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अचेतनों का योगदान चेतन मानव के लिए स्मरणीय है . संस्कृत साहित्याकाश के जाज्वल्यमान नक्षत्र सदृश महाकवि कालिदास ने अपने काव्य ‘ मेघदुतम’ में अचेतनों के योगदान का अत्यंत सरल एवं सरस उल्लेख किया है. अचेतन दूत के द्वारा प्रणय – सन्देश भेजने का वर्णन नितांत मौलिक कल्पना है. श्रावण मास के निकट होने पर अपनी प्रिया की जीवन रक्षा चाहने वाले उस यक्ष ने मेघ द्वारा अपनी कुशल वार्ता भेजने की इच्छा से मेघ की पूजा अर्चना कर प्रसन्नतापूर्वक प्रणय -भरे वचन से उसका स्वागत किया . कहाँ तो धुंवा , तेज ,जल और हवा के समुदाय से उत्पन्न जड़ मेघ और कहाँ इन्द्रियों से युक्त प्राणियों से भेजे जाने वाले संदेशके वचन ? उत्कंठा के कारण इस बात का विचार न कर यक्ष मेघ से याचना की, क्योंकि कामातुर व्यक्ति चेतन और अचेतन का विचार करने में स्वभाव से ही दीन विवेकहीन हो जाते है. कवि कुलगुरु कालिदास अचेतनों के माध्यम से अत्यंत ही उपयुक्त सन्देश देते हैं.
आशय यह है कि अचेतन जो है वह है जीवन. “क्षिति, जल , पावक, गगन , समीरा ” इन्हीं पञ्च तत्वों से (जो कि अचेतन है ) से चेतन मानव बनता है.जल ही जीवन है. इसके बिना जीवित रहना असम्भव है . आजकल जीवन रक्षक जल का मानव दुरुपयोग करने लगा है . गंगा , यमुना जैसी पवित्र नदियों में मानव गन्दगी डाल देता है, उसके उपकार का बदला अपकार से चुकता है. मानव की इसी कृतघ्नता से अचेतन क्रोध में आकर प्रलय कर देता है . मन्दाकिनी का प्रकोप इसीका तो परिणाम है. केदारनाथ, बद्रीनाथ इत्यादि पावन धाम को स्वर्ग की उपाधि दी जाती है. उस पावन धरती पर मनुष्य द्वारा मदिरा पान तथा अन्य कुकर्म करना कहाँ तक उचित है ? कब तक इश्वर सहन करते ? इश्वर तपस्या में लीन हैं. उस स्थान पर अशांति फैलानेसे इश्वर का कोपभाजन तो बनाना ही परेगा . आधुनिकता तथा विलास केलिए बड़े-बड़े होटल तथा अन्य व्यापारिक लाभ केलिए आधुनिक निर्माण कार्य कर उस जगह की शांति में विघ्न डालना उन्हें क्यों सहन होता? जहाँ गिरि , वन , उपवन , निर्झर नदी , पुष्प-लताएँ , पशु -पक्षी एवं ऋषियों के आश्रम आदि रमणीयता से परिपूर्ण उस एकांत स्थान में कोलाहल पूर्ण वातावरण सृजित करना पाप ही तो है.
अचेतनो के साथ मानव को खिलवाड़ न करके विज्ञानं को वरदान ही रहने देना चाहिए , इसे अभिशाप में परिवर्तित नहीं होने देना चाहिए.प्रकृति की भव्यता तथा रमणीयता को नष्ट नहीं करना चाहिए. मनुष्य को अंतःकरण में अचेतनों के प्रति अगाध स्नेह रहना चाहिए. जिसके फलस्वरूप यह हमें भीषण प्रकोप से रक्षा करेगा.
अचेतन से अगर मनुष्य प्रेम करना सीख ले तो स्वतः ही चेतन से वह प्यार करने लगेगा और फलस्वरूप मनुष्य कलंक रहित हो पायेगा . और शायद दामिनी कांड , निर्दोषों की हत्या, भ्रूण हत्या , घूसखोरी , आदि व्यभिचार का अंत हो पायेगा.
अचेतन के योगदान को सतत स्मरण रखने से पुनः स्वर्ण युग की तरह मानव फूलों एवं भौरों के गुंजन से युक्त बृक्षों, हंसों की पंक्तियों से घिरी कमलनियों, चमकने वाले पंखों से युक्त हंस तथा कलरव करने वाले मयूरों एवं अंधकार से रहित धवल – चंद्रिकामयी रजनियों तथा पीयूष की बूंद से अमृत तत्व प्राप्त कर मानव नवजीवन प्राप्त कर लेगा.
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