Menu
blogid : 6094 postid : 867692

किशोर और अभिभावक

My View
My View
  • 227 Posts
  • 398 Comments

भौतिक युग में भौतिकता स्वाभविक है. जग मुद्रा और व्यापार में ही सब कुछ देख रहा है. समाज ,नागरिक,संस्कार,सभ्यता जैसे सारे शब्द अर्थहीन ही नहीं आज के परिपेक्ष में निरर्थक एवं पुरातन तथा समाज में प्रयोग से वंचित हो गया है. आर्थिक युग में हम अर्थ के पीछे भाग रहे हैं ,आवश्यकता भी है .इस मंहगाई में धन की आवश्यकता भी है . अब क्या हम भविष्य के कर्णधारों के लिए सोचने का कुछ समय निकाल रहे हैं. उनकी आकांक्षाएं , उनकी भावनाए क्या है. बस इलेक्ट्रॉनिक गजट या पूरी जेब खर्च देकर हमारी कर्तव्य पूरी हो जाती है. ये भी शायद आवश्यक है, लेकिन किशोर या किशोरी की भावना को जानना भी अत्यावश्यक है .वे क्या सोचते हैं ,? उनकी क्या इच्छाएं हैं ,भविष्य में क्या करना चाहते हैं इत्यादि इत्यादि . वयः संधि है उनकी . न वे बच्चे की श्रेणी में आते हैं न बड़े की .इस वयस में जिज्ञासाएँ अनंत होती हैं .शारीरिक परिवर्तन के कारण भी वे अंदर ही अंदर परेशान रहते हैं .किससे मन की बात कहें ,कोई कोई तो निराश हो जाते हैं ,उन्हें समझ ही नहीं आता कि वे क्या करें क्या न करें .हर अभिभावक का परम कर्तव्य है कि वे अपने किशोर बच्चे की परवरिश नवजात शिशु की तरह करें . जिस तरह हम शिशु की प्रत्येक गतिविधि का ध्यान रखते हैं उसी तरह किशोर हो रहे बच्चे पर ध्यान रखें कि वे क्या सोचते हैं ? उनके दोस्त कैसे हैं ? आस पास के लोग कैसे हैं ? शिक्षक उन्हें समझते हैं कि नहीं ? आदि आदि .अपने बच्चे के साथ अधिक से अधिक वक्त व्यतीत करना चाहिए प्रत्येक माता -पिता को जिससे उन्हें सारी गतिविधि कि जानकारी हो .सबसे विकराल समस्या है इस आयु के बच्चे की नशा की ओर झुकाव .अभिभावक को यह ध्यान देना होगा कि कहीं उनकी संतान सिगरेट ,तम्बाकू गुटखा गांजा चरस या किसी अन्य नशीली पदार्थ का सेवन तो नहीं कर रहा .जब भी घर बाहर से आये तो तो उसकी आँखें या अन्य हाव भाव पर ध्यान देनी चाहिए बिना उससे कुछ पूछे हरेक गतिविधि पर पैनी दृष्टि होनी चाहिए .इस आयु के बच्चे का सच्चा साथी अभिभावक को ही होना चाहिए . पहले ज़माने माता -पिता अपने बच्चों पर काम ही ध्यान देते थे क्योकि संयुक्त परिवार होने के कारण दादा – दादी , नाना नानी चाचा , ताऊ सब मिलकर परवरिश करते थे .दादा – दादी या नाना नानी को अनुभव होता था क्योकि वे अपने बच्चों की परवरिश कर चुके होते थे अपने बच्चे की परवरिश में जो कमी रह गयी होती थी वे इन बच्चे में पूरी कर लेते थे .अपने भाई -बहनों की भी संख्या अधिक होती थी इसलिए समस्याएँ इतनी विकराल नहीं थी .जो दूसरे शहर में नौकरी करते थे ,उनके पडोसी से इतना मधुर व्यवहार था कि बच्चे महफूज रहते थे ,एक परिवार दूसरे परिवार पर अपने बच्चे को छोड़ कर निश्चिंत रहते थे .अपने बच्चे की तरह ही पडोसी स्नेह के साथ अच्छी सीख देते थे . ऐसी बात नहीं थी कि उस समय किशोर गलत रह पर नहीं जाते थे पर संख्या कम थी . पहले १४ साल का बच्चा किशोर होता था पर आज तो १० -१२ साल में ही बड़े हो जाते हैं .अभी कुछ दिन पहले एक छठी वर्ग का छात्र अपने हाथ पर लड़की का नाम लिख लिया था जिसके कारण उसकी हाथ में यात्रा -तत्र कटने के निशान बन गया था .उस बच्चे को स्कूल से निकाल दिया गया पर यह समाधान तो नहीं हुआ . उस बच्चे की काउन्सलिंग करनी चाहिए थी .दूसरी घटना एक बच्चा अपनी माँ की वयस की महिला से दोस्ती करनी चाही तो उन महिला ने कहा – माँ की तरह दोस्त ,लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया उसका कहना था क्लासमेट की तरह .हम सुनकर विस्मित रह गए . क्या होगा ऐसी मानसिकता वाले बच्चों का ? समाज के लोग किस ओर जा रहे हैं ? तात्पर्य यह कि किशोर एकाकीपन का अनुभव करता है ,अत्यन्त व्यस्तता के कारण माता -पिता पर्याप्त समय नहीं दे पाते फलतः बच्चे भटक रहे हैं ,अभिभावक का एक दूसरे में लीन रहना भी मुख्य कारण है .किशोर या किशोरी विकल्प ढूंढते रहते हैं मोबाइल ,टी . वी ., इंटरनेट आदि में . ये भौतिक उपकरणें उनके जीवन का अहम हिस्सा हो गया है .हरेक वस्तु के दो पहलू होता है -सही या गलत .समझ नहीं होने के कारण अधिकतर गलत दिशा की ओर ही ध्यान जाता है . पहले नैतिक शिक्षा पाठ्यक्रम में था ,अध्ययन करने से नैतिक ज्ञान तो प्राप्त हो ही जाता था ,पर अब पाठ्यक्रम ही परिवर्तित हो गया है . अज्ञानतावश किशोर या किशोरी गलत दिशा की ओर कदम दाल देते हैं घर का कलहपूर्ण वातावरण भी भटकन का कारण है ,अपने को आधुनिक बनाने के दिखावे के कारण कुछ अभिभावक नित्य प्रतिदिन घर में पार्टी करते रहते हैं उस पार्टी में नाच गान के साथ -साथ मदिरा पान भी चलता रहता है. जिससे गलत प्रभाव पड़ता है माता -पिता का अशोभनीय आचरण भी कारण है ,नक़ल करने की प्रवृति भी गंदगी की ओर धकेल रहा है .बच्चे की नाजुक उम्र होती है जो देखेंगे वही सीखेंगे शारीरिक बदलाव के कारण लड़कों का लड़कियों में और लड़कियों का लड़कों के प्रति भी जिज्ञासा होना लाजमी है ,नासमझ होते हैं ,उचित अनुचित का ज्ञान नहीं होता अधूरी शिक्षा के कारण गलत कदम उठा लेते हैं , कितने तो बलात्कार भी कर डालते हैं अनेकों उदहारण हमें शर्मसार करता रहता है माता-पिता की थोड़ी लापरवाही के कारण कितने किशोर -किशोरी को मुश्किलें झेलनी पड़ती है . आरुषी हत्या कांड भी कहीं न कहीं इस ओर इंगित करता है. और इस तरह की बहुत सारी घटनाएँ आये दिन देखने -सुनने को मिलता है जिसमे किशोरों का शामिल होना दिखता है. सच है किशोर अगर शहरी होगा तभी तो शहर सराहनीय हो सकेगा.

Read Comments

    Post a comment