- 227 Posts
- 398 Comments
आरक्षण आज की भीषण समस्या है . विराट रूप लेकर यह उभर रहा है. यह कैंसर से भी घातक है. यदि सरकार ध्यान नहीं देगी तो देश की स्थिति और भी बदतर हो जाएगी.
क्या जातियों को पिछड़े तबके में इसलिए शामिल किया जा रहा है की वे वास्तव में पिछड़ी और वंचित है? या इस लिए की उनकी शक्ति और प्रभावशीलता को देखते हुए नेताओं को ऐसा करना पड़ रहा है .
हम महिला हैं तो आरक्षण चाहिए . ऐसा क्यों? महिलाओं का कहना है कि वे पुरुष के समान है. समाज में बराबर का हिस्सेदार समझना चाहिए. भेद-भाव नहीं होनी चाहिए और यह उचित भी है. मेरी राय यह है कि महिलाएं भीख क्यों मांगती है, आरक्षण रूपी भीख के कटोरे से. क्यों न वे अपनी योग्यता से काबिल बनें न कि दया का पात्र बनकर. परापूर्व काल से ही महिलाएं अत्यंत सशक्त रहीं हैं. यथा मैत्रेयी, गार्गी, मांडवी,भारती,सरोजनी नायडू, इंदिरा गाँधी , कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स आदि अनगनित महिलाये बिना आरक्षण के ही अपने मुकाम को पाया है . तो आज की महिला इतनी कमजोर क्यों? जब की पहले के तुलना में आज की स्थिति सभी केलिए बेहतर है.
मात्र निहित स्वार्थ के लिए आरक्षण नहीं मिलनी चाहिए. आज हमारे देश में लाखों परिवार समृद्ध हैं लेकिन उन्हें भी आरक्षण चाहिए क्यों की वे दलित(तथाकथित) हैं. उनके बच्चे आरक्षण के बल पर आगे बढ़ जाते हैं जब कि उन्हें पिता कि अपार sampati भी मिलती है. वहीँ सवर्ण रोजी-रोटी के जुगाड़ में सम्पूर्ण जीवन व्यतीत कर देते है. उनके पास न आरक्षण की सुविधा है न जायदाद. इसलिए उनके बच्चे भी रोजी-रोटी की ही व्यवस्था करते रह जायेंगे. कारण न तो उन्हें पिता की अर्जित की गई कोई सम्पति मिलेगी न आरक्षण रूपी कल्पवृक्ष से अध्ययन,नौकरी. यदि किसी तरह नौकरी मिल भी गई तो फिर प्रोन्नति तो असंभव ही है. फलतः दलितों से भेद-भाव तो होगा ही. ऐसे में बराबरी कैसे आयेगी. सामान्य जन कुंठा के शिकार होते जा रहें है. समस्या इतनी गंभीर है की मात्र यही पूछने पर की आरक्षण कब समाप्त होगा तो तुरंत दलित विरोधी घोषित हो जायेंगे. ऐसे ही हम यह प्रश्न उठायें की “सामान्य श्रेणी को कितने प्रतिशत सीटें उन जातियों को मिल रही है जिनके लिए पहले से ही आरक्षण की व्यवस्था की गई है?” उत्तर तो निश्चित रूप से आशा अनुरूप नगण्य ही मिलेगा और पुनः एक और आरोप लग जाएगा.
यह सबकुछ पूरी आरक्षण नीति को संदेह के घेरे में डालने और पिछड़े वर्गों द्वारा कठिन संघर्ष के बाद प्राप्त किये थोड़े से लाभ को कब्जाने का एक सुनियोजित षड़यंत्र का अंश है. अतः हम निम्न से निम्नतर स्तर पर उतरते जा रहे हैं. शिक्षा का स्तर भी कम होता जा रहा है, सरकारी कार्यप्रणाली का स्तर निम्न होता जा रहा है जिसका असर अन्य वर्गों के साथ-साथ दलित वर्गों पर भी हो रहा है. गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है. कुछ वर्षों बाद विद्वान शयद ही मिलेंगे. आज ही लोग विद्वानों से अधिक धनवानों की इज्जत करते हैं. यह गिरावट नहीं तो और क्या है?
पदोन्नति में आरक्षण के विषय में जान कर मेरा मन व्याकुल हो उठा. तो देश की जनता का क्या हाल होगा?.प्रमोशन में भी सामान्य जन पीछे रह जायेंगे. यह भयानक आपदा की दस्तक है. कुछ नेताओं द्वारा अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए देश की जनता को बाँटने का षड्यंत्र अभी हमें समझ में नहीं आ रहा है. एक तरफ सरकार, नेता समाज सुधारक सभी कहते हैं की जात-पात का अंत करना है. और दूसरी तरफ जात के आधार पे आरक्षण को बढ़ावा देते है. जब तक आरक्षण रहेगा हम जात -पात से कैसे मुक्ति पा सकते है? क्यों की आरक्षण का आधार तो जात-पात ही है. अतः भेद-भाव को मिटाना भी तब तक असम्भव ही रहेगा. इस दोहरी नीति से निकलना अति आवश्यक है.
इसका प्रभाव हमारी अगली पीढ़ी को बहुत भुगतना होगा. उचित नौकरी मिलना कठिन हो जायेगा जिससे मजबूरी बस विदेश की ओर बच्चे भागेंगे. और पुनः ब्रेन-ड्रेन! अपने देश की प्रतिभा विदेशों में खून-पसीना बहायेंगे. अपने देश की सेवा करने से वंचित रहकर विदेशों की उन्नति में सहायक बनेंगे.
अतः यथाशीघ्र सरकार को इस घातक बीमारी से निजात दिलाने का उपाय ढूढना पड़ेगा. हम सभी भारत वासी को एक जुट हो कर निहित स्वार्थ से परे हट कर आरक्षण के बल पर नहीं योग्यता के बल पर आगे बढ़ना चाहिए. tabhi हमें इस अभिशाप से मुक्ति मिल सकती है.
Read Comments