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शिक्षक – के सम्मान में गिरावट

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शिक्षक दिवस सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन के जन्म दिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. ये प्रखर वक्ता थे. आदर्श शिक्षक थे. वास्तव में ये “वसुधैव कुटुम्बकम” की अवधारणा को मानाने वाले थे.

सम्पूर्ण विश्व को एक इकाई में रखकर एक शैक्षिक प्रबंधन के पक्षधर डा.कृष्णन अपने ओजस्वी एवं बुद्धिमतापूर्ण व्यखानों से छात्रों के मध्य अत्यंत विख्यात थे.

आज क्या शिक्षक का सम्मान पूर्ववत है? क्या डा.कृष्णन का प्रयत्न सफल hua? क्या हम शिक्षक पर vishwas करते हैं?
आज का शिक्षक तो शिक्षक नहीं सेवक सदृश है. वह प्रिंसिपल का गुलाम है. जैसा वे कहेंगे, शिक्षक को उन्हीं के अनुसार चलना होता है. शिक्षक नहीं वह तो रोबोट मात्र है. पैरेंट्स डे” पर मुझे शिक्षिकों की दयनीय दशा देखकर,उनका अपमान देखकर मन द्रवित हो जाता है. पहले से ही प्रिंसिपल महोदय का सख्त आदेश होता है कि – बच्चा कितना भी पढने में कमजोर हो, शिक्षक कि बात नहीं मानता हो, उनकी इज्जत नहीं करता हो लेकिन कठोर हिदायत होती है कि बच्चों कि माता-पिता को यही कहना है कि बहुत पोटेंसियल है बस थोड़ी म्हणत की आवश्यकता है. आप चिंतित न हों इत्यादि- इत्यादि. शिक्षक को बिना वजह झूठ बोलते देखकर, पैरेंट्स की चमचागिरी करते देखकर करुणा से मेरा मन द्रविभुत हो जाता है. क्या देश का ह्रास नहीं हो रहा है.
शिक्षक तो समाज का दर्पण होता है, वह कुम्हार की तरह है जो कच्ची मिटटी को तपा कर घड़ा बनता है. ठीक उसी तरह शिक्षक बच्चे को उचित मार्गदर्शन दे कर, उन्हें अपने ज्ञान से सींचकर ज्ञानवान बनाते है. मगर उसी शिक्षक असत्य बोलना परता होगा तो उसकी अंतरात्मा कितनी तड़पती होगी? जिसके बच्चे को वह अपने सुशिक्षाओं से सुशिक्षित कर समाज का सभ्य नागरिक बनाने का प्रयत्न कर रहा है उसी बच्चे की माता-पिता की चापलूसी करना कितना अपमानजनक प्रतीत होता होगा! उनकी दयनीय दशा देखकर मैं सोचने पर विवश हो जाती हूँ क्या इसी देश में गुरु वशिष्ठ, द्रोणाचार्य,विश्वामित्र,डा.राजेंद्र प्रसाद, डा.कृष्णन जैसे बहुत गुरु हुयें हैं. क्या यहीं गुरु को “गोविन्द” से भी ऊँचा स्थान मिला था?

कहीं न कही तो कुछ शिक्षक भी जिम्मेदार हैं. यथा विद्यार्थियों को गुमराह करना उनको गलत अंक देना इत्यादि. जैसे किसी तालाव को गन्दा करने के लिए बस एक सड़ी मछली काफी होता है उसी तरह कुछ लालची शिक्षकों के वजह से सारी शिक्षा या शिक्षक समाज दूषित हो गया है.

दर असल शिक्षा का व्यवसायीकरण ही इसका मूल कारण है. हमारे यहाँ आजकल शिक्षण पेशा में जाता कौन है? जिसे और कहीं नौकरी नहीं मिलती वह शिक्षण पेशा को अपनाता है. क्यों कि शिक्षण संस्थाओं में नौकरी करने से कोई भी शिक्षक भर पेट भोजन भी नहीं कर सकता . अगर हम दूसरे व्यवसाय से इसकी तुलना करें तो यहाँ पे कम मिलती है. और यही वजह है कि शिक्षक अनुचित तरह से आमदनी कमाना चाहता है.

आवश्यकता है शिक्षण सेवा को इज्जत दिलाने की. इस पेशा को अपनाने वालों को इतना ज्यादा पैसा मिलना चाहिए कि शिक्षक केवल अध्ययन और अध्यापन के बारे में ही सोचे न की शाम की सब्जी कहाँ से आएगी यह सोच उसे गलत करने के लिए उकसाए. शिक्षक जब राजनीति एवं अर्थोपार्जन की चिन्ताओ से दूर रहेगा और केवल अध्ययन एवं अध्यापन तथा अनुसन्धान इत्यादि में लगा रहेगा तो स्वाभाविक रूप से इज्जत या उचित सम्मान से नमाजा जायेगा.

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