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प्रशंसनीय कदम-एनजीटी का निर्णय

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car_pollution एनजीटी का निर्णय वास्तव में प्रशंसनीय है . एनजीटी का यह फैसला की दिल्ली में १० वर्ष पुराने डीजल वाहनों के सञ्चालन पर रोक लगा दिया जाये, जिससे प्रदूषण पर नियंत्रण हो सकेगा बहुत ही सराहनीय है. दमघोंटू वातावरण से थोड़ी-बहुत राहत तो मिलेगी. पुराने वाहनों से मात्र वायु प्रदूषण ही नहीं वरन ध्वनि प्रदूषण भी होता है.
एनजीटी ने १६ मार्च को दिल्ली सरकार से राजधानी में १० साल पुराने वाहनों पर प्रतिबन्ध लगाने सम्बन्धी प्रस्ताव पर रिपोर्ट पेश करने को कहा था. न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को यह आदेश दिया था जो कि सर्वजन हिताय है .
आदेश के बाद भी पुराने वाहनों का ब्यौरा तैयार न करने पर एनजीटी ने फटकार लगायी और वाहन का ब्योरा सौपने को कहा. स्वास्थय के लिए डीजल का धुँवा अति हानिकारक है. यह वायु प्रदूषण का बहुत बड़ा कारण है. इससे गुर्दे प्रभावित होते हैं. मस्तिष्क सम्बन्धी बीमारी होती है. हृदय रोग की भी आशंका रहती है. कैंसर जैसे घातक बीमारी होने की भी सम्भावना है. कतिपय मानव डीजल प्रदूषित वायु के कारण इन बीमारियों से ग्रसित हो चुके है. दिल्ली में डीजल जन्य प्रदूषण इतना अधिक हो चुका है कि स्थानीय डाक्टर तो कई मरीजों को दिल्ली छोड़ अन्यत्र रहने की सलाह तक देते हैं. एन सी आर में रहने वालों की दुर्दशा भी दिल्ली वालो के बराबर ही है.
परिवहन विभाग गंभीर नहीं है. २८ लाख पुराने वाहनों में मात्र ११०० वाहनो की ही जब्ती हुई है. सरकार भी गंभीर नहीं दिखती है. अगर गंभीर होती तो दिल्ली सरकार द्वारा पुराने जेल वाहन, अग्निशमन तथा एम्बुलेंस को चलाने और ६ माह की मोहलत मांगने की सोचती भी नहीं. सरकार अगर सम्बेदनशील होती तो एनजीटी के सोचने से पहले स्वयं सरकार आगे आकर इस तरह का निर्णय लेता. लेकिन सरकार तो नेता चलाते है जिन्हे जोड़-तोड़ और राजनीती करने से फुर्सत ही कहाँ मिल पाती है ! एनजीटी ने सरकार के प्रस्ताव को ठुकराकर अत्यंत ही महत्वपूर्ण तथा वाजिव निर्णय लिया है. प्रदूषण मुक्त होना है तो इस तरह के सख्त कदम लेने पड़ेंगे. क्या सरकार द्वारा सुझाये गए वाहन प्रदूषण नहीं फैलाते (आवश्यक सेवा साधन होने की बात है तो सरकार तुरंत उन्हें निकाल कर नयी गाड़ियों की व्यवस्था कर सकती है) जनता के लिए एक नियम एवं सरकार के लिए अलग नियम तो किसी भी प्रजातान्त्रिक देश में सम्भव नहीं है. हाँ तानाशाही सरकार ऐसा सोचे और करे तो बात अलग है.
बिना ढके ही निर्माण सामग्री या मलबा भरकर दिल्ली की सडको पर नहीं लेजाया जा सकता -यह निर्देश भी उपयुक्त है. एनजीटी ने चाहे बिल्डर हो या अन्य कोई सब पर जुरमाना का प्रावधान रख कर सही किया है . क्यों की यहां मानव बिना दंड या बिना सख्ती के अपने में बदलाव नहीं ल सकता.
हरेक अच्छे कार्यों का विरोध होना यहां का चलन है. भले ही इन कार्यों से हमारी अगली पीढ़ी खुशनुमा जिंदगी जी सकता हो और हम गर्व से कह पाएं कि देखो हमने कठिनाई सही लेकिन तुम्हें विरासत में स्वच्छ वातावरण दिया.
