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स्वतंत्रता दिवस पर हंसूं या रोऊँ

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“स्वतंत्रता दिवस ” का हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. राष्ट्रीय और सहज मानवीय दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण दिवस है. राष्ट्रीय एकता और समृद्धि का प्रतीक है यह महान पर्व. देश के सभी त्यौहारों से बढ़कर होता है हमारा यह त्यौहार. स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है. यह दिन हमारी राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक है, भारतवासियों को स्वतंत्रता प्राप्ति केलिए किये गए कठोर तप या संघर्षों की याद दिलाता है. देश के हर कोने में इस दिवस की शोभा निराली होती है. स्वतंत्रता का वास्तविक अर्थ होता है मन -मष्तिष्क और व्यव्हार का स्वच्छ खुलापन. मानवीय आदर्शों, जीवन – समाज की आवश्यकताओं, इच्छा -आकांक्षाओं का ध्यान रखते हुए उचित कार्य करने की आज़ादी. इसका अर्थ होता है व्यावहारिक अपनापन अर्थात ऐसा आचरण करना जो मानव हितार्थ के लिए हो. परन्तु नहीं हमने अपनी स्वेच्छाचार को स्वतंत्रता मान लिया है. स्वतंत्रता के नाम पर स्वार्थ-साधना को अपना उद्देश्य बना लिया है. इस दृष्टि से हम स्वतंत्रता के अधिकारी नहीं हैं. लगभग सौ वर्षों तक हमारे नेताओं ने आज़ादी पाने के लिए जो संघर्ष किया , बलिदान दिया शहीद हो कर देश को आज़ादी दिलाई इस उद्देश्य से नहीं कि निरंकुश और उच्छ्रिङ्खल हो कर अपनी स्वार्थ-पूर्ति में लिप्त रह कर समाज को अहित पहुंचाए.
स्वतंत्रता मिलते ही हम आपस में लड़ने लगे. “प्रथमग्रासे मक्षिका पातः” की तरह स्वतंत्रता मिलते ही हम आपस में लड़ने लागे. तुम हिन्दू हो हिंदुस्तान में रहोगे , तुम मुस्लिम हो पाकिस्तान में रहोगे. इस से पहले मैं मुस्लिम प्रधान मंत्री बनूँगा , मैं मुस्लिम देश बनाऊंगा. दूसरा कहता था केवल मैं ही प्रधान मंत्री बनूँगा . इस तरह पालने में ही पूत के पांव दिखने लगे. स्वतंत्रता का अर्थ हमने लगाया की देश को बाँटो, जाति को बाँटो , धर्म को बांटों ,फूट डालो और राज्य करो. सही मायने में हम स्वतंत्र आज भी नहीं हैं. हम गुलाम हैं. तथाकथित नेताओं के, माफियाओं के , धनवानों के , शक्तिशालियों के. फर्क इतनाही है अंग्रेजों के ज़माने में आवाज उठाने वालों को खुलेआम गोलियों से भून दिया जाता था , फांसी पर लटका दी जाती थी, जेल में बंद कर दिया जाता था. आज भी वही होता है. सतेन्द्र दुबे को गोली मर दी जाती है. दुर्गा शक्ति को निलंबित कर दिया जाता है. ऐसे अनेकों उदहारण हैं. राजनितिक पार्टियाँ सब चोर-चोर मौसेरे भाई हैं. नहीं तो वे अपनी पार्टियों को आर टी आई के दायरे में क्यों नहीं आने देते.
समरथ को कछु दोष न गोसाई. लालूजी समर्थ हैं तो जज ही बदलवा देंगे. अपराध करो धन है जमानत के लिए जमा करो, जमानत पर रिहा हो जाओ. धन नहीं है जमानत नहीं दे सकते, जेल में सड़ते रहो, निरपराध हो या अपराधी.
हमारे एक मित्र का कहना था -लाइसेंस ले कर कुछ भी कर सकते हैं. घोटाला करने के लिए नेतागिरी का लाइसेंस लेलो.एम् एल ए, एम् पी दोनों घोटाला करो. कोई कुछ नहीं करेगा. बीमारों का खून चूसना हो डाक्टरी का लाइसेंस लेलो. बस ३०-४० लाख रुपये में डाक्टरी की सर्टिफिकेट मिल जाएगी. और जब डाक्टर बन गए तो बीमारों का खून चूसने का लाइसेंस मिल ही गया. व्यापर का लाइसेंस लो मनमानी भाव में सामान बेचो कोई कुछ नहीं कर पायेगा. इनिजिनियारिंग का लाइसेंस लो , सरकारी नौकरी करो ईंट,गिट्टी,बालू,सीमेंट सब खा जाओ कोई कुछ नहीं करेगा. अतः लाइसेंस लो मनमानी करो.
मुझे किसी मित्र ने दोहा सुनाया था ” तुम भी लूटो, हम भी लूटें, लूटने की आज़ादी है. सबसे ज्यादा वही लूट पायेगा जिसके बदन पर खादी है.
बड़ी मछली पहले भी छोटी मछली को निगलती थी , आज भी निगल रही है. अर्थात जिसकी लाठी उसकी भैंस -गुलामी के समय भी यह चरितार्थ था और आज स्वतंत्र भारत में भी यही चरितार्थ है.
स्वतंत्रता सेनानियों ने क्या-क्या कल्पना की होगी! अच्छा हुआ की उन्होंने नहीं देखा देश की यह छवि. नहीं तो वे भी रोते . हंसने का तो सवाल ही नहीं उठता है.
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हूँ इस स्वतंत्रता दिवस पर हंसूं या रोऊँ?

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