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अच्छे दिन – नशामुक्त देश

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स्वस्थ्य मंत्री हर्षवर्धनजी तम्बाकू उत्पादन पर टैक्स बढ़ने की बात कर रहे थे. एक पक्ष से देखें तो उनका कदम सही है. लेकिन सिक्के के दो पहलू होते हैं. ऊपरी तौर पर सोचें तो ठीक है. यदि चिंतन या मनन कर के देखें तो यह कदम घातक प्रमाणित होगा. नशा का जिसे लत लग जाता है , आदत बन जाती है उसे मूल्य का कहाँ परवाह रहता है. वह तो किसी भी तरह नैतिक या अनैतिक रूप से अपनी नशा का उपाय तो करेगा ही. पहले तो किसी भी तरह पैसे कमाने की चेष्टा करेगा चाहे कोई भी नीच कर्म करना पड़े. उच्चवर्गीय लोगों को पैसे की कमी होती नहीं है, इसलिए उनकी स्थिति यथावत ही बनी रहेगी. माध्यम वर्ग के लोग अपनी पत्नी, बच्चे,अर्थात परिवार के खर्च में कटौती करके अपनी नशा के लत को कायम रखेगा. निम्न वर्गीय मानवों की आमदनी तो बढ़ेगी नहीं, वह अपनी इस आदत को पूरा करने केलिए पत्नी के गहने बेचेंगे.बच्चों को स्कूल नहीं भेजेंगे, उनसे काम करवाएंगे,फलतः स्त्रियों पर अत्याचार होगा. बच्चों से काम करवाने के कारण बाल मज़दूरी में वृद्धि होगी. नारियों के सम्मान में गिरावट होगा , वे शोषित होंगी. अतः क्यों न उत्पादन में रोक हो? तम्बाकू उत्पादन पर प्रतिबन्ध लगाने से ही इसका समूल नष्ट हो पायेगा. उत्पादन ही नहीं होगा तो मानव खरीदेगा कहाँ से? इससे न महंगा न सस्ता, पत्ता ही साफ. न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी. हाँ यह कठोर कदम एक ही समय में सम्पूर्ण देश में एक साथ लागू होना चाहिए. जिससे एक राज्य से दूसरे राज्य में आदान- प्रदान नहीं हो सकेगा. जिस तरह गांजा उत्पादन पर रोक लग गया है उसी तरह सम्पूर्ण देश में तम्बाकू उत्पादन पर रोक लगनी चाहिए. ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए की किसी भी नशीली वास्तु का उत्पादन ही न हो. किसी भी परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को लाइसेंस नहीं मिलनी चाहिए या नहीं देनी चाहिए. सरकार को लाभ के बदले हानि ही होती है आर्थिक रूप से भी. पहले तो देश में अधिकांश मानव नशेड़ी है, नशा के कारण वे मानसिक रूप से अस्वस्थ तो हैं ही शारीरिक रूप से भी अस्वस्थ रहते है. जब अधिकांश नागरिक अस्वस्थ रहेगा तो देश का सर्वांगीण विकाश कैसे होगा? नशा के कारण किसी को अस्थमा है तो कोई ह्रदय रोगी , अथवा सम्पूर्ण रूप से किडनी ख़राब है तो कोई कैंसर जैसे घातक बीमारी से जूझ रहा है. अर्थात इन बिमारियों के उपचार में जो व्यय होता है वह इन नशीली पदार्थों के उत्पादन से जो आमद होगा उससे अधिक है. अर्थात सरकार को जितना आमदनी होता है उससे ज्यादा इन बीमारियों पर उसे खर्च करना पड़ता है. बस सरकार को इन गंभीर बातों पर ध्यान देना चाहिए.
गुजरात में सरकार ने शराब बंद ही कर दी. न गुजरात गरीब हुआ न गुजरात सरकार की आमदनी में कमी आई. अब जब मोदीजी केंद्र सरकार के मुखिया है तो देश में इस तह के नशीली पदार्थों पर प्रतिबन्ध क्यों नहीं लगा सकते?
अभी-अभी बोकारो में जो घटना हुई है वह भी तो नशे के कारण ही हुई है. जो घिनौना रूप ले लिया है . ऐसी हज़ारों घटनाएँ घटित ही चुकी हैं जिससे सम्पूर्ण देश शर्मसार है. तो अच्छे दिन कैसे आएंगे?. शायद देश नशामुक्त होगा तो अपने आप ‘अच्छे दिन आजायेंगे’.

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