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फ़ूडप्रिंट – भोजन का सदुपयोग.

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भोजन का सदुपयोग करना चाहिए. अन्न का अपमान करना भगवन का अपमान करने के बराबर है. अन्न में बसती है अन्नपूर्णा.अतः अन्न के अपमान से भगवती का अपमान होता है.
हमारी एक बहुत बड़ी समस्या है की जब तक गोरी चमड़े वाले किसी बात की सत्यापन नहीं करते हैं तब तक हम उस बात की महत्ता को नकारते हुए केवल अपने धर्म ग्रन्थ या पुराणों में लिखी कोरी बात ही समझतें हैं. खैर देर ही सही और पश्चिम वालों के कहने के बाद ही सही हम समय रहते सही सलाह को सही मान कर अगर उस सलाह पर अमल करें तो फायदा भी हमें ही मिलेगी.
कृषक अपना खून -पसीना बहा कर अनाज उपजाते हैं. उस अन्न की बर्बादी कितनी आपत्तिजनक है. धूप में तप कर बारिश में भीग कर ठण्ड में ठिठुर कर किसान फसल उगाते है. उस अनाज को कितनी मेहनत से रसोइया भोजन में परिवर्तित करते हैं. उस भोजन को लापरवाही के कारण आवश्यकता से अधिक बनाने के कारण बर्बाद कर देना कितना अमानुषिक है. हम सभी जानते हैं की अन्न उपजाने से लेकर उसे पकाने तक में जिस किसी भी तरह का ईंधन प्रयोग किया जाता है उससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. किसान जब बीज बोता है तो उसमें उर्वरक भी डालता है और उर्वरक बनाने की प्रक्रिया में भी जिस ईन्धन (बिजली या अन्य) का प्रयोग होता है उसमें भी कार्बनडाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. कृषि कार्य के लिए जैसे की सिंचाई, कटाई तथा कुटाई -पिसाई सभी में ईन्धन लगते हैं और परिणामतः कार्बन – डाइऑक्साइड उत्सर्जन होता है. इतना ही नहीं जब अनाज तयार हो जाता है और उसे जगह -जगह बाज़ार में पहुँचाया जाता है तब भी ट्रकों या रेल गाड़ियों में ईन्धन का प्रयोग होता है जो कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है. इस तरह अन्न को भोजन बनकर हमारे मुहं तक या कहें की पेट तक पहुँचने में ढेर सारा कार्बन-डाइऑक्साइड का भार हमारे वायुमंडल को लेना पड़ता है. और परिणामतः फिर वही ओजोन सतह की हानि.
हम ये नहीं कहते हैं की भोजन करें ही नहीं. यह तो अनिवार्य आवश्यकता है. लेकिन कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं की भोजन की बर्बादी न होने दें. सतर्कतापूर्वक आवश्यकतानुसार भोजन बनाना चाहिए. थाली में मानव को उतना ही भोजन लेनी चाहिए जितना अनिवार्य हो. अन्न की बर्बादी को रोकने से केवल कार्बन फ़ूडप्रिंट में कमी ही नहीं बल्कि बहुत ऐसे परिवारों का पालन भी हो जायेगा जो गरीबी के वजह से भूखे पेट सोते हैं. मुझे याद है एक बार मैं कहीं घूमने जा रही थी और रास्ते
में किसी ने जूठी पत्तल फेकी. ठीक उसी वक्त १८-२० साल की एक लड़की उस पत्तल को चाटने लगी . देखकर हृदय विदीर्ण हो गया. एक और दिल दहलाने वाली घटना का उल्लेख करना चाहूंगी.उन दिनों मैं कानपूर में रहती थी. मैं चने का भूजा खा रही थी कि दो-एक चना मेरे हाथों से नीचे गिर गया. मेरी कामवाली कि लड़की उस चना को उठाकर खाने लगी. अर्थात किसी के लिए एक चना भी बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस तरह की घटनाएँ शायद सभी ने देखी होगी. कहाँ यह बदहाल स्थिति और कहाँ पार्टियों में अन्न की बर्बादी. देखकर मन द्रवित हो जाता है.
भोजन की बर्बादी देश की समस्याओं में से एक भीषण समस्या है. अन्न की बर्बादी प्रत्येक प्राणी के लिए घातक है. जो अन्न मानव के लिए वरदान है, मनुष्य अन्न के बिना जीवित नहीं रह सकता उसी अन्न की बर्बादी संभवतः हर प्राणी के लिए विष सदृश है. धरती माँ भी आखिर कब तक यह भार सहन कर सकेगी. वायुमंडल दूषित होने से प्राणियों का सांस लेना दूभर हो जायेगा.
हम मानव धरती माँ के ऋण से कभी मुक्त नहीं हो सकते. हमारा सम्पूर्ण भार बहन करती है धरती माँ. और हम मानव इसको प्रदूषित कर पृथ्वी के उपकार का बदला अपकार से देते हैं. हमारे धर्म ग्रंथों में भी कहा गया है की सुबह उठते ही माँ धरती को प्रणाम करो और महसूस करो की हमारी मज़बूरी है उनके ऊपर पांव रखने की. अर्थात हमें धरती का सम्मान करनी चाहिए और और अपने तरफ से ऐसी कोई भी कार्य नहीं करनी चाहिए जिससे धरती माँ को बुरा लगे. इनमें एक है वायुमंडल को स्वच्छ रखना. और कुछ छोटे-छोटे क़दमों से हम अपना कर्तव्य निभा सकते है.
हम शाकाहारी भोजन करेंगे तो कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होगा. मांसाहार से अधिक गैस उत्सर्जित होता है. हम फ्रिज का ज्यादा उपयोग न करें. पाकेट वाला खाना न खाएं (पाकेट बनाने से गैस ज्यादा उत्सर्जित होता है.) परिशोधित भोजन से दूर रहें. स्थानीय उपलब्ध और ताजा भोजन प्रयोग करें तो हम फ़ूड-प्रिंट घटा सकते है. इस तरह हम इस पर्यावरण दिवस पर कुछ छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर थोडा बहुत तो अपने कदम आगे बढ़ा ही सकते है. शायद यही धर्म है. और इस तरह धर्म करते हुए हम कार्बन-फ़ूड-प्रिंट घटाने में अपना योगदान भी दे सकते है.

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