पुरानी गाड़ी के मालिकों का असहज होना केवल आर्थिक मानदंड पर सही दिख सकता है. लेकिन क्या उनका शहर प्रदूषण मुक्त रहेगा तो उनके बच्चों को स्वस्थ रहने का हक़ नहीं मिलेगा ? क्या वे सारे मालिक जो पुरानी गाड़ियों को सड़क से हटाएंगे उनका शहर स्वस्थ शहर नहीं होगा और लाजमी सवाल यह भी है की क्या आर्थिक युग में अर्थ के अलावा वे और कुछ सोच नहीं सकते ? उनका अपने शहर के प्रति कोई कर्तव्य नहीं है? वे हाय तौबा केवल इस लिए मचाएंगे की उन्हें आर्थिक हानि होगी ? हम तो गाड़ी मालिक को धनी समझते थे ! वाह रे गाड़ी मालिक आप तो बहुत गरीब निकले .दानवीर कर्ण भी इसी देश में हुए थे. इस देश का इतिहास रहा है की यहाँ दधीचि जैसे लोग हुए. ऐसे लोग हुए जो देश के लिए सर्वश्व त्याग करने में आगे रहते थे. मानव कल्याण की बात करते नहीं अघाते थे . लेकिन शर्म की बात है की कुछ लोग जो सक्षम हैं लेकिन और धन समेटने के लालच में एनजीटी की सर्वकल्याण कारक नीति की विरोध करने की सोचते है.
हमें यह समझ नहीं आ रहा की मात्र दिल्ली में ही क्यों ? इस तरह के सराहनीय कदम तो सारे देश केलिए होना चाहिए. अजीब लगता है और आश्चर्य होते है की दिल्ली में प्रदुषण केलिए चिंता है और बांकी देश के और हिस्सा केलिए नहीं. क्या हम देश के बांकी हिस्सों में दिल्ली जैसी स्थिति के आने का इंतज़ार करेंगे फिर इस तरह के नियम लगाएंगे ? देश के एक राज्य में तम्बाकू निषेध ,शराब बंदी इत्यदि लागू करते और दूसरे राज्य में नहीं करते यह बिषमता सही नहीं है. हमें पूरे देश में इस तरह के स्वागत योग्य कदम एक झटके में लगाना चाहिए. जब एक राज्य में निषेध रहता है तो दूसरे राज्य से स्मगलिंग होते है और प्रयोग में कमीं नहीं आ पाती है. और फिर हमारा उद्देश्य विफल होजाता है. पुरानी गाड़ियों पर पूरे देश में एक नियम लगे तो अधिक अच्छा होगा और देश प्रदूषण मुक्त रहेगा.
विदेशों में डीजल गाड़ियों पर पाबन्दी है. तो हम भारत में उसकी आयात पर ही रोक क्यों न लगादें. जड़ मिटेगा तो पौधा काटने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी. शराब की फैक्ट्रियों , तम्बाकू उत्पाद , तथा गुटखा का फैक्ट्री इत्यदि पर देश की सरकार चुप क्यों है. उनको लाइसेंस देती ही क्यों है? भांग, गांजा इत्यदि के खेती पर हम रोक लगा सकते हैं लेकिन और बांकी उत्पाद केलिए किस मज़बूरी के कारण हम चुप हैं? यह प्रश्न अनुत्तरित क्यों है? अगर अर्थ की बात है सरकार को इससे आमदनी होती है तो आज यह भी सभी जानते यहीं की इन उत्पादों से होने वाली बीमारियों के उपचार पर सरकार को आमदनी से ज्यादा खर्च करना पड़ता है. यह कौन सा अर्थ-शास्त्र है ?
अंत में पुनः हम एनजीटी को धन्यवाद देते हैं और चाहते हैं कि इस तरह के पहल मात्र दिल्ली में ही नहीं सम्पूर्ण देश में हो साथ ही साथ यह भी कि “उपचार से पहले बचाव” वाली बात हो और हानिकारक उत्पाद के उत्पादन के अधिकार दे कर प्रयोग निषेध करने से अच्छा होगा कि उत्पादन बंद करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाये जाएँ.

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