Menu
blogid : 6094 postid : 80

उपवन एक-मदुरै की याद.(सुबह का भूला शाम को घर लौट आये तो उसे भूला…..)

My View
My View
  • 227 Posts
  • 398 Comments

बात उन दिनों की है जब एक बार मेरे पति अपने कार्यालय के काम से मदुरै जा रहे थे. संयोग था की पति के साथ मैं भी मदुरै चली गई. पति जब सुबह अपने कम से चले गए तो सायंकाल दिन भर की बोरियत के बाद मैं होटल (जहाँ मैं रुकी हुई थी) के पास के एक उपवन में चली गई.
जब मैं पार्क में चलते चलते थक गई तो वहां पड़ी बेंच पर बैठ गई. उपवन की प्राकृतिक छटा को निहार रही थी. तभी मेरा ध्यान बिलख बिलख कर रोती हुई एक युवती पर गया. मेरे ध्यान का खींचना शायद दो वजहों से था. एक तो उसकी बिलख-बिलख कर रोना और दूसरा उसकी सौन्दर्य. कुछ देर मेरे मन में उहा- पोह चलता रहा. मैं अपने अन्दर की रजनी से लड़ने लगी. जांए या न जाएँ. उससे उसकी तकलीफ के बारे में पूछ कर उसका दिल हल्का किया जाय या नहीं. फिर मैं जीत गई. मेरे अन्दर की रजनी ने मेरे से कहा तूं इस पृथ्वी पर आई क्यों हो? तेरा क्या यह कर्तव्य नहीं बनता है. बस मैं उसके पास गई और धीरे से समीप बैठ कर उसके पीठ पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराने का प्रयास करने लगी.
शायद उसे लगा की उस बेसहारा को कोई सहारा मिल गया. और निमुहें बछड़े की तरह वह मुझसे लिपट गई. शायद उसे लगा की मुझसे उसका जन्मों का रिश्ता हो. ऐसा लग्न स्वाभाविक ही था. कोई कष्ट में हो,परदेश में हो,दुखियारी हो, अकेली हो और कोई थोडा सा सहारा दे दे तो ऐसा होना लाजमी है.
रो रो कर कर जब थमी तो मैं उसका नाम जानना चाहा. जानकी नेपाल की रहने वाली थी. ज्यादा वह शयद उस समय नहीं बताना चाहती थी. उसने उल्टा मुझसे पूछा की
दीदी आप कहाँ रहती हैं? मैं ने उसे बताया की मैं अपने पति के साथ यहाँ आई हूँ और होटल में रुकी हुई हूँ. वह मुझसे मिलना चाहती थी और मैं भी चाहती थी की वह मिले और मुझसे खुल कर बात कर सके. अतः मैंने उसे अपने होटल का पता दिया और कहा की वह कल ११ बजे मुझसे मिल सकती है. मैं चाहती थी की वह तभी मेरे से मिलने आये जब मेरे पति होटल में न हों.
मैं रात भर उसीके बारे में सोचती रही. सुबह जब मेरे पति अपने काम से चले गए और मेरा बेटा सो गया, तब पुनः मुझे मेरे चिंतामुखी दिमाग ने जानकी के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया. सोचने लगी……
तभी मेरे कमरे के दरबाजे पर किसी ने खट-खट की आवाज की और मेरी तन्द्रा टूट गई. उठकर दरवाजा खोला तो सामने वही जानकी खड़ी थी.
मैंने उसे अन्दर बुलाया और चाय मंगवाई. चाय पी कर वह थोडा आश्वस्त हुई और कहने लगी.मैं नेपाल की रहने वाली हूँ. थोड़ी बहुत हिंदी बोल लेती हूँ. दो साल पहले मैं एक लड़के से प्यार कर बैठी.घरवाले शादी के लिए तैयार नहीं थे. फिर हम दोनों एक दिन घर से भाग निकले. अमित ने कहा की मदुरै नेपाल से बहुत दूर है और वहां हमें कोई पहचान भी नहीं पायेगा. यहाँ हमने मीनाक्षी मंदिर में विवाह कर ली.
कुछ दिन तो समय मजे में कटा.फिर अमित ने यही किसी कंपनी में नौकरी ज्वाइन का ली. नौकरी उनको मिलने के बाद मेरे दुख के दी सुरु हो गए. कुछ दिनों से वह बदला बदला सा लग रहा था. नशे की भी लत लग गई थी. अब तो रोज खीच -खीच होने लगी. प्यार और नाराजगी दोनों भाषाएँ उनके समझ के बाहर हो गई. नशे के लत के वजह से पैसे की भी तंगी शुरू हो गई. मैं अपने घर के पास के एक छोटी बच्चियों को पढ़ाने लगी. मेरा दुर्भाग्य वहां भी पहुँच गया. उस बच्ची के पिता की दृष्टि ठीक नहीं थी. और मैंने बच्ची को पढ़ना छोड़ दिया.
अब अमित दो-दो दिन घर नहीं आता था. उन के अन्दर का मनुष्यत्व खत्म हो गया था. बहुत कठिन हो गया था जीवन यापन करना.और आज दस दिन ही गए . उसका कोई अता-पता नहीं है. कोई कहता है विदेश चला गया.कोई कुछ और कहता है. अब मैं कहाँ जाऊं क्या करूं कुछ भी समझ नहीं आ रही है.
आप मुझे अछि लगीं इसी लिए मैंने आप से अपनी आप बीती बता दी. मैंने उसे खाना खिलाया और समझाया की वह नेपाल चली जाये. अपने तो अपने होते हैं, सब तुझे माफ़ कर देंगे. सब कुछ भूल कर अपनी पढाई पूरी करले.
मैंने होटल मेनेजर से कह कर उसके लिए टिकट मंगवा दी. साथ में कुछ पैसे भी दिए.
उसकी i वह कृतज्ञतापूर्ण नयन मैं आज तक नहीं भूल पायी हूँ.
कुछ दिनों तक वह मुझे फ़ोन करती रही,उसके घर वालों ने उसे अपना ली और उसकी पढाई करवाई और फिर टीचर की नौकरी दिलवाई. उसने पुनः दूसरी शादी न करने का फैसला किया.उसने दूसरी भटकी हुई लड़कियों को रास्ता दिखने की बीड़ा उठा लिया.
धीरे धीरे हमारा संपर्क टूट गया.अब बातें तो नहीं होतो लेकिन उसकी याद हमेशा मुझे व्याकुल करता रहता है.
डा.rajani.

Read Comments

    Post a comment