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आत्महत्या आखिर है तो हत्या ही. आत्मा का हत्या होने से ही तो हत्या होता है चाहे वह अपनी आत्मा हो या किसी दूसरी की आत्मा की हत्या हो. आत्मा की हत्या के साथ साथ शरीर मारा जाता है चाहे अपनी हो या किसी और की अतः जब आत्महत्या हो या किसी और की हत्या , हत्या तो हत्या ही है और हत्या अपराध है तो आत्महत्या कैसे अपराध नहीं हुआ?
यह समाचार पढ़ कर मन व्यथित हो गया कि आत्महत्या का प्रयास अपराध नहीं होगा . सरकार ने (आई पी सी ) की धरा 309 को निरस्त करने का निर्णय लिया . मेरी दृष्टि में यह उचित नहीं है . क्योंकि इससे आत्महत्या करने की प्रवृति और बढ़ेगी . कुछ मानव अतिशीघ्र विचलित हो जाते हैं . थोड़ी सी परेशानी हुई नहीं कि आत्महत्या करने की सोच लेते हैं. लेकिन इसे अपराध होने से धारा ३०९ के अनुसार दंड मिलने के भय से भयभीत होकर यह कदम नहीं उठाते. यदि उन्हें इसका भय नहीं होगा तो इसमें बढ़ोत्तरी ही होगी. आत्महत्या का प्रयाश करने वाले को दंड मिलना ही चाहिए . दिमागी तौर पर कुछ मानव कमज़ोर होते हैं. ऐसे मानव आत्महत्या करने की जल्दी मन बना लेते हैं , पुनः उन्हें भय होता है कि कहीं मैं दण्डित न हो जाऊं.
यह मत कि- यह अपराध नहीं होगा , देश के हितार्थ नहीं है. मुझे याद है कि एक बार एक किशोर रेलवे पटरी पर कटने गया था . वह पटरी के बीच में लेट गया . ट्रेन गुज़र गयी और उसे कुछ नहीं हुआ. लेकिन वहां उपस्थित भीड़ ने उसकी बहुत पिटाई की तथा सबके समक्ष लज़्ज़ित भी किया . और उसे जेल ले जाने केलिए धमकाया भी. इस अपराध के लिए जेल भी जाना पड़ेगा इस भय से उसने सबसे क्षमा भी मांगी. उसके बाद सब ने उसे छोड़ दिया.
यदि यह अपराध न होता और दंड का भय न होता तो पुनः वह आत्महत्या का प्रयास कर सकता था.
एक और उदाहरण है कि एक छात्र था जो परीक्षा के भय से अपने पिता को आत्महत्या की धमकी दिया करता था. उसके पिता ने सूझ-बूझ से काम लिया . उसकी समस्या को समझ कर काउंसलिंग करवाया. काउंसलर ने समझाया साथ में यह भी बताया कि आत्महत्या के प्रयास से जेल भी हो सकती है. लडके ने यह पूछा की मुझे सजा मिलेगी? अब तो मैं सोचूंगा भी नहीं. वह बालक आज अच्छे पद पर सफलता पूर्वक जीवन-यापन कर रहा है. यदि उसे अपराध का भय नहीं हुआ होता तो शायद एक सफल जिंदगी बर्बाद हो गया होता.
एक सज्जन अपने रिटायरमेंट से पहले अपनी जान इसलिए दे दी कि उसके परिवार को ढेर सारा पैसा मिलेगा. मैंने उनके परिवार को बिलखते हुए देखा है. यदि वे जीवित रहते तो कैसे भी परिवार का भरण-पोषण कर सकते थे. लेकिन उनके निम्न सोच के कारण उनका परिवार अनाथ हो गया. और बेचारी पत्नी जीवित होकर भी मृतप्राय हो गयी हैं. क्योंकि इस हृदयविदारक घटना से उन्हें पक्षाघात हो गया . उनके पति जाते-जाते भी उन्हें मार ही गए. क्या हुआ उनके क़ुर्बानी का ?
यदि इसे अपराध नहीं माना जायेगा तो आत्महत्या में बढ़ोत्तरी होगी. आत्महत्या किसी भी हालत में मान्य नहीं होना चाहिए. पृथ्वी पर आना अगर किसी के अपने हाथ में नहीं है तो फिर यहाँ से जाना उसके अपने हाथ में कैसे हो सकता है?
ठीक है अपराध को आज की तरह जेल में रख कर या आर्थिक दंड दे कर सजा नहीं होनी चाहिए बल्कि इस तरह के व्यक्ति का सही इलाज होनी चाहिए . आत्महत्या एक तरह से मानसिक रूप से बीमार लोग ही करते हैं . अतः उनकी सही काउंसलिंग होनी चाहिए . बल्कि मैं तो सोचती हूँ कि आत्महत्या ही नहीं परन्तु किसी भी अपराध केलिए काउंसलिंग ज़रूरी है. सजा सुधरने केलिए होना चाहिए न कि शारीरिक या आर्थिक कष्ट पहुँचाने के लिए . कई उदाहरण है जब हम किसीको किसी अपराध के लिए जेल भेजते हैं तो वह बाहर आकर और ज्यादा खूंखार हो जाता है. अतः जेल न कि सुधारगृह में रख कर उन्हें सुधारना चाहिए. आत्महत्या का प्रयास करने वालों को भी सुधारगृह में रख सुधारने का काम सरकार करे न कि कानून की धरा को ही खत्म कर दे.
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