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शिक्षक- बरगद का वृक्ष

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वरगद का वृक्ष दीर्घ जीवी होता है. प्रमाण है की यह हजारों – हज़ार वर्ष तक सर उठाये खड़ा रहता है और शीतलता के साथ साथ अन्य बहुत कुछ जीवों को प्रदान करता रहता है. हिन्दू धर्म के अनुसार बरगद के पत्ते भगवन श्री कृष्ण के आरामगाह के रूप में भी माना जाता है और श्री कृष्ण से बड़े गुरु कौन हो सकते है? “भगवद गीता” में श्री कृष्ण कहते हैं कि वह बट वृक्ष जिसका ज़र ऊपर के तरफ और शाखाएं नीचे तथा पत्ते वेदों के उक्तियाँ है, इस वृक्ष को जो जानता है वो वेद को जानता है. जो वेद को जानता है वह बुद्धिमान है और बुद्धिमान शिक्षक है. बट वृक्ष हमें भौतिक संसार का ज्ञान दिलाता है. अगर हम किसी नदी,पोखरा या ताल के किनारे खड़े हो कर वृक्ष की छाया को जल में देखें तो हमें शाखाएं नीचे और ज़र वाला भाग ऊपर के तरफ दिखाई देगा ठीक उसी तरह जैसे अध्यात्मिक संसार का छाया भौतिक संसार है. भौतिक संसार वास्तविकता का छाया होता है.छाया का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता लेकिन छाया से यह समझा जा सकता है कि कहीं अस्तित्व से पूर्ण कुछ है जिसका यह छाया है. इस तरह का दार्शनिक ज्ञान बट वृक्ष देता है.
बरगद के वृक्ष के तले सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त होता है. पुराने समय में बरगद के पेड़ गुरुकुलों की शोभा बढाती होती थी. आज हम इसी बरगद के तरह अमर एवं निःस्वार्थ ज्ञान दाता गुरुओं के बारे में शिक्षक दिवस पर मन में आये कुछ उद्गार या विचार यहाँ प्रगट करना चाहती हूँ.
पाँच सितम्बर को इस पृथ्वी पर एक महान शिक्षक ने जन्म लिया था. सर्वपल्ली डा.राधाकृष्णन के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. डा, कृष्णन भारत के दूसरे राष्ट्रपति के साथ असाधारण व्यक्तित्व,स्वाभाव से मृदु,कोमल एवं सहयोगी थे. अद्भुत शिक्षक एवं दार्शनिक के रूप में प्रख्यात हैं.डा. कृष्णन अपने छात्रों द्वारा जन्म दिन मानाने की उत्कंठा देखकर इस दिवस को मनाने की सलाह दी थी. पाँच सितम्बर १९६२ से इस पावन तिथि को उत्सव सदृश मनाया जाता है. सभी भारत वासी इस दिन अपने-अपने शिक्षक के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं. आदर्श शिक्षक अपने ज्ञान की ऊँचाई, आचरण की पवित्रता तथा उदार दृष्टिकोण से छात्रों को प्रभावित कर उनकेलिए प्रेरणा श्रोत बनकर समाज को नायब उपहार प्रदान करते हैं. मनुष्य निरंतर कुछ न कुछ सिखाता ही रहता है , पर उसे सिखाने वाला गुरु ही तो होता है. अक्षरारंभ से ले कर जीवन का निर्माण करने वाला योग्य शिक्षक ही तो होता है. गोविन्द से भी मिलाने वाला शिक्षक ही तो हैं. जिस तरह माँ अपनी कोख से प्रतिभावान संतान को जनती है उसी तरह अध्यापक भी छात्र को अपने ज्ञान से सींच कर आदर्श नागरिक बनाने का यत्न करता है.
योग्य शिक्षक से विद्या अर्जन कर छात्र अपने जीवन में सफल ता है. मेरे शिक्षक कहा करते हैं -गृहणी चावल पक जाने पर चावल को पका हुआ समझने के लिए एक चावल मात्र देख कर सम्पूर्ण पतीले का चावल पका है या नहीं आकलन कर लेती है, शिक्षक भी छात्र को देख कर उसके गुण-अवगुण का आकलन कर लेता है.
भारत वर्ष की परंपरा रही है गुरुओं को सम्मान देना. भगवन श्री राम के गुरु वशिष्ठ को सदैव सर्वोच्च स्थान मिलता रहा. पांडवो के गुरु द्रोणाचार्य को भी श्रेष्ठता प्रदान थी. एकलव्य ने तो अपना अंगूठा ही अर्पित कर दिया था.कोई भी युग हो गुरु का स्थान महत्वपूर्ण रहा है. सदैव गुरुओं ने अपने शिक्षा के द्वारा ज्ञान रूपी अमृत वर्षा से सराबोर करते रहे हैं.
शिक्षक अक्सर अपने शिष्यों के समक्ष कठिन से कठिनतर परिस्थितियों की सृजन इसलिए करते हैं कि उनके शिष्यों के अन्दर छुपी हुई क्षमता उभरकर बहार आये. इसलिए महाराणा प्रताप के गुरुवर का कठोर अनुशासन के पीछे छिपे उनका शिष्य प्रेम ही तो था. उनका शिष्य भविष्य का सपूत बने यह निस्वार्थ भावना ही तो था. अक्सर यहीं आज के आधुनिक शिष्य चूक जाते हैं और सोचने लगते हैं कि शायद गुरु हमें परेशान करते रहते हैं. जबकि निःस्वार्थ भावना से गुरु शिष्य को पुत्रवत स्नेह देते रहे हैं.
हमने यहाँ तक देखा है कि गुरु अपने संतान का मोह त्याग कर भी उससे योग्य अपने शिष्य को आगे बढ़ाये हैं. निःस्वार्थ प्रेम से उन्होंने अनेक छात्रों के जीवन को संवार कर देश को कुशल नागरिक प्रदान की है. ऐसे गुरु को शतशः नमन.
जिस प्रकार कुशल चिकित्सक रोगी की नाड़ी देख कर रोग को पहचान कर उपचार करता है, उसी तरह योग्य शिक्षक छात्रों के समस्त विकारों को दूर कर निर्मल एवं योग्य बना देता है. हमारे एक गुरु थे “स्वर्गीय पंडित कृष्ण चन्द्र झा ” . उनके विद्वत्ता के विषय में लिखना सूरज को दीपक दिखाना होगा. उन्होंने अपने अनेक छात्रों को पुत्रवत स्नेह देकर उनका जीवन संवारा है. “छात्र बलम” ही उनका सूत्र था.
शिक्षक का जीवन छात्र के सुख में ही निहित रहता है. शिक्षक ही मानव जीवन में सुविचारों का उत्थान करता है. युग-युगांतर तक गुरु अपनी काव्य रचना से विश्व को लाभान्वित करते रहेंगे.
जब तक धरती पर मानव रहेगा तब तक शिक्षक की आवश्यकता रहेगी और शिक्षक मानव – हितार्थ स्व हित को छोड़ कर अपने छात्रों का जीवन ज्योतिर्मय बनाते रहेंगे.

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