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काला धन

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कला धन-कला धन सुन सुन कर मन व्यथित हो जाता है. कांग्रेस सरकार की हर का मुख्य कारण शायद यही है. आखिर काला धन है क्या ? आज मानव के जीवन में धन की समस्या सर्व प्रमुख है. जीवन में हर कदम पर काले धन की महत्ता है. विदेश क्या देश की राष्ट्रीय पूंजी और vividh व्यापारों में लगे धन के अतिरिक्त itane बड़े परिमाण में काला धन सर्वत्र बिखरा पड़ा है. जिसका अंदाजा लगाना भी कठिन है. विदेश में पड़े का;ले धन के लिए सव पारेषण हैं लेकिन देश में फैले काले धन की चर्चा भी नहीं होती.
सरकार की नीतियां और कार्य शैली ही मुख्य रूप से जिम्मेदार है काले धन के इस देश व्यापी व्याधि का. परिश्रम से कमाए जाने वाले धन अर्थात सफ़ेद धन ‘कर’ के नाम पर छीन लेना और काले धन वाले पर हाथ भी नहीं लगाना कितनी हास्यास्पद है ? सरकारी फाइलों के धीमी गति के कारण मानव मज़बूरी में रिश्वत का लेन दें करता है. क़ज़ा धन और रिश्वत दोनों जुड़वाँ भाई सदृश है. दोनों में मंजुल समन्वय है. जिस प्रकार शिव पार्वती का नित्य सम्बन्ध है, उसी प्रकार इन दोनों का. अटूट बंधन है. अधिक उत्पादन शुद्ध व्यापर का नियम है. अधिक उत्पादन से आय अधिक होगी . काला धन अर्जित करने के लिया अधिक उत्पादन की आवश्यकता नहीं होती.
आज अधिकांश व्यापारी काला धन कमाने और उसे छिपाने में व्यस्त रहता है. पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता -पुत्र सभी इस चोरी में सहायक हैं और कुटुंब चोरों का गिरोह सदृश हो गया है. मनुष्य काला धन कमा कर मकानों की जगह बँगला बनाकर धन को जड बना देते हैं जो धन देश की प्रगति के लिए होने चाहिए उससे लोग आभूषण , जमीन तथा लॉकरों में जब्त कर देते हैं. धन का चक्र दिन-प्रतिदिन संकुचित होता जा रहा है. देश को अपर क्षति हो रही है. काले धन के कारण सामाजिक जीवन खोखला होता जा रहा है. उद्योगपतियों के पास बड़ी कोठियां हैं सुख सुविधाओं का अपार भंडार है. उनसे नहीं पूछा जाता की’हैली -पैड आपके छत पर होता है. इतनी अपार संपत्ति क्या सफ़ेद धन से हुआ है? सम्पूर्ण देश में काले धन का ही बोल-बाला है. आरम्भ से नियंत्रण नहीं होने के कारण पहले परिवार से समाज से फिर देश से छिपाकर धन को छिपाना मानव की प्रवृति हो गयी है. सरकार को इस काले धन रूपी महामारी को समूल नष्ट करना होगा. कुछ संपत्ति विदेश में जमा होने से इतनी हाय-तौबा मची हुई है. पता नहीं क्या कारण है. लेकिन अभी राजनेता, व्यापारी या अन्य नौकरीपेशा वाले कर के डर से धन यत्र तत्र जमा करते हैं. इस पर कोई ध्यान नहीं है.
धार्मिक स्थलों में जमा धन जो किसी के काम नहीं आता , मुल्क के विकास में प्रयुक्त नहीं होता क्या इसको काला धन कहा जा सकता है. इस यक्ष प्रश्न का उत्तर भी ढूढ़ना चाहिए.
एक दुसरे पर छींटा कशी ,दोषारोपण करके समाज को उल्लू बनाना सरकार की नीति तो नहीं है? पक्ष-प्रतिपक्ष पर कटाक्ष,प्रतिपक्ष पक्ष पर ये राजनेता आम जनता कोई भी मुद्दा बनाकर देश की जनता को धोखा दे रही है. अपने असमर्थता छिपाने के लिए जल्दबाजी में कदम उठकर स्थिति को और भी विकट बना देती है.
जरूरत है -धन प्रयोग में रहे इस की व्यवस्था हो. लोग आखिर बाहर या देश के भीतर धन क्यों छुपाकर रखना चाहते है या मज़बूर होते हैं. केवल इस लिए की कर बचा सकें ? शायद कर से बचने के अलावा और भी बातें है, जैसे की पैसा अगर रिश्वत का है तो भी , पैसा अगर चोरी का है तो भी या बेईमानी की कमाई का है तो भी , आय से अधिक संपत्ति जमा होजाने पर इसे छुपाने की आवश्यकता लाजमी है.
अब सरकार ऐसा उपाय क्यों सोचे जिससे रिश्वत बंद हो या जामखोरी न हो या आय से अधिक संपत्ति जमा न हो , जब की सरकार में जो होते हैं या सरकार जिन के बुते चलती है वे ही इस तरह के धन अर्जन तथा संग्रह में लीन होते है. जब तक दूध की रखवाली बिल्ली करेगी तब तक इस समस्या का कोई निदान नहीं हो सकता है, अतः हमें सही रखवाला का चयन करना होगा , तभी समस्या का समाधान हो सकता है. और काला धन , अपराध मुक्त देश की कल्पना की जा सकती है.

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