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दिल्ली चुनाव

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आज सम्पूर्ण भारतवासी का ध्यान दिल्ली चुनाव पर है. चुनाव के इस मेले में ऐसी-ऐसी बातें नज़र आ रही है की हम क्या सभी देशवासी अचम्भित है. कल के जानी दुश्मन आज के घनिष्ठ मित्र बन रहे हैं. वास्तव में वे मित्र नहीं बन रहें हैं वरन किसी वस्तु की खास लालसा उन्हें संग ला रही है. वस्तु सत्ता या मुद्रा या ‘ताकत’ या प्रसिद्धि या कुछ और भी हो सकता है लेकिन मन का परिवर्तन या देश सेवा की ललक तो केवल शायद सोपान ही हो.
अब शाज़िया इल्मी भी कमल खिलाएंगी ! बीजेपी की सदस्य बन गई हैं. कल तक दोषारोपण करने वाली आज गुण- गान कर रही हैं. इसे कहते हैं राजनीति. जहाँ न हृदय है न संवेदना, है तो मात्र सत्ता लोभ. सत्ता के लोभ में मानव वर्षों के सम्बन्ध को क्षण में तोड़ देते हैं . अन्ना हज़ारे के आंदोलन में कभी किरण बेदी और केजरीवाल एक दूसरे के समर्थक थे. वही आज एक दूसरे के आमने सामने हैं. क्या पद केलिए अपना चरित्र परिवर्तित कर लेते हैं लोग ? इन दोनों ने अन्ना को मात्र सीढ़ी के रूप में प्रयोग किया .
समाज के दर्पण होते थे राजनीतिज्ञ लेकिन वे आज आम आदमी भी नहीं रहे. मोदीजी या बीजेपी बहुत अच्छा है या उनका लक्ष्य बहुत अच्छा है यह पहले आम जनता (आदमी) ने आकलन किया लेकिन किरण बेदी तथा साजिया जैसे राजनीतिज्ञों को यही बात समझने में इतना देर लगा की चुनाव से एन पहले उन्होंने अपने अंदर परिवर्तन की आवाज़ सुनी और फिर उनकी प्रशंसा की पूल बांधने लगे जो कल तक हर मंच या हर मौके पर उनकी बुराईयाँ लोगों को गिनाते रहते थे . भारतीय आम जनता ने उनकी बातों को अनसुना कर मोदी या बी जे पि को सत्ता सौंपा था. वही जनता आज किरण बेदी पर विश्वास करेगी यह बी जे पी सोचती है !?
पद की गरिमा तो लुप्त होती जा रही है. जनता स्वयं को ठगा अनुभव कर रही है. जनता अपना मत दे कर जिस पार्टी को पदासीन देखना चाहती है वही पार्टी दूसरे पार्टी के लोगों को अपने में शामिल कर रही है. मात्र दिखावा है कांग्रेस ,भाजपा,जदयू ,समाजबादी………… . सभी सत्ता में आने हेतु किसी भी हद तक जा सकते हैं. लालू और नितीश एक हो सकते हैं. भाजपा वाले कांग्रेस में जा सकते हैं, कांग्रेस वाले भाजपा में समाजवादी साम्यवादी हो जाते हैं और मजे की बात तो ये है की इन नेताओं का हृदय परिवर्तन चुनाव के समय ही होता है. टिकट मिलने के वजह से पद मिलने के वजह से धन मिलने के वजह से या पता नहीं क्या क्या मिलने के चाह में कट्टर से कट्टर नेता तुरंत विचार परिवर्तन कर लेते हैं और जिनके लिए अपशब्दों से अलंकृत भाषाओँ का प्रयोग करते कभी नहीं थकते थे उन्हीं के प्रशंसा में कशीदे पढ़ने लगते हैं. सच ही किसी ने कहा था की अभिनेता से बड़ा कलाकार नेता होता है. मेरे पड़ोसियों को लगता है की सारे पार्टयों का विलय हो जाना चाहिए और एक खिचड़ी पार्टी बनानी चहिये . फिर दाल बदलने या विरोध करने की कहानी खत्म. उस खिचड़ी में दाल चावल सब्जी अलग -अलग नहीं रहता उसी तरह मोदी,राहुल ,केजरीवाल सब एक ही पार्टी में रहेंगे और स्वाद खिचड़ी का जनता लेता रहेगा .
अब देखिये Ms Ilmi का tweet:November २१,२०१३, ‘Hypocrisy, thy name is BJP’ और आज शायद ये unke मुंह से कोई नहीं sun सकता. और किरण बेदी का ट्वीट देखिये – “One day, Namo (Narendra Modi) will have to respond with clarity about riot massacre,” March 16, 2013. किरण बेदी दिल्ली के जनता को अब उसके बारे में बताएगी की वह सतुष्ट हो गयी है.
मुझे एक कहानी याद आती है जो इस प्रकार है. ” एक बार मुल्ला नशरुद्दीन के बेटे ने पूछा की ‘राजनीती’ क्या होती है. उस समय मुल्ला नशरुद्दीन बातों को टाल गए और जबाब दिया की फिर कभी बताएँगे. कुछ दिनों के बाद वो आँगन में एक सीढ़ी ले कर खड़े हो गए और अपने बेटे को कहा की इस पर चढ़ जाये. बेटे ने कहा की वह चढ़ेगा तो गिर जायेगा. पिता ने समझाया ही नहीं बल्कि भरोसा दिलाया की वह बाप है अपने बेटे को कैसे गिरने देगा. बेटा संतुष्ट हो गया और चढ़ गया . जैसे ही वह ऊपर गया पिता के हाथ से सीढ़ी छूट गयी और बेटा निचे धड़ाम. फिर बेटा कुछ पूछता इससे पहले ही पिता ने उसे समझाना शुरू किया की उसकी कोई गलती नहीं है यह तो परिस्थिति ऐसी आन पड़ी की उसकी हाथ ढीली पर गयी वार्ना कोई पिता ऐसा कैसे कर सकता है. बेटा पुनः संतुष्ट हो गया . तब मुल्ला नशरुद्दीन ने कहा की बेटा यही राजनीती है. पहले तो विश्वास दिलाओ , आश्वासन दो और फिर पूरी न कर सको तो फिर विश्वास और आश्वासन से संतुष्ट कर डालो की इसमे उसकी कोई गलती नहीं है. इसी से सीख लेते हुए आज के नेता लोग जनता को मुर्ख बनाओ और राज करो की नीति पर चल पड़े हैं.

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