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भाग्य

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वाल्यावस्था से ही सुनती आयी हूँ कि भाग्य प्रबल होता है . मानव इसके अधीन है .बचपन में मुझे यह प्रतीत होता था कि भाग्य कोई बहुत बड़ी वस्तु है जिसे पाना दुर्लभ है. क्योंकि सभी के मुख से सुनती थी कि -भाग्य ही ख़राब है,उसका भाग्य कितना अच्छा है इत्यादि, इत्यादि–.
भाग्य आखिर है क्या? मानंव के जीने का साधन या आशा ! मेरी दृष्टि में भाग्य या तकदीर कुछ है ही नहीं. ‘दैव-दैव आलसी पुकारे ‘ मानव परिश्रम करेगा तो फल मिलेगा ही. परिश्रम ही सफलता की सीढ़ी है. परिश्रम करने पर हर व्यक्ति इच्छित वस्तु पा सकता है. उन्नति और विकास के उच्च शिखर पर पहुँच सकता है.हमारे आस-पास ऐसे लोगों के अनेक उदहारण बिखरे पड़े हैं. जिन्होंने सामान्य स्तर पर कार्य आरम्भ करके अनवरत परिश्रम द्वारा उसका विस्तार बड़े-बड़े कल-कारखानों के रूप में किया. परिश्र्म करने वाले लोगों के पास साधनों की कमी नहीं होती. वे भग्य का रोना नहीं रोया करते. कर्मठ मानव निरंतर परिश्रम करते रहने से असम्भव को सम्भव कर देता है. और ऐसे बहुत उदहारण है जिसमे मानव भाग्य पर निर्भर रहने के कारण अतुल धन राशि गवां देता है.
यदि परीक्षाफल अच्छा नहीं हुआ तो भाग्य का दोष! बेटे-बेटी की शादी ठीक नहीं हुई तो भाग्य का दोष! एक्सीडेंट हो गया तो भाग्य का दोष! फसल अच्छी नहीं हुई तो भाग्य का दोष! कुछ भी अगर इच्छा अनुसार नहीं हुआ तो भाग्य का ही दोष!
मेहनत नहीं करेंगे,अध्ययन पूर्णमनोयोग से नहीं करेंगे तो परिणाम कैसे अच्छा होगा? धैर्य के साथ पुत्र-पुत्री का विवाह नहीं करेंगे तो सफलता कैसे मिलेगी ? अर्थात कोई भी काम मन से परिश्रम के साथ करेंगे तो निश्चित रूप से सफलता मिलेगी ही. गीता में भी कर्म को ही प्रधान माना गया है. अनेक उदाहरण हैं जिसमें श्री कृष्णा अर्जुन को कर्म केलिए प्रोत्साहित करते हैं. अर्जुन के स्थान में मानव को स्वयं समझना चाहिए एवं भगवान के उपदेशानुसार कर्म पर ही ध्यान देना चाहिए. कर्म के अनुसार ही फल मिलता है. अतः भाग्य पर भरोसा नहीं करके कर्म पर ही विश्वास करना चाहिए.
मैं भाग्य को नहीं मानती ऐसा नहीं है. भाग्य भी होता ही है. लकिन कर्म के द्वारा भाग्य बनाना चाहिए न की भाग्य के आश्रय रहना चाहिए . भाग्य में होगा तो सफलता मिलेगी ही यह सोच नहीं रख कर यह सोच होनी चाहिए कि हमें कर्म से ही सब कुछ मिलेगा. परिश्रम करके ही जीवन में सफल हुआ जा सकता है न कि भाग्य भरोसे. अतः तक़दीर नहीं तदवीर पर भरोसा करना चाहिए.
हाथों की चंद लकीर या माथे के लकीर से कुछ नहीं होता है बल्कि हाथों को मेहनत एवं माथे के सोच से भाग्य बनया भी जा सकता है और उसी से बिगाड़ा भी जा सकता है.

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