही हूँ
प्रज्वलित अग्नि सी धधक रही हूँ
तेरे संग को तरस रही हूँ
सहचर !
आपके जाने के बाद.
पिघल-पिघल कर बह रही हूँ
अपना और अपनों की सुध खो रही हूँ
न कोई संग है न कोई संगी
शून्य हो कर
स्वयं को खो कर
बेसुध हो गयी हूँ
आपके जाने के बाद.
जाने से पहले
गले तो मिल जाते
यादें संजोकर जी पाती मैं
थोड़ी तड़प तो कम होती
फिर न शिकवा होता
न कोई उलाहना
सध्र्यंच !
आपके जाने के बाद.
Read Comments