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मोगा में फिर मानवता हारी

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इधर समाचारपत्रों / दूरसंचार माध्यमों में नारियों पर अत्याचार की बर्वरताएँ आम बात हो गई हैं . मोगा में चलती बस में अपने शील और जीवन की रक्षा में लगी हुई लड़की और उसकी माँ को जिस तरह वेदर्दी से मारा गया और अपमानित किया गया ,वह भारत की संस्कृति का एक कला अध्याय है ,एक बदनुमा धब्बा है ,इस ऋषि देश की सभ्यता पर . चलती बस में फेंक दी गई लड़की तो मर गई लेकिन उसकी माँ आज भी अस्पताल में अपनी शारीरिक यातनाओं के घावों का तो इलाज करवा रही है उसकी मानसिक यन्त्रणा को आज कौन समझनेवाला है ?
बस में बैठे सहयात्री ,चालक ,कण्डक्टर कोई भी तो बचाने के लिए तैयार नहीं हुआ ; क्योंकि यह बस उस कम्पनी की थी ,जिसकी राजशाही आज पञ्जाब में चल रही है .जब कई दिनों तक लड़की के भाई -बन्धु ,पिता आदि परिवार के लोग उसके शव को जलाने नहीं दे रहे थे , फिर पञ्जाब के माननीय मुख्य मन्त्री जी ने चौबीस लाख रुपयों के सरकारी अनुदान का चेक लड़की के पिता और भाइयों को दिया और रात के अँधेरे में पुलिस ने उस मृत अबला के शव को जला दिया.

यही है आज मानवता, बस में सफर कर रहे सहयात्री मूक बने रहे और रुपयों का प्रलोभन परिवार की वाणी को मूक कर गया.
आज सब कुछ सरकार पर नहीं छोड़ना है, लोगों की आत्मा को धिक्कारना होगा, नहीं तोह आये दिन मासूम बच्चियों पर बर्बर अनाचार होते रहेंगे.
मोगा की घटना में एक कहावत याद आती है- ” बिटिया मर न गयी, वह पोस गयी.

धन्य है उस संघर्ष करने वाली लड़की का परिवार, हाय रे! संवेदनहीन सहयात्री और हाय री! पाखण्डी सरकार.

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