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उतरन (सूट की नीलामी )

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बड़े लोग अपने उतरन की नीलामी करते हैं बोली लगती है. आज मोदीजी के उतरन की कीमत चार कड़ोर एकतीस लाख के लगभग लगी है वहीँ अगर गरीब लोग के उतरन को हाथ भी कोई नहीं लगाएगा . लगता है दिल्ली की हार के बाद छवि सुधारने में लगे हैं हमारे प्रधानमंत्रीजी .अब ऐसा प्रतीत होता है की गंगा अभियान सफल होगा क्योंकि यदि मोदीजी 50 सुट की बोली लगाएंगे तो अच्छी रकम इकट्ठी हो ही जाएगी .उनके सत्कर्म को देखकर दूसरे नेता भी अपने उतरन की बोली लगाएंगे जितने बड़े नेता उतनी बड़ी बोली .यदि राष्ट्रपतिजी भी 50 या 60 उतरन नीलम करेंगे तो 70 या 80 करोड़ हो ही जायेगा .यदि नेतृ भी साड़ी सलवार कमीज़ आदि ड्रेस की बोली लगवाएंगी तो देश की सभी नदियों का उद्धार तो निश्चित ही है
किसी की मंशा यह नहीं है कि इससे लोक कल्याण होगा .किसी का कहना है कि मोदीजी रोल मॉडल हैं इसलिए यादगार के तौर पर रखना चाहते हैं ,तो किसी का कहना है वे मेरे नेता हैं इत्यादि इत्यादि एन आर आई उद्योगपति चौकसी ,सुरेश अग्रवाल .पंकज आदि ने उन्हें प्रिय नेता के कारण सूट खरीदना चाहते हैं .किसी कि मंशा गंगा अभियान नहीं है .जुनेजा ने मात्र एकबार गंगा का नाम लिया .
हमारे देश की स्थिति कैसी हो गयी है कि माँ गंगा की सफाई के लिए पुराने सूट को बेचना पड़ रहा है .कहाँ गए अम्बानी बंधू , अडानी ,माल्या आदि उद्योगपति .धन किसलिए अर्जित कर रहे हैं ,कुछ करते क्यों नहीं .
मोदीजी की लोकप्रियता तो आसमान छू रहा है , पागल हो रहे हैं , दीवाने हैं उनके विपक्ष के नेता मज़ाक उड़ा रहे हैं किसी ने पद की गरिमा गिराने का आरोप लगाया हैं तो कोई उन्हें मार्केटिंग की कला में माहिर कहा हैं तो कोई कुछ .किसी का कहना है गंगा सफाई से कोई लेना देना नहीं बस डैमेज कंट्रोल पब्लिक रिलेशन है.
जो भी हो लोकप्रिय तो हैं ही ,लेकिन यह कहना अमीरी गरीबी में कोई भेद -भाव नहीं है यह निरर्थक प्रलाप है.गरीब का उतरन कौन खरीदेगा कोई गरीब कहेगा तो उपहास का पात्र बन जायेगा .उसका मज़ाक बनेगा . वहीँ मोदीजी का सूट करोड़ों में खरीदकर यादगार के रूप में रखना चाहता है .
ये भी सोचनेवाली बात है कि कोई स्मृति के रूप में रखने के लिए करोड़ों खर्च कर सकता है ,वहीँ कोई गरीब जीवनपर्यंत रोटी के जुगाड़ में ही व्यतीत कर देता है ,होम कर देता है जीवन .क्या यही प्रजातंत्र है ? आखिर कहाँ से आता है इतना धन ? इससे किसी को कोई प्रयोजन ही नहीं .देश के धरोहर कुछ नेता और उद्योगपति ही हैं और लोग तो निमित्त मात्र हैं .उन्हें न सूट खरीदने से मतलब है न चमचागिरी करने से. परिश्रम करके अपना तथा अपने परिवार का भरण -पोषण करना है ,रोटी की जुगाड़ करनी है .
वास्तव में अच्छे दिन आ ही गए .जब उतरन की कीमत करोडो हैं तो क्या कहने
वाह! मोदीजी वाह! लोहा मानना पड़ रहा है आपके प्रखर बुद्धि का .
अब हमारा देश उत्तरोत्तर प्रगति करेगा .
“करोड़ों में नीलाम होते हैं एक नेता के उतरे हुए सूट , कचरे में फेंक देते है , शहीदों की वर्दी और बूट .”

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