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धिक्कार !

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dhikkar !भारतीय समाचार पत्रों में तथा सभी इलेक्ट्रॉनिक मिडिया में सदा यह समाचार निश्चित रूप से रहता है कि अमुक जगह बलात्कार हुआ. कुछ लोग घड़ियाली आंसू बहाते हुए टिप्पणियाँ भी करते हुए दिखते हैं. लोगों में आक्रोश भी दीखता है. लोग विरोध भी प्रगट करते है और मिडिया को मसाला भी मिलता है. लेकिन यह नित्य होता है. कभी कभी तो एक नहीं बल्कि अनेक बलात्कार की घटनाओं का समाचार मीडिया में आता है. लेकिन हर एक नयी घटनाओं के नीचे पुरानी घटना दब जाती है और लोग पुरानी घटनों को भूल कर नए समाचार की चर्चा करने लगते है. इस बीच कोई ठोस कदम उठता हुआ हमें नहीं दिखाई देता . न सरकार संवेदनशील ,न समाज सेवी,न साधु संत, न युवा वर्ग,न समाज सुधारक, यहाँ तक की स्वयं महिलाएं भी .
क्या इस सम्बन्ध में समाज शास्त्रियों , समाज विज्ञानियों,विचारक,कानून वेत्ता , विधायक,सांसद, नेता,युवा,महिला तथा अन्य लोग सभी मिलकर कोई ऐसा कदम नहीं उठा सकते जिससे इस महामारी का देश से ,समाज से उन्मूलन हो सके? क्या इस केलिए हम सम धिक्कार के हक़दार नहीं हैं?
धिक्कार है उन समाज के ठेकेदारों को जो धर्म के नाम पर, सलिल अश्लील के नाम पर परस्पर लड़ते रहते हैं ,और बड़ी -बड़ी बयान देते हैं .
धिक्कार है उन साधु -सन्तों पर जो इनको पूजो , उनको पूजो के लिए लड़ते हैं ,यहाँ तक हथियार उठाने को भी तत्पर रहते हैं लेकिन तीन साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म करने वालों के लिए उनके मुख से एक शब्द भी नहीं निकलता है .
धिक्कार है उन नेताओं को जो नागरिक सुरक्षा की बखान करते हैं और बहू बेटियों के साथ दुराचार करने वालों से रक्षा नहीं कर पाते .
धिक्कार है उन न्यायालय पर जो बलात्कारियों दण्ड देने में वर्षों लगा देते हैं .
धिक्कार है उन पुलिस कर्मियों को जो देश की माँ बहन बेटियों को सुरक्षित नहीं रख पाता है .
धिक्कार है उन शिक्षकों को जो शिक्षा के मंदिर में रह सुसभ्य नागरिक पैदा नहीं कर सकते हैं .
धिक्कार है उन युवकों को जो अपनी माँ बहन पत्नी को नहीं बचा सकते कुछ सुरक्षा नहीं दे पाते .
धिक्कार है उन वकीलों को जो कुकर्मियों के पक्ष में तोड़ मरोड़ कर बहस करते हैं और अपराधियों को बचाने का प्रयत्न करते हैं .
धिक्कार है – तथाकथित सशक्त महिलाओं को जो बस चार दिन दूरदर्शन पर या रेडियो पर या गोष्ठियों में परिचर्चा में भाग लेती हैं ,कुछ मोमबत्तियाँ जलाती हैं और सब भूल जाती हैं .
धिक्कार है उस असंस्कारी परिवार को जिसने अपने पुत्र को कुपुत्र बनाया .
धिक्कार है उस माता-पिता को भी जो इन बलात्कारियों को दुष्कर्म करने के बाद भी सीने से लगाये रखना चाहते हैं .
किसी मनोविश्लेषक ने कहा था -बलात्कारी मर्द नहीं होता है बल्कि नामर्द अपने आप को मर्द प्रमाणित करने के लिए ऐसा घृणित कार्य करता है .तो क्या हमारे देश के सभी मर्द नामर्द हा गए हैं ? अगर नहीं तो जो मर्द हैं वे इन बलात्कारी नामर्दों को अहिंसात्मक रूप से समूल नष्ट क्यों नहीं कर पा रहे हैं ?
एक दुष्कर्मी किसी मर्द का पुत्र है तो वह मर्द बलात्कारी नामर्द को संस्कार नहीं दे पाया तो उस मर्द को मर्द कैसे कह सकते हैं ?
अन्त में पुनः उन सभी मर्दों को मैं ललकारती हूँ कि अगर तुम मर्द हो तो बलात्कारी नामर्द के समूह को समूल नष्ट करके दिखाओ वरना नामर्द कहलाओ .
धिक्कार है मुझ पे जो यह लिखते वक्त यह सोचने का दुस्साहस कर रही हूँ कि इस से कोई फर्क भी पड़ेगा !

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