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वार्तालाप -सब्जियों का

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सब्जी खरीदना हिंदुस्तानी महिलाओं का प्रमुख कर्त्तव्यों में से एक है अतः हम आज जब सब्जी खरीदने बाज़ार गए तो पाया कि बाज़ार तो पहले की ही तरह हरी-भरी सब्जियों से भरा पड़ा था. बस नयी बात यह थी कि सब्जियां आपस में बात -चित करते हुए या भून -भुनाते हुए लगे. मैंने गौर किया तो पाया की अरे! ये तो वार्तालाप कर रहें हैं.
सब्जी बाज़ार में अति कोलाहलों के बीच भी इनकी खुसर – पुसर मुझे सुनाई दे रहा था. चौंकना स्वाभाविक था. और मैं चौंक गई. विश्वास ही नहीं हो रहा था की ये सब्जियां बात कर रही है. मैंने ध्यान से सुना तो गोभी अपने भाग्य का रोना रो रहा था. कह रहा था की मेरे तो भग्य ही फूट गए हैं. देखो न हममें इतना स्वाद है फिर भी मेरे भाव ३० रूपये ही लगते हैं ये मानव. बहुत निर्दयी होते हैं ये लोग. बैंगन ने तो चुप्पी तोड़ते हुए यह भी कह डाला की बहुत सारे गुण के वज़ह से मैं ताज पहनता हूँ लेकिन फिर भी मेरा हाल करीब-करीब ऐसा ही है. ४० रूपये किलो मुझे खरीदते हैं ये निष्ठुर मानव , मेरे गुणों की खान को कैसे ये नज़र अंदाज करते है! इतना सुनना था कि मूली ने भी वार्तालाप में हिस्सा लेते हुए चिल्लाया कि जरा मेरी भी तो सुनो . मैं भी कम गुणवान नहीं हूँ पर देखो तो मेरा हाल. इन मनुष्यों को देखो तो सही मेरा भी उपयोग करते हैं ,मेरे साग का भी . अंचार भी बनाकर साल भर चटकारे लगाकर खाते हैं, सलाद का मजा लेते हैं पर मेरी कीमत मात्र ३० रुपये रखे हैं. क्या युग आ गया है. यह सुनकर गाज़र ने कहा वास्तव में मानव ने अपना संतुलन खो दिया है. मैं हूँ मधुर स्वभाववाला . मेरा हलवा स्वाद के साथ खाते हैं, सब्जी भी बनाते हैं , अंचार भी बनाकर मजा लेकर खाते हैं पर मेरी कीमत तो देखो कितना कम रखा हैं.
परवल भी कहाँ पीछे रहने वाला था.उसने कहा देखो मेरी दशा! वर्ष में ४-५ महीने ही रहती हूँ पर मेरे द्वारा इन्हें कितना फायदा हैं. मिठाई मेरी इतनी स्वादिष्ट बनाकर खाते हैं,सब्जी भी मेरी स्वादिष्ट बनती हैं फिर भी मेरी दशा तो देखो न मेरी प्रशंसा करते हैं न उचित मूल्य ही लगाते हैं. करेला ने भी सिरकत की और अपनी दशा बताते हुए जोड़ा कि -मेरी दशा तो तुम सबसे ज्यादा दयनीय हैं. कड़वा कहकर मेरी खिल्ली उड़ाते हैं और मेरा उपयोग भी करते हैं. मेरे गुणों को तो पूछो मत . मित्रों मैं तो डायबिटीज के लिए रामबाण का कार्य करता हूँ.लेकिन ये निर्दयी मानव क्या जानें. वास्तव में घोर कलयुग आ गया हैं. भिन्डी ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा मेरी भी दशा अलग नहीं है. मैं इन मानवों को स्वादिष्ट सब्जी देती हूँ. इनके स्वास्थ्य का ध्यान रखती हूँ फिर भी उचित मूल्य तो दूर आलोचना ही सुनती रहती हूँ.
टमाटर ने कहा मेरी स्थिति तो देखो मेरे बिना सब्जी बनानी तो दूर कल्पना करना भी कठिन है फिर भी मेरी दशा तो देखो न उपयुक्त कीमत न सम्मान. आलू कहाँ चुप रहने वाला था उसने कहा मैं हूँ बच्चों की पसंद. चाट-पकौड़े सब में विराजमान रहती हूँ.किसी भी सब्जी में मैं चली जाऊं तो स्वाद में चार चाँद लग जाता है पर इन मानव को देखो स्वयं खाने पर कंट्रोल नहीं रहता . अधिक खाकर मोटे होते हैं और दोष हम पर मढ़ देते हैं कि आलू खाने से मोटापा बढ़ता है. मैं अपने ऊपर इन सारी आरोपों को लगते देखकर व्यथित हो जाती हूँ.
मटर ने भी कहा भाई मेरी दुखड़ा तो और कष्टप्रद है. स्वाद देते हैं हम और तारीफ मिलती है पनीर को. इसपर साग ने कहा ये मानव हैं ही स्वार्थी . हम अपना बलिदान देकर इन्हें सेहतमंद बनाते हैं और ये हमारी ही आलोचना करते हैं कि कीमत बढ़ गई है.
बहुत देर से सबकी बातें सुनकर प्याज़ ने कहा तुम लोग कुछ भी कहो मेरी तो चाँदी ही चाँदी है. मैं तो गुणों की खान हूँ. मेरे चाहने से तो सरकार भी गिर जाती है. देखो सभी मेरी ही तारीफ करते हैं. टी.वी. हो या समाचार-पत्र सर्वत्र मेरी ही चर्चा होती रहती है. पुरातन काल में हिन्दू लोग मेरी उपेक्षा करते थे. हमें रसोई में जगह नहीं देते थे पर आज मैं सबकी पसंद हूँ. होटल हो या घर या साधू-संत का आश्रम (कुछ संतों या ब्राह्मणों को छोड़कर जिनकी गिनती नगण्य है) सर्वत्र मेरी उपस्थिति अनिवार्य है.
भला हो उन व्यवसायी मानव का जिसने हमें गुप्त भंडार में छुपाकर मेरा भाव बढ़ाया है. मुझे विश्वविख्यात किया है.
मानव-समुदाय कि आलोचना सुनकर मैं लज्जित हो रही थी, लेकिन प्याज़ के द्वारा प्रशंसा से मन को राहत मिली कि कोई तो है जो मानव को पसंद करता है. मन नतमस्तक हो गया कि आज महंगाई के कारण हमारी मनुष्य जाति की प्रशंसा तो हुई.

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