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उपवन -६, वेणी

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बस में चिंतित बैठी कृष्णवेणी सोच रही थी की इस अवस्था में कहाँ जाऊं ? मेरा क्या अस्तित्व है ? मैं क्या करूँ ? मैं कहाँ जाऊं ? मैं अपने मन की व्यथा किससे कहूँ , कौन है मेरा जिसे अपना कहूँ ? प्रतीची के अलावा मैं जाऊं तो जाऊं कहाँ ? इस उम्र में बेटी के पास ? हाय !मेरा भाग्य I बस की गति से भी तीव्र वेणी का मन भाग रहा था I
जब छः सात वर्ष की थीं तो माता चल बसी, पिता विमाता ले आये, विमाता बहुत कष्ट देती थी I पिता के आफिस जाने के बाद घर का सब कार्य करवाती थी I बासी खाना भी भर पेट नहीं देती थी I किसी तरह समय कट रहा था I विमाता से एक भाई हुआ जिसका नाम कन्नन था I कन्नन की सारी जिम्मेबारी उसी के ऊपर आ गई, लेकिन कन्नन की मुस्कराहट में ही वह अपना सब कष्ट भूल जाती थी I धीरे-धीरे कन्नन बड़ा होने लगा I दोनों भाई बहन में अत्यंत प्रेम था I

लगभग १५-१६ वर्ष की अल्प आयु में उसकी शादी हो गई I विवाह की रात्रि में ही उसे पता चला की यह उनकी दूसरी शादी है I पहली पत्नी राधिका से एक बेटा भी है I पति की चाची ने ८-१० महीने के बच्चे को उसकी गोद में डाल दिया I बच्चा शयद भूखा था I रोने लगा I वेणी उसे भूखा देखकर तड़प उठी i तत्क्षण नौकरानी के साथ रसोईघर में जाकर दूध गर्म करके ले आयी I सभी उसके ममतामयी रूप देखकर स्तब्ध थे I वह स्वयं भी भूल गई की वह नवविवाहिता है I

पति की माँ अच्छी थी पर थोड़ी क्रोधी स्वाभाव की थी I प्रतीक को लेकर सदैव संदेह किया करती थी की पता नही सौतेली माँ प्रतीक को कैसे रखेगी I पर नन्हा प्रतीक तो वेणी के जीवन का सहारा था, वह उसे बहुत प्यार करती थी I पति माधव बहुत ही सरल ह्रदय के थे I वेणी के मृदु व्यव्हार से अत्यंत प्रसन्न रहते थे I धीरे-धीरे प्रतीक बड़ा होने लगा I माँ बेटे का प्यार देखकर माधव निश्चिंत हो गए I गृह कार्य में दक्ष सरल हृदया पत्नी को पाकर तो वे निहाल हो उठे थे I

२-३ वर्ष बाद वेणी को जब ज्ञात हुआ की वह गर्भवती है तो वह चिंतित हुई और पति से कहा की बेकार में यह बच्चा हो गया I इस महंगाई के युग में तो एक बच्चा ही सही है , मुझे यह बच्चा नहीं चाहिए I
बेटे बहु की बातें सुनकर माधव की माँ का मन द्रवित हो गया I वेणी के प्रति ममता से विह्वल हो उठीं I उन्होंने उन दोनों से कहा बेटी इतनी समझदार होकर ऐसी बातें? बच्चा को आने दो , प्रतीक को भी तो कोई खेलने वाला चाहिए I भाई या बहन पाकर बहुत प्रसन्न होगा I
अब तो सास की लाडली वधू बन गई I वेणी को कुछ समय पश्चात् बेटी हुई जिसका नाम प्रतीची रखा गया I प्रतीक,प्रतीची को पाकर प्रसन्नता से खिल उठा I प्रतीक तथा प्रतीची माँ का स्नेह संबल पाकर शनैः-शनैः बढ़ने लगे I बच्चे कुशाग्र बुद्धि के थे I समय अपनी गति से चल रहा था I प्रतीक इंजिनियर बन गया I वह अपने साथ ही पढने वाली लड़की अनिका से प्यार करने लगा I जब वेणी को पता चला तो वह अनिका से शादी करवा दी I प्रतीची भी डाक्टर बन गई I उसकी भी शादी उसके सहयोगी डा.मयंक से करबा दी I माधव और वेणी के प्रसन्नता का तो वर्णन ही नहीं था I

वेणी ने माधव से कहा की कुछ समय के लिए हरिद्वार चला जाये I माधव सहर्ष तैयार हो गए I प्रतीक से टिकट कटवाने के लिए कहकर दोनों जाने की तयारी करने लगे I

संसार में संकट किस रूप में कब आ जाये यह सोच कर हैरानी होती है I अचानक माधव को ह्रदय में बड़ी तीव्र दर्द हुआ बस वह “वेणी” कह सका और उसकी हृदयगति रूक गई I वेणी तो चेतना शून्य हो गई I सम्पूर्ण परिवार शोकाकुल हो गया I माधव तथा वेणी अपनी सारी पूंजी बच्चों के लालन-पालन तथा अध्ययन पर खर्च कर चुके थे I उसकी निधि तो उसके बच्चे थे I प्रतीची अपने ससुराल से आयी सभी रिश्तेदार आये I एक दिन उसकी बहु ने उससे माधव के अंतिम संस्कार में खर्च होने वाले पैसे मांगे I वह तो किं-कर्तव्यविमूढ़ हो कर बस देखती रह गई I अपनी पत्नी की बातें प्रतीक ने सुन ली I वह अपनी पत्नी को डांटने लगा और कहा तुम्हें क्यों चिंता हो रही है I सभी कार्य अच्छे ढंग से प्रतीक ने किया I

अब अनिका अपना रंग दिखाने लगी I प्रतीक के पीछे कंगाल कहकर ताना मारती थी I जिन्दगी में पहली बार विमाता की उपाधि से उसी ने विभूषित किया I

वेणी के कष्ट का तो अंत ही नहीं था I एक तो पति का गम दूसरा बहु के ताने I पति की सरकारी नौकरी तो थी नहीं जो पेंसन मिलता I पोते तक को हाथ नहीं लगाने देती थी I

प्रतीक का स्नेह तो पूर्ववत था पर उसके पास समयाभाव था I वह नहीं जनता था की अनिका माँ को इतना प्रताड़ित करती है I वेणी तो शिकायत करना जानती ही नहीं थी I यदि वह बेटे से कुछ कहती तो उसके बेटे के सुखद जीवन में दरार आ जाता जो वह सहन नहीं कर पाती I

सहनशीलता की भी सीमा होती है, अनिका का कहर बढ़ता ही जा रहा था I उसने सोचा क्यों न प्रतीची के पास जाकर उसे वस्तुस्थिति से अवगत करवा दें I मन भी हल्का हो जाएगा I यही सोचकर वह प्रतीची के पास जाने को उद्धत हुई थी I

अकस्मात बस के होर्न से उसकी तन्द्रा टूटी और उसने सोचा यदि प्रतीची को सत्यता ज्ञात हुई तो वह भी दुखी तथा परेशान हो जाएगी I भाभी से भी सम्बन्ध पूर्ववत मधुर नहीं रहेंगे I दामाद भी क्या सोचेगा ? स्त्री का कर्तव्य तो घर को संभालना होता है I नहीं वह लौट जाएगी I घडी में देखा तो दो ही घंटे व्यतीत हुए थे I वह बस से उतर गई I दूसरी बस से अपने घर लौट आई I नौकर से चाय बनाने को कहकर बैठ गई I नौकर जब चाय लेकर आया तो उसे लगा की शायद वेणी मालकिन सो गई है I जैसे ही उसने माताजी कहकर जगाने की चेष्टा किया तो वह लुढ़क गई I वेणी घर क्या संसार ही छोड़ चुकी थी I

यह कथा मुझे मेरी सहेली ने ऊटी के एक उपवन में सुनाया था .यह बात वर्षों पुरानी है. लेकिन ऐसा प्रतीत होता है जैसे कल की घटित घटना हो.

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