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स्वच्छ भारत एक क्रांति.

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मोदीजी ने जो यह नया नारा दिया है यह केवल नारा ही नहीं वरन एक क्रांति है. हरित क्रांति,श्वेत क्रांति इत्यादि के बाद जब देश एक मुकाम पर है बस केवल हमारी गंदगियों से हम बदनाम ही नहीं बीमार भी हो रहे हैं तो हमें इस ‘स्वच्छ भारत’ क्रांति की सख्त आवश्यकता है.
इस समय भी हम किसी से पीछे नहीं हैं. मंगल पर हम पहुँच सकते हैं जब की बहुत बीमार और बिमारियों तथा गंध एवं गंदगियों से हमें दिन-रात जूझना पर रहा है. सिगरेट,बीड़ी,शराब के उत्पादन से हम कमाई करते हैं और उस गंदगी को तत्काल बंद नहीं कर सकते ! लेकिन बांकी कचरा जो राजनीति में है, प्रशासन में है, उद्योग में, तथा और सभी जगह दीखता है उन सभी को तत्काल झाड़ू नहीं लगा सकता तब कम से कम हमारे द्वारा पैदा किया गया घरेलू कचरा का सही निस्तारण कर प्रत्यक्ष गन्दगी तो साफ कर ही सकते हैं और करना ही चाहिए. अब जब हम इन घरेलू कचरा/गन्दगी का सही निस्तारण करेंगे अर्थात आज का नजारा जो हर सड़क,गली में दीखता है वह खत्म हो जायेगा तो देश स्वस्थ रहेगा सुन्दर रहेगा और स्वस्थ देश कितना कुछ कर पायेगा यह सभी जानते हैं,क्योंकि अभी गन्दगी में रहते हुए भी हम कमल की तरह खिल रहे हैं तो साफ-सुथरा होने पर शायद हम विश्व में सब से आगे रहेंगे ,इसमें संदेह नहीं. अतः मोदी जी संकल्प उचित और सामायिक है,तथा प्रशंसनीय भी.
मेरी एक सहेली ने कहा -मोदीजी सबकुछ छीन रहे हैं .कांग्रेस से पहले सरदार वल्लभ भाई पटेल को छीना फिर गांधीजी को छीना और अब केजरीवाल का झाड़ू भी छीन लिया .मैं सहमत नहीं हूँ अतः मैंने कहा – छीन नहीं रहे हैं बस छोटा हो या बड़ा हो जिसका भी गुण देखते हैं लपक लेते हैं और उन गुणमयी वस्तुओं का प्रयोग शीघ्र ही देश-विकास तथा जन विकास में कर लेते हैं .
इस अभियान के अवसर पर मेरे हृदय में सुप्त पड़ी सत्य घटना की स्मृति हो आयी. उस समय मैं कानपूर में रहती थी. जिस मकान में मैं रहती थी उसके ठीक सामने खाली जगह था जो की चारदीवारी से घिरा हुआ था. मेरे कम्पाउंड के सामने खाली जगह पर लोग पेशाब कर देते थे. हम लोग परेशान थे. मेरे पति ने एक सज्जन को पेशाब करते देखा तो उन सज्जन को अपने घर बुलाया ,चाय नाश्ता के बाद उनके घर का पता पूछा. वह सज्जन चकित थे कि न जान-पहचान न कुछ फिर ये इतना स्वागत क्यों? उनकी उत्सुकता भांप कर मेरे पति ने पुनः उनसे उनके घर का पता पूछा और बताया की पता इसलिए जानना जरुरी है की मुझे भी आपके घर के आगे आपकी तरह आचरण करना है जिससे आप मेरे तकलीफ से अवगत होंगे.अब उन सज्जन का लज्जित मुख देखने लायक था.मैं उनका लज्जित चेहरा भूल नहीं पाती हूँ.
मुझे रुड़की की एक घटना भी याद है. लोग सार्वजानिक पार्कों में पार्टी करते थे और सफाई करना अपना कर्तव्य नहीं समझते थे अर्थात गंदगी छोड़ देते थे ,मुझे बहुत अशोभनीय दृष्टिगत होता था .मैंने स्थानीय समाचार -पत्र को लिखा .उन्होंने एक्शन भी लिया .मैं जब-तक रही पार्क को स्वच्छ ही पाया .आज भी जब दोस्तों का फोन आता है सब मजाक में कहती हैं -आपके आवास -विकास वाला पार्क साफ़ है .
प्रधानमंत्रीजी की स्वच्छता अभियान के सन्दर्भ में इन घटनाओं की स्मृति हो आयी है .उनका यह कदम सराहनीय ही नहीं प्रशंसनीय है .सर्वप्रथम मानव को बाहरी स्वच्छता के साथ आंतरिक स्वच्छता पर भी ध्यान देना चाहिए .यदि अन्तर्मन निर्मल रहेगा तो स्वतः ही दूसरों के कष्ट का अनुभव होगा और मनुष्य अपने साथ अन्यों का भी ध्यान रखेंगे.
तथाकथित बड़ेलोगों को जब मैं दूसरे लोगों के घर के समक्ष कूड़ा डालते देखती हूँ ,तो चकित हो जाती हूँ और सोचती हूँ क्या मात्र दिखावे के लिए बड़े लोग हैं ,बड़ेलोग तो तब बड़े लोग हो सकते हैं जब स्वयं के विषय में जितना सोचते हैं ,उतना ही अन्य के विषय में सोचें ,अन्य के कष्ट को समझें .दूसरे के घर के समक्ष कूड़ा देखकर उसकी पीड़ा को समझें न कि गन्दगी देखकर यह कहना -कि यह कोई बड़ा इशू नहीं है , ये बातें करके किसी के हृदय को छलनी न करें . ईश्वर ने सबकुछ दिया है तो उसकी क़द्र करें न कि अपने आचरण से किसी को ठेस पहुचाएं. अतः हमें वाह्य कूड़े के साथ -साथ दिमाग में लगी हुई जाले भी साफ करनी चाहिए.
मोदीजी का यह कदम अत्यंत श्लाघनीय है,प्रशंसनीय है .उनके इस पहल से उनका कद और भी बढ़ गया है. सम्पूर्ण देश आपके साथ है.

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