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मेरी माँ

माँ शब्द ही अपने आप में पूर्ण है. माता शब्द में ‘मा’ का अर्थ है ममतामयी तथा ‘ता’ का अर्थ है तारक अर्थात तारनेवाली. माँ इस संसार रूपी भंवर से रक्षा करनेवाली होती है. माँ के स्मरण मात्र से ही एक भावभीनी सुगंध से मन का हर कोन महक उठता है, सुवासित हो उठता है.

माँ के समान कोई भी प्रिय नहीं होता. मेरी माँ इस विश्व की सबसे सुन्दर माँ है. साक्षात् लक्ष्मी स्वरुप है. मेरी हर साँस में बसी है. मैं जितना स्वयं को नहीं जानती उससे ज्यादा मेरी माँ मुझे जानती है. मेरी हर सांस उसकी ऋणी है. माँ जैसी सरल एवं निश्छल प्राणी इस पृथ्वी पर मिलना कठिन है. जैसे वट बृक्ष तपते गर्मियों पथिक को अपने छांव में सुकून देता है उसी तरह मेरी माँ मेरे हर दुःख सुख में मुझे शीतलता प्रदान करती रहती है. माँ ने हमें विवेक शक्ति दी है जिसके द्वारा हम संसार रूपी भंवर में डूबने से बच जाते हैं. आस्था की भंडार माँ हमारे हृदय में ईश्वर के प्रति अनुराग जगाती है. स्वयं स्पृहाहीन ,किसी बात की अपेक्षा नहीं, जो कुछ है मात्र संतान के लिए ही है यही माँ की सोच है.. माँ का साथ मुझे हर पल जीवन्त बनाता है. माँ की जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होती है. एक तरफ बच्चा जब बड़ा होता है तो पुनः माँ अपने बच्चे के बच्चे केलिए समर्पित हो जाती है.
मानव को ईश्वर ने माँ के रूप में बहुत बड़ा उपहार दिया है. आज कुछ लोग इस अनमोल धरोहर को संभाल नहीं पा रहें है.स्वार्थवश माँ की गरिमा को भूल गए हैं. उसकी कद्र नहीं करते अपमानित करते रहते हैं. साथ में नहीं रखना चाहते. समाज में ऐसी बहुत घटनाये होती हैं जिसमें माताएं अपमानित होती रहती हैं. और हम मूक दर्शक बनकर देखते रहते हैं. माँ का हृदय तार-तार होता रहता है. इस सब के बावजूद माँ के हलक से एक ही आशीष निकलता है”जीओ मेरे लाल”.
एक बहुत पुरानी कथा है कि बहूके बहकावे में आकर बेटे ने माँ की गला को काट दिया और ज्योंहि आगे बढ़ा तो पत्थर से टकराकर गिरने लगा तो माँ के मुख से निकला की” संभलकर बेटा”. माँ ऐसी होती है.

माँ और बेटी का रिश्ता बहुत ही मधुर होता है. माँ बेटी की प्रथम गुरु ,मार्ग-दर्शिका एवं सबसे प्यारी सहेली होती है. मेरी माँ भी मेरी सबसे प्रिय सहेली है. मेरी आदर्श है. ममतामयी , त्यागमयी एवं सहनशीला महिला का यदि नाम आता है तो लोग सर्व प्रथम मेरी माँ का ही नाम लेते हैं. मेरी माँ मेरे गाँव की महिलाओं की आदर्श हैं. कोई भी अच्छी बहू आती है तो उसकी तुलना माँ से की जाती है. अगर खराब बहू आती है तो यह कहा जाता है की एक ये हैं और एक मोहिनी (मेरी माँ) बहु हैं! गाँव हो या शहर जहाँ भी जाती है अपने मृदुल स्वाभाव के कारण नाम अनुरूप ही सब का मन मोह लेती है. मुझे अपनी माँ पर गर्व है.
कुछ महान महिलाओं ने मुझे माँ के सदृश ही प्यार दिया है.इस पावन दिवस पर उनका नाम लेना मैं अपना पुनीत कर्तव्य समझती हूँ. मेरी सासु माँ श्रीमती काली झा का भी मेरे प्रति अगाध प्रेम रहा है. कभी भी उन्होंने यह अहसास नहीं होने दिया की वह मेरी माँ नहीं हैं. पुत्रीवत सदैव माना है. नाम के अनुरूप ही माता रानी की छाया हैं. इस पवित्र दिवस पर उनको हार्दिक नमन.
मेरी बड़ी माँ अम्बिका झा जो गत वर्ष बैकुंठ चली गयीं जिनके वात्सल्य के छाँव में ही हम पले बढ़ें. नाम के अनुरूप ही वह जगदम्बा की प्रतिमूर्ति ही थीं . उनको कोटिशः नमन.
मेरी नानी माँ स्वर्गीया इन्द्र्कला झा अत्यंत ही स्नेहमयी त्यागमयी एवं उदार हृद्या थी . उनकी ही छाया मेरी माँ है. इस दिवस पर उनको कोटिशः नमन . मेरी बुआ स्वर्गीया इंदिरा ठाकुर अत्यंत ही भोली भाली थी . उनमें उदारता कूट-कूट कर भरी थी . मेरे प्रति उनका अत्यंत स्नेह एवं वात्सल्य पूर्ण व्यव्हार था . असमय ही काल की ग्रास बन गयी . उनको शतशः नमन .
मेरी आंटी स्वर्गीया मंजू ठाकुर ( म. द. दा. म. महाविद्यालय, मुजफ्फरपुर) , मेरी शिक्षिका भी थीं. उनकी जैसी यशोमयी शिक्षिका मैंने आज तक नहीं देखी . सर्वदा मुझे अपनी बेटी सदृश ही माना. इस पावन समय पर उनको हार्दिक नमन.
मेरे जीवन में बहुत से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप में बहुत सी महिलाओं ने बहुत स्नेह दिया है. उन सबको नमन.
माँ के साथ अपने मन को लगा देने से संतान का सदैव कल्याण ही होता है. माता की प्रतिष्ठा एवं गरिमा ऐसी है की सर्वदा पिता शब्द से पहले व्यवहृत होती रही है- जैसे माता-पिता. माता के समान कुछ भी नहीं है. माता के समान कोई भी प्रिय नहीं होता . उसके सदृश गोई गति नहीं है. यह तो शास्त्र कहता है चाहे महाभारत हो या अथर्ववेद.
इस महान दिवस पर पुनः मैं अपनी माँ श्रीमती मोहिनी झा को नमन करती हूँ.