Menu
blogid : 6094 postid : 87

ज़माने की दुहाई !

My View
My View
  • 227 Posts
  • 398 Comments

“हमारे ज़माने में ऐसा नहीं होता था”-यह हर पीढ़ी के लोग दूसरे पीढ़ी के लोगों को कहते हैं. चार पीढ़ी के लोगों को मैंने यह कहते सुना है.
मेरी परदादी भी कहती थी हमारे ज़माने में ऐसा नहीं था, ऐसे लोग नहीं थे,हमारे बच्चे ऐसे नहीं थे…. इत्यादि. मेरी दादी भी कहती थी -हमारे ज़माने में ऐसा नहीं था. और इसी तरह मेरी माँ भी कहती है. आज मैं भी कहने लगी हूँ. मुझे लगता है हर पीढ़ी के लोग ऐसा ही कहते हैं खासकर तब जब उनके मन मुताबिक बात न हो. और शयद जीवन ऐसे ही चलती रहती है.
हम आज के पीढ़ी से अपने पीढ़ी की तुलना करते रहतें है. तुलना किसी भी तरह ठीक नहीं. ये बाल मन पर गलत असर छोड़ता है. प्रायः बच्चे नाराज हो जाते हैं. क्योंकि बच्चे तो देखतें हैं की उनकी पीढ़ी के लोग तो ऐसे ही होते है,ऐसे ही करते है, यही सही तरीका है. और इस तरह बच्चों के मन में बस जाता है की बड़ों की आदत ही होती है हम बच्चों में बुराइयाँ ढूंढने की. यह कहीं न कहीं सच भी है. दरअसल हम अपने बच्चों में अपने मन मुताबिक गुण देखना चाहते है. जबकि बच्चे परिवेश और समाज तथा अपने आस पास के वातावरण अनुसार गुण या दोष विकसित कर लेते हैं. साथ ही साथ बच्चे ही नहीं बल्कि हरेक उम्र के लोगों में यह रहता है की उसकी तुलना किसी से न हो. भले ही वह भाई-बहन ही क्यों न हों.
हम वर्तमान में क्यों नहीं जीते हैं? क्यों भूत में व्यतीत हुई घटना से बच्चों को आहत करते रहते हैं. यदि पुरानी बातें ही करनी है तो पौराणिक कथा सुनाया जाये, ऐतिहासिक कथा सुनाई जाये, धार्मिक कथा सुनाई जाए. इनके माध्यम से बच्चों का चरित्र निर्माण करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए.
ज़माने की दुहाई देकर बच्चों में कोई संस्कार नहीं भरी जा सकती. बल्कि संस्कार की परिभाषा भी समय के साथ -साथ बदलती रहती है. कल तक जो शब्द होंठों पर लाना गन्दी समझी जाती थी वह आज आम हो चूका है. जैसे लड़की या महिलाओं को सुन्दर कहने केलिए अंग्रेजी के जिन शब्दों का प्रयोग आज धरल्ले से हो रहा है वह पहले बहुत गन्दा शब्द होता था. अर्थात समय अनुसार सब कुछ बदलता है. और समय के साथ न चलने वाले पीछे छूट जाते हैं. और पीछे छूटना पिछड़ना है. ज़माने की दुहाई से पिछड़ जायेंगे. अतः ज़माने की दुहाई न दें.

Read Comments

    Post a comment