Menu
blogid : 6094 postid : 84

उपवन-३- कानपूर की एक कथा.

My View
My View
  • 227 Posts
  • 398 Comments

समय और तिथि तो याद नहीं, खैर समय और तिथि का यहाँ कोई खास सन्दर्भ भी नहीं है. उपवन में बिभिन्न तरह के पौधों के अलावा बिभिन्न तरह के लोगों, पशु -पक्षियों, कीड़ों मकोड़ों और और भी बहुत कुछ देखने को मिलता है.
मेरे स्वभाव और शौक के वजह से मैं जिस भी शहर में जाती हूँ वहां के उपवन अर्थात पार्क (छोटा हो या बड़ा) में जाने की कोशिश में रहती हूँ. कई बार मेरे पति मेरे इस शौक के वजह से झुंझला जातें है.
दर-असल मुझे लगता है की आर्थिक दौर में अपने आप को झोकने वालों के अलावा शायद सभी लोग पार्क का आनंद जरूर उठाना चाहते है. कोई मजबूरी वस पार्क में जाता है और कोई तफरीह हेतु. किसी किसी की तो जिंदगी ही वहीँ बसर करती है.
इसी सिलसिला में मैं कानपुर की एक उपवन की अपनी याद बाँटना चाहती हूँ. शहर के बीचों-बिच विकसित एक बहुत ही मनोरम उपवन “मोतीझील पार्क है. स्वरुप नगर के पास स्थित यह पार्क हर तरह से अच्छा है. पार्क के अन्दर झील में हंसों का कतार से जल-विहार करना,चिड़ियों की कलरव,कतार से खड़े बृक्षों का लह-लहाते या झूमते डालियों का आसमान से बातें करना, यह सब किसी को भी मंत्र-मुग्ध करने के लिए काफी है. हम इस मनोहारी दृश्य और चौतर्फी हरीतिमा को मुग्ध भाव से निहार रहे थे. पक्षियों के कलरव से सम्पूर्ण उपवन मधुमय प्रतीत हो रहा था.
अचानक लगा कि हमारे कानों में उपवन कि संगीतमय वातावरण के आलावा बांसुरी कि सुरीली आवाज भी आ रही. बांसुरी बजाने वाले लड़के अपने मधुर गानों से लोगों का ध्यान बरबस ही खिंच रहा था. देखने में भी अत्यधिक सुन्दर था वह. लग रहा था जैसे कवि विद्यापति वर्णित सौन्दर्य या कामदेव का अवतार इस बालक के रूप में हुआ हो. हम सभी उसके मीठी धुन में अपनी सुध बुध खो बैठे थे.
वह तन्मय था. बांसुरी बजाने में तल्लीन था. इतने में एक बन्दर अचानक पेड़ पर उछला जिस से उसकी तन्द्रा भंग हो गई. तन्द्रा भंग होने से उसकी नजर हम सभी पर पड़ी और वह थोडा शर्मा गया. हमने उस से उसका नाम पूछा. उसने बतया वह ‘मधुर’ है.
कभी कहावत सुनी थी कि “नाम के अनुरूप लक्षण भी होता है”. वास्तव में जैसे उसका नाम मधुर वैसे ही उसकी बांसुरी कि आवाज में मधुरता था, उसकी आवज भी मधुर थी. हमारे अनुरोध पर उसने गाना भी गाया. सरसता से परिपूर्ण उसके जादूभरे आवाज से हम सभी मुग्ध थे.
मेरी सहेली ने उससे पूछा- बेटा आप कहाँ रहते हो?
यहीं पास में ही.
घर में कौन-कौन हैं?
उसने कहा पिताजी तो बाल्यावस्था में ही गुजर गए. उनके वियोग में रोते-रोते माँ भी दृष्टिहीन हो गई. भगवान की कृपा से किसी तरह जीवन व्यतीत हो रहा है. मैं घर घर में काम करके गुजारा के साथ पढाई भी कर रहा हूँ. इस साल दसवीं में हूँ.
कुछ देर उपवन में बिता कर उस दिन हम लौट आए. लेकिन घर आने के बाद भी मैं बेचैन थी. मेरा मन बार बार बरवस उस बच्चे की तरफ खिंचा चला जाता था.
हम बराबर पार्क में मिलने लगे. कुछ दिन मैं पार्क नहीं जा पाई. और जब एक दिन पुनः पार्क जाने का मौका मिला तो वह आके मुझसे लिपट गया और कहा की दीदी मुझे दो छोटे बच्चों को बांसुरी सिखाने का काम मिल गया. मुझे प्रसन्नता हुई. उसे चोकलेट देकर आ गई. वह बहुत स्वाभिमानी था. पैसा नहीं लेता था.
समय अपनी गति से चल रहा था. वह टेंथ बहुत अच्छी तरह पास हो गया.
कुछ दिनों बाद अचानक मैंने एक स्वप्न देखा की वह बहुत रो रहा है. सुबह नींद खुली तो मैं व्याकुल हो गई. अतः मैं उस से मिलने उसके घर चली गई. रात्रि का स्वप्न सही निकला. मधुर का अंतिम असर भी छीन गया. उसके करुण रूदन किसी का भी दिल पसीज जाता.
मैं चाहती थी की उसे अपने साथ ले आऊं. लेकिन उसका किसी दूर के रिश्तेदार उसे कोलकाता ले कर चले गए.
इस घटना को घटित हुए बर्षों बीत गए. लेकिन मैं आज तक नहीं भूल पाई हूँ.
पता नहीं मधुर आज किस अवस्था में है, कहाँ है,क्या कर रहा है? कुछ भी तो पता नहीं है. भगवन करे वह जहाँ भी हो स्वस्थ हो एवं आनंदपूर्वक हो.
कभी कभी हम चाह कर भी किसी केलिए कुछ भी नहीं कर पाते हैं बस मूक दर्शक बने रहना पड़ता है.
डा.रजनी.

Read Comments

    Post a comment