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गंगा

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कल – कल करती निर्मल धारा
निर्झर निर्मल नीर हमारा
धरा को पवित्र करने आयी हूँ
गंगा मेरा नाम है
सबकी प्यास बुझाने आयी हूँ.
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जिसमें डालो मेरे जल को
पवित्र वह बन जाता है
मेरे जल के आचमन से
मानव तृप्त हो जाता है
गंगा मेरा नाम है
शुचिता का पाठ पढ़ाने आयी हूँ.
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मिटटी जो संग लेकर आती हूँ
कृषक धन्य हो जाता है
जीव-जंतु के संग
मानव का प्यास बुझाने आयी हूँ
गंगा मेरा नाम है
हर प्राणी को तृप्त करने आयी हूँ.
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नादान मानव कूड़ा-करकट डाल कर
मेरे जल को दूषित कर
मुझे सताने आएं हैं
जीवनदायिनी गंगा हूँ मैं
उनका भी उद्धार करने आयी हूँ.
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अमृत हूँ मैं विषमय मत कर
हलाहल मैं बन जाऊँगी
अविरल धारा फिर भी बहेगी
चराचर जगत मिट जायेगा
मेरा नाम गंगा है
मैं मिटाने नहीं तारने आयी हूँ.
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शंकर की जटा से निकली
भगीरथ के कठिन तप से
इस धरा पर आयी हूँ
मात्र हर-हर गंगे जपने वाले
मानव को त्राण दिलाने आयी हूँ
गंगा मेरा नाम है
सबको जगाने आयी हूँ.
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सुधा-रस का पान कराकर
जीवन क्या मृत्यु के बाद भी
उद्धार करने आयी हूँ
गंगा मेरा नाम है
हर प्राणी को अम्रृत पिलाने आयी हूँ.
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हर-हर गंगे के उद्घोष से
निशोपरांत उजाले ले कर आयी हूँ
“गंगा जागरण यात्रा ” से
पुनः अलख जगाने आयी हूँ
गंगा मेरा नाम है
सुप्त मानव को राह दिखने आई हूँ.
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