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लाया जिसने इस धरा पर
उससे विलग कैसे हो पाऊँ मैं
दो बलिष्ठ भुजाओं में थमाकर
ईश्वर रूपी जनक से मिलाया
उस उपहार को कैसे भूल पाऊँ मैं
उनसे विलग कैसे हो पाऊँ मैं
प्रथम शिक्षिका बनकर
गुरु गोविन्द में भेद बताया
बालमन के प्रश्नों को सुलझाया
निज रुधिर से सींचकर
जीवन जीने का राह दिखाया
उस उपहार को कैसे भूल पाऊँ मैं
उससे कैसे विलग हो पाऊँ मैं
जनजीवन के हर रंगों से
जिसने परिचय करवाया
हर कठिन घडी में
जिसने साथ निभाया
आशीष देकर दुर्गम राह को
जिसने सुगम बनाया
उस उपहार को कैसे भूल पाऊँ मैं
उससे कैसे विलग हो पाऊँ मैं
रक्त सम्बन्ध का बोध कराया
विश्व बन्धुत्व का पाठ पढ़ाया
गरिमामयी संबंधों का बोध कराया
उस उपहार को कैसे भूल पाऊँ मैं
उससे कैसे विलग हो पाऊँ मैं
अपने जीवन का अमूल्य निधि लुटाकर
अपना सर्वस्व समर्पित कर
बेटी को अनुपम बनाया
उस उपहार को कैसे भूल पाऊँ मैं
उससे कैसे विलग हो पाऊँ मैं
काँटों भरी जहाँ में
फूल की तरह संभाला जिसने
नफरत से भरी संसार में
स्नेह का पाठ पढ़ाया जिसने
जीवन को जन्नत बनाया जिसने
उस उपहार को कैसे भूल पाऊँ मैं
उससे कैसे विलग हो पाऊँ मैं
परायों को भी अपना बनाना सिखाया जिसने
“वसुधैव कुटुम्बकम” का सन्देश देकर
जीवन जीना सिखाया जिसने
उसके चरण की धूल बन पाऊँ मैं
जिसने लाया इस धरा पर
उस माँ से कैसे विलग हो पाऊँ मैं.
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