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बड़ी माँ की पुण्य तिथि

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आज बड़ी माँ की पुण्य तिथि है. उनको इस संसार से बिदा हुए एक साल व्यतीत हो गया . उसकी स्मृति ने विगत एक साल से हर पल हर क्षण मन को विचलित किया है. अनगिनत मधुर -स्मृति अनमोल धरोहर की तरह है. हमारे जीवन की संबल थी, स्नेह संबल छिन जाने से मन सर्वदा व्याकुल रहता है. उसके संग व्यतीत किये क्षण चलचित्र की तरह कभी रुलाता है, तो कभी जीवन की सत्यता से अवगत करता है. वह अपनी हर ख़ुशी , हर सांस , हर एहसास को हमारे लिए कुर्बान कर दी थी, वह त्याग की प्रतिमूर्ति थी . उसकी दूरदर्शिता एवं संसार के प्रति नजरिया को यद् कर के ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह हमारी बड़ी माँ ही नहीं इश्वर द्वारा प्रेषित देवदूत थी जो हमें सन्देश देने आयी थी.
वह तपस्विनी थी . उसके बिना अजीब रिक्तता का एहसास होता है. उसे जनसेवा से बहुत संतोष मिलता था. लोगों की सेवा करते समय उसे न खाने की सुध रहती थी न पहनने की . स्वयं के लिए जीना तो सिख ही नहीं था. बस ‘द’ अक्षर ही जानती थी.
प्रकाण्ड विद्वान श्री कृष्ण चन्द्र झा की पत्नी एवं उच्च पदस्थ पुत्रों की माँ होने के बाबजूद , गौरवान्वित तो रहती थी लेकिन अभिमान से पूर्णतया अछूता थी वह.
उसने अपने साथ घटित एक घटना मुझे सुनते हुए कहा था की इसका जिक्र किसी से भी नहीं करना. लेकिन उसके प्रथम पुण्य तिथि पर इसका जिक्र शायद अप्रासंगिक नहीं रहेगा. घटना इस प्रकार है. एक बार बड़ी माँ तीर्थ के लिए जनकपुर गई थी. यहाँ भीड़ में वह अपने ग्रामीणों से बिछड़ गई थी. अकेली कोई रास्ता मालूम न होने से वह भगवान को याद कर प्रार्थना करने लगी. इतने में दो तेजस्वी बालक ने उस से पूछा – माँ क्या बात है? बड़ी माँ ने अपने बिछड़ जाने की बात बताई तो उन बालकों ने कहा मेरे साथ चलो. बड़ी माँ यंत्रवत उनके पीछे चली गई. थोड़ी ही दूर चलने पर बालकों ने कहा -जाओ . जैसे ही बड़ी माँ ने अपनी दृष्टि ऊपर उठाई तो देखा की पद्मा पीसी खड़ी है. उन्हें देख कर प्रसन्न हो गई. बालकों को आशीर्वाद देने हेतु जैसे ही हाथ उठाया तो देखा की वहां कोई बालक नहीं है. उसे घोर आश्चर्य हुआ . उसे लगा की बल रूप में राम,लक्ष्मण उसकी सहायतार्थ आए थे. फिर उसने कहा की पता नहीं वह भ्रम था या यथार्थ. लेकिन वो इतनी साध्वी थी और सत्यवादी तथा सरल हृदया थी की उसके साथ कुछ भी हो सकता है. हम सोचते हैं की उसके जगह कोई और होती तो इस घटना को नमक मिर्च लगा कर भगवान के साक्षात् दर्शन होने की ढिढोरा पीटने से कभी नहीं हिचकिचाती . लेकिन वो इस की प्रचार नहीं करना चाहती थी . केवल मुझे बताया और वह भी इस हिदायत के साथ की किसी को नहीं बताना. मैंने आज तक ये किसी को नहीं बताई. लेकिन आज मुझ से नहीं रहा गया.
ऐसी थी हमारी बड़ी माँ. मझे विश्वास है की वह मुझे माफ़ कर देगी .उसका प्रफुल्ल चेहरा भूल ही नहीं पाती हूँ. कहाँ खो गई. उसकी महानता का वर्णन करना मेरे लिए संभव नहीं है. उसकी पुण्य तिथि पर दो शब्द लिखने की धृष्टता कर रही हूँ.

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