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भूमि अधिग्रहण या किसान पर ग्रहण

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भारत कृषि- प्रधान देश है. सज्जनता की मूर्ति कृषक अपनी परम्पराओं की मर्यादा के पालक तथा कुछ शिक्षित तो कुछ अशिक्षित अति साधारण वस्त्र धारण करके निरंतर सुबह से शाम तक अपनी खेती के कार्यों में तल्लीन रहते हैं. पल भर भी विश्राम करना इन्हें समय का अपव्य की अनुभूति देता है.इनकी जीवन शैली सरल एवं सीमित होती है, इनका परिवार , समाज एवं कृषि उपकरण ही इनके मित्र होते हैं. कर्मठता तथा निश्छलता इनकी पहचान होती है. इनको स्वभावतः अपने खेत कर्मभूमि या देवभूमि की तरह लगता है. पूजा ये खेत की करते है और खेत से ही अपनी जीवन को जोड़े रहना चाहते है.
भूमि अधिग्रहण से किसान के मुहं का निवाला छीन जायेगा. गरीब किसान कब तक सरकारी सहायता पर निर्भर रह सकता है. किसान के नुकसान की भरपाई कौन कर पायेगा? शायद कोई नहीं. जिस भूमि से अन्न उपजाया जाता है और किसान जिस को मंदिर, देव या अपना सर्वस्व समझते है उसका अधिग्रहण किसी भी उद्देश्य से होना हो तो उसमें किसान हित एवं उनके पुनर्वास की व्यवस्था के संग संग उनका सहमति बहुत ही आवश्यक है . जितना कष्ट किसी के भी जीविका का हरण होने पर होगा उतना ही कष्ट भूमि अधिग्रहण से किसानों को होना स्वाभाविक ही है.
विपक्ष ने आवाज भले ही राजनितिक कारणों से उठाई हो लेकिन आवाज तो सही ही उठाई है. विपक्ष के सभी दल के नेता विरोध कर रहें है. किसी को लगता है की भूमि अधिग्रहण अध्यादेश किसानो के हित में नहीं है. दूसरे को लगता है की इस अध्यादेश से किसानों का सामाजिक जिम्मेदारी का हिस्सा ही हटा दिया गया है. कोई किसान विरोधी तो कोई किसान हित के खिलाफ बताता है.कोई कहता है की यह किसानों का गला दबाने का पाप नहीं कर सकते. किसान भी क्रोधित हो रहे हैं.
हमारे प्रधान मंत्रीजी का कहना है की यह किसान हित में है. सत्ता और विपक्ष के आरोप और प्रत्यारोप के मध्य लोकसभा में यह अध्यादेश जारी हो गया.पक्ष प्रतिपक्ष जो भी करें , किसान को हानि न हो . कृषकों का कहना है की विधेयक में परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण करने के लिए ७०% जमीन मालिकों की सहमति का प्रावधान होना आवश्यक है. और साथ ही इसके सामाजिक प्रभाव के आकलन को आवश्यक बनाया जाना चाहिए.
अंत में हम सभी यह चाहते है की जो भी हो जैसे भी हो लेकिन किसानों के संग अन्याय न हो. वे हमारे अन्नदाता हैं. इस पृथ्वी पर ईश्वर के रूप में कृषक अवतरित हुआ है. क्योँ कि भगवान सारे संसार की देखभाल करते हैं, उन्होंने ही कृषक को मानव हितार्थ पृथ्वी पर भेजा है.
हम उन्नति के नाम पर प्रकृति से सदा छेड़-छाड़ करते रहते है. कृषि योग्य भूमि को भी प्रगति के नाम पर अधिग्रहित कर कंक्रीट के जंगल तैयार करते है और प्रकृति को टेढ़े चलने पर मजबूर करते है. किसान के संग संग इस पृथ्वी के समस्त प्राणियों को कष्ट में डालकर होने वाली प्रगति लम्बे समय में मानव जीवन ही नहीं परन्तु सम्पूर्ण चराचर जगत को बर्बाद कर देगा. अतः किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले किसान ,मौसम विज्ञानी तथा समाजविज्ञानी सभी की सलाह लेना शयद यथोचित होगा.

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