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विपणन हमारा प्रमुख कार्य है. हम हिंदुस्तान में केवल सामान ही नहीं बेचते हैं वल्कि दाल ,चावल,सब्जी,कपडा, धरती,चाँद या दूसरे ग्रहों पर स्थल ही नहीं, दिल,दिमाग,शरीर तथा इन सबके साथ हम महिलाओं,बच्चियों,लड़कियों और छोटे -छोटे बच्चों को भी बेचते हैं. हमारे जैसे व्यापारी इस धरती पर और किसी देश में उपलब्ध नहीं है. हम सब कुछ बेच सकते हैं. सौभाग्यवश खरीददार भी हमारे स्वदेशी ही हैं. निर्यात के झंझट की जिल्लत भी नहीं. हम जब मनुष्य(महिलाओं) का विपणन करते हैं तो सरकार को कर भी नहीं देनी पड़ती है. शर्म तो हमें आती ही नहीं. कानून से कोई डर भी नहीं.
हमीरपुर में २५ हज़ार में महिलाएं बिकती है ,मानवीयता से परिपूर्ण भारत का यह तस्वीर क्रेता और विक्रेता के चेहरे पर भले ही हैवानियत भरा क्रूर मुस्कान से रंगी हुई दिखती हो लेकिन है तो यह मानवता के ऊपर काला दाग़ ही .
श्यामलाल इंटर-स्टेट व्यापारी हैं .ओडिसा से आयात कर उत्तर-प्रदेश में बेचना चाहते थे .खरीददार इतने अधिक थे कि उन्हें नीलामी का आयोजन करना पड़ा.
इस घृणित आचरण में सम्मिलित होने वालों को उम्रकैद या फाँसी की सजा देनी चाहिए .जिस देश में छेड़खानी के लिए जेल की हवा खानी पड़ती हो उस देश में मानव क्रय -विक्रय में लिप्त लोगों को फांसी की सजा देना शायद ज्यादती नहीं होगा.
बलात्कार की सजा फांसी तो इस तरह की अपराध की सजा भी फांसी. लेकिन ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि जिस देश में राजनीतिज्ञ लोग बलात्कार को लड़कों की भूल मानते हैं न की अपराध और जिस देश में कुछ राजनीतिज्ञ लोग एक प्रदेश में चुनाव में बोट पाने के लिए दूसरे प्रदेश से वधू की व्यवस्था की बात करते हों वहां शायद इस तरह के व्यापार को अपराध ही न मानें.
देश में अगर छेड़खानी,बलात्कार,जिस्मफरोशी बंद नहीं हो रहा है तो इसका कारण यह तो नहीं की अभी तक लोग महिलाओं को “सामान” ही समझ रहे हों!??
खैर तत्काल तो यही दीखता है की “यहाँ सब कुछ बिकता है”.
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