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‘दामिनी’ केस में फांसी की सजा सराहनीय कदम है. देश की जनता तथा मिडिया के अथक प्रयत्न के फलस्वरूप आज देश की बेटी को न्याय मिला. वसंत विहार सामूहिक दुष्कर्म का यह दिल दहला देने वाला घटना सम्पूर्ण भारत वर्ष क्या सम्पूर्ण मानव जाती के लिए बहुत ही बिभत्स था. पीडिता बेटी के साथ क्रूरतापूर्ण अमानवीय व्यव्हार और बाद में हृदयविदारक अंत जनमानस को व्याकुल कर रखा था.
गत साल के १६ दिसंबर से इस साल के १३ सितम्बर तक भयानक त्रासदी से हम भारत वासी गुजर रहे थे . इस तरह की और भी घटनाएँ भी मन को व्यथित कर रहा था. महिलों के प्रति बढती अपराध से हम दहल उठे हैं. कभी -कभी मन में यह भाव उठता है की यह भयानक घटना” जालियावाला बाग” से भी दुर्दांत था. कथन का तात्पर्य यह है की वह घटना तो परायों के द्वारा हुई थी , यहाँ तो अपनों के द्वारा ही महिलाओं की इज्ज़त की , सम्मान की, नृशंस तरीके से बलात्कार करना. यह शर्मनाक है. छोटी-छोटी बच्चियों के साथ अशोभनीय व्यव्हार मन को मर्माहत कर देता है. तिल – तिल कर मरना भाग्य बन जाता है. यह ऐसा टीस दे जाता है जो जब तक सांस रहती है तब तक वे इस दुर्घटना को भूल नहीं पातीं और जिनके मृत्यु हो जाती है उनके साथ-साथ उनके परिवार वाले सम्पूर्ण जीवन इस व्यथा से उबर नहीं पाते. लेकिन कोर्ट का यह फैसला सराहनीय है. इस फैसले से दहशत होगी और धीरे-धीरे यह कुकृत्य बंद हो जाएगी यह आशा है.
आश्चर्य हो रहा था बचाव पक्ष के वकील वक्तव्य पर. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इन लोगों के घर में बहन -बेटी नहीं है. या यह कहना ज्यादा उपयुक्त होगा की इन निर्दयी के घर में नारी ही नहीं है, क्यों की जिसकी माँ , बहन, पत्नी या बेटी होगी वे बोलना तो दूर सोचना भी महा पाप समझेंगे. इतना घृणित कुकृत्य होने के बाद में ‘माफ़ी ‘ शब्द तो सरासर अन्याय है. ऐसी होछी हरकत करने वालों के लिए वकील तैयार कैसे हो गए?. यह कैसी बिडम्बना है? खैर निम्न सोच वालों के विषय में कहना ही क्या? अस्तु !
लेकिन कोर्ट क्र फैसले से लोगों का न्याय- प्रणाली पर और भी विश्वास बढ़ गया. आखिर बेटी को इस फैसला से न्याय मिला. इस कदम ने निर्भया के साथ-साथ उन समस्त बहन-बेटियों को न्याय मिला जिसने इस त्रासदी को झेल है. अब ऐसे नृशंस दानव सदृश मानव(?!) को कुछ तो भय होगा.
अब हमारी बेटियां निर्भया हो कर सांस तो ले पायेगी. दामिनी की तरह बलिदान तो नहीं देना होगा. आज दामिनी जहाँ भी होगी उसे संतोष हुआ होगा कि उसके साथ अन्याय करने वालों को दंड तो मिला. उसके माता-पिता को थोड़ी शांति तो मिली होगी. खैर उनके विषय में लिखने से भी मेरा मन क्लांत हो रहा है, उनकर दर्द का तो कोई हिसाब ही नहीं . उन्होंने तो बेटी खोई है, जिगर का टुकड़ा खोया है वह भी इतनी त्रासदी के साथ. उस कल घडी का तो कुछ नहीं हो सकता. उनकी लाडली को तो लौटाया नहीं जा सकता है. मगर आरोपियों को दंड दे कर देश ने श्रद्धांजलि दी है.
दामिनी सदैव सुवासित रहेगी जब भी बहादुर बेटी कि स्मृति होगी तो दामिनी का नाम आयेगा ही. दामिनी अमर रहेगी तथा सैदेव देशवासियों के ह्रदय में रहेगी. सभी स्त्रियों के लिए वह एक आदर्श रहेगी.
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