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यह पावन दिवस हम महिलाओं के लिए विलक्षण उपहार सदृश है. यह शुभ दिन हमारी आजादी का दिन है. ऐसा प्रतीत होता है जैसे हम आज ही स्वतंत्र हुए हैं. जिस तरह १५ अगस्त, २६ जनवरी हमारे लिए महत्वपूर्ण है उसी तरह ८ मार्च भी.
हमें गर्व है की हम महिला हैं. परापूर्व काल से ही महिला सशक्त रही हैं. शक्ति स्वरुप दुर्गा नारी ही तो थी. शक्ति दाता , धन दाता यश दाता जव नारी ही है तो नारी पूजनीय क्यों नहीं. मनु ने ठीक ही कहा था जहाँ नारियों कि पूजा होती है वहां देवता रमण करते है.
त्याग कि प्रतिमूर्ति रही हैं नारियां . माँ जानकी से बड़ी त्यागमयी और कौन हो सकता है . इतिहास गवाह है कि एक से बढ़ कर एक महान महिलाओं ने हमारे देश का गौरव बढाया है. जिनमे वीरांगना झाँसी की रानी के बलिदान को देश कभी नहीं भूल सकता. विदुषी भी एक से बढ़ कर एक हुईं हैं. मैत्रयी , गार्गी , भारती अनेकों महिलाओं ने अपनी विद्वता से नारियों का मान बढाया है.
अनेक लेखिकाएं अपनी अमर कृति से आज भी हमें प्रेरणा का रस घोल-घोल कर पिला रही हैं. अमृता प्रीतम , शिवानी ,इस्मत चुगताई, कमला दास, अरुंधती रॉय, महादेवी वर्मा, इत्यादि अनगनित लेखिकाओं कि कृतियाँ अमर है और सदा अमर रहेंगी.
श्रीमती इंदिरा गाँधी हमारे देश कि प्रथम महिला प्रधान मंत्री बनकर देश के साथ हम सभी नारियों का सर गर्व से ऊँचा उठा दिया. श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने प्रथम महिला राष्ट्रपति बनकर हमें गौरवान्वित किया. मीरा कुमार प्रथम महिला स्पीकर बनकर हमारा मान ही बढ़ा रही हैं.
महिलाओं कि उपलब्धियों कि सूची लम्बी है. कल्पना चावला , सुनीता विल्लिअम्स, मैरी कॉम, अनेकों ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने ऊँचाइयों को छूकर महिलाओं का मान बढाया है.
महिलाएं अपनी बुलंद इरादों से सदैव चट्टान कि तरह अडिग रही हैं, स्वयं बाती बनकर दूसरों के घर को उजाला देती रहीं हैं. दूसरों के सुख में अपना सुख ढूंढ़ लेती हैं. अपने हौसले से अपने परिवार कि रक्षा करती हैं. दूसरों को आजादी दिलाने वाली महिलाएं आज भी प्रताड़ित होती हैं, अपनों द्वारा छली जाती है. कुछ नर-पिशाच के हवस का शिकार भी बन जाती हैं.
आज भी महिला दिवस के पूर्व संध्या पर राजधानी के आस पास ही राक्षसों द्वारा प्रतारित की गई हैं. कुछ आजादी के लिए छटपटा रही हैं. आज महिला दिवस मनाते हुए १०१ वर्ष होने जा रहा है.
हमें महान महिलाओं से प्रेरणा लेनी चाहिए शपथ लेनी चाहिए कि- हम अबला नहीं सबला हैं, हमें सहारा लेने की नहीं बल्कि देने की आवश्यकता है . समाज की कुछ कुरीतियों को दूर करना है- बाल विवाह, भ्रूण हत्या, बेमेल विवाह , तथा महिलाओं के ऊपर हो रही अन्य सभी अत्याचार को दूर कर एक नया युग बनाने केलिए दृढ प्रतिज्ञ होना है.
दीन-हीन नहीं बनना है. हमें स्वयं अपना प्रकाश बनना है. हम अपराजिता हैं, पराजित होना नहीं सीखा है. इस शुभ अवसर पर एक और प्रतिज्ञा लेनी है कि चाहे कैसी भी परिस्थिति आये हमें कमजोर नहीं बनना है, किसी से भयभीत नहीं होना है. हम गृहणी हो या किसी पद पर कार्यरत हों, समाज में ऊँचा स्थान बनना है. सम्मानित जिंदगी जीना है.
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