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यह वही जगह है जहाँ गाज़ियाबाद का अतिप्राचीन इन्क्लेव -गगन इन्क्लेव है जो कभी खाओ गगन रहो की बात करता था आज एक बहुत बड़े -लोक -आश्रय -में तब्दीiल हो गया है, यह अमृत लाल नगर में स्थित है ,गगन एन्क्लेव से बाहर निकलने के बाद राष्ट्रीय मार्ग ९१ की तरफ जाने से सड़क के मध्य में एक वृक्ष कर्तव्य निष्ठ पुलिस की कार्य करता रहता है .यह परोपकारी वृक्ष सच्चे पहरेदार की तरह काम में लीनरहता है .अविचल भाव से खड़ा यह वृक्ष न किसी से भोजन की अपेक्षा करता है न जल की .ऐसा प्रतीत होता है जैसे मानव के मन ,चित्त ,हृदय ,चेतना के हर स्पंदन में प्रभु का दर्शन करवा रहा हो ऊपर आकाश की ओर देखकर .यह न किसी का अपमान करता है न शत्रुता .मानव हितार्थ तपस्वी की तरह साधना में तल्लीन है .इसकी उत्कृष्ट इच्छा शक्ति है मानव को अपने कर्तव्य का बोध करवाना ,दायें से चलना है बाएं से चलना है एक दूसरे से टकराना नहीं है ,यही यह लोगों को समझता रहता है .महाकवि कालिदास के ‘ स्वसुख निरभिलाष: खिद्यसे लोक हेतो: ‘ की याद दिलाता रहता है . स्वयं स्पृहाहीन किसी बात की अपेक्षा अपने लिए नहीं, जो कुछ है दूसरों के लिए है. इसका सन्देश देता रहता है. इसका मौन प्रेम संसार को शांति का पाठ पढाता रहता है. सच्ची लगन से यह रह भटके पथिकों को रह दिखाता है. स्वयं तो कार्बोन -डाइऑक्साइड लेता है प्राणियों को आक्सीजन – प्राण वायु प्रदान करता है. कुछ मानव इसकी कद्र नहीं करके चारों तरफ कूड़ा – कर्कट डालकर इसकी उपकार का बदला अपकार से चुकाते हैं. यह वृक्ष राहगीरों को मुफ्त में अपना प्रेम देता है. कभी – कभी मानव को यह सन्देश देता है की अपने दृढ निश्चय से अपना कार्य करते रहना चाहिए. किसीसे अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए.
यह तो एक वृक्ष की छोटी सी कहानी है. इस संसार के हर वृक्ष निःस्वार्थ प्राणी की सेवा में जन्म से लेकर मृत्यु तक अविचल रूप से अनवरत लीन रहता है. वृक्ष धरा का श्रृंगार ही नहीं बल्कि प्राणी मात्र का निःस्वार्थ सेवक भी है.
अतः हर मानव से मेरा आग्रह है कि इस पृथ्वी दिवस पर कम से कम एक वृक्ष अवश्य गॊद लें. वृक्षारोपण में सम्मलित हों और ईश्वर प्रदत इस अनुपम धरोहर की हर संभव रक्षा करें.
